सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक विवाह को नहीं दी मान्यता, संसद पर छोड़ा
सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक विवाह को नहीं दी मान्यता, संसद पर छोड़ा। CJI डीवाई चंद्रचूड़ ने 21 याचिकाओं पर की सुनवाई। विवाह अधिनियम में बदलाव संसद का काम।
सुप्रमी कोर्ट ने समलैंगिक विवाह को मान्यता देने से इनकार कर दिया और कहा कि विशेष विवाह अधिनियम में बदलाव करने का काम संसद का है। समलैंगिक विवाह को मान्यता देने के लिए दायर 21 याचिकाओं पर सुनवाई संविधान पीठ ने की, जिसमें पांच न्यायाधीश चीफ जस्टिस चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल, न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट, न्यायमूर्ति हिमा कोहली और न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्हा शामिल थे। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने 21 याचिकाओं पर की सुनवाई। विवाह अधिनियम में बदलाव संसद का काम। चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि कानून बनाना कोर्ट का काम नहीं है। कोर्ट केवल कानून की व्याख्या कर सकती है।
मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने कहा, समलैंगिकता प्राकृतिक होती है जो सदियों से जानी जाती है, यह केवल शहरी अवधारणा नहीं है या समाज के उच्च वर्ग तक ही सीमित नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि यह कल्पना करना कि समलैंगिकता केवल शहरी इलाकों में मौजूद है, उन्हें मिटाने जैसा होगा। किसी भी जाति या वर्ग का व्यक्ति समलैंगिक हो सकता है। अपना फैसला पढ़ने के बाद जस्टिस भट्ट ने कहा शादी करने से रोकने का किसी के पास कोई अधिकार नहीं है। लेकिन ऐसी शादियों को कानूनी दर्जा सिर्फ संसद के बनाए कानून से ही दिया जा सकता है। समलैंगिक विवाह पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद याचिकाकर्ताओं ने कहा है कि भले ही फैसला हमारे पक्ष में नहीं आया है फिर भी हमारे लिए यह बड़ी जीत है।
इधर सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष आदिश अग्रवाल ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक विवाह को मान्यता नहीं दी। वे सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हैं। विभिन्न धार्मिक नेताओं ने भी सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया है।
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