बिहार की राजनीति में आज सबसे ज्यादा चर्चा कुशवाहा समाज की है। दरअसल विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव के एक दांव से भाजपा और जदयू परेशान है। स्थिति यह है कि कुशवाहा समाज से आनेवाले भगवान सिंह कुशवाहा को जदयू ने एमएलसी प्रत्याशी बनाने की घोषणा की। इसके साथ ही एनडीए को उपेंद्र कुशवाहा को राज्यसभा प्रत्याशी बनाने पर मजबूर होना पड़ा। तेजस्वी के एक दांव से एनडीए के वर्ष 2025 में सत्ता में वापसी की संभावना पर आशंका के बादल छा गए हैं।
कुशवाहा समाज को लोकसभा चुनाव तक भाजपा अपना कोर वोट समझती थी। वह मान बैठी थी कि जिस तरह सवर्ण के लिए कोई काम करें या नहीं, महंगाई, बेरोजगारी जितनी बढ़े, सवर्णों का वोट मिलना तय है, उसी तरह कुशवाहा समाज को टिकट दें, राजनीतिक हिस्सेदारी दें या नहीं, उससे कोई फर्क नहीं पड़ता। भाजपा ने लोकसभा में 17 प्रत्याशी उतारे, लेकिन एक भी कुशवाहा को प्रत्याशी नहीं बनाया। उसी समय तेजस्वी यादव ने औरंगाबाद, नवादा, उजियारपुर से कुशवाहा प्रत्याशी उतार दिए। माले और सीपीएम ने भी कुशवाहा प्रत्याशी दिए, जिनका तेजस्वी यादव ने आगे बढ़ कर पुरजोर समर्थन किया।
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लोकसभा चुनाव परिणाम के बाद तेजस्वी ने एक और बड़ा कदम उठाया। चर्चा थी कि लोकसभा में राजद की नेता मीसा भारती बनेंगी, लेकिन तमाम अटकलों को बेकार साबित करते हुए तेजस्वी यादव ने लोकसभा में पार्टी का नेता कुशवाहा सांसद को बना दिया। उन्होंने औरंगाबाद से जीते और पहली बार सांसद बने अभय कुशवाहा को लोकसभा में नेता बना दिया। इस एक निर्णय ने भाजपा और जदयू खेमे में हड़कंप मचा दिया। दोनों दलों को समझते देर नहीं लगी कि कुशवाहा समाज के लिए तुरत कुछ नहीं किया, तो 2025 में बिहार की सत्ता से बाहर हो जाएंगे और तेजस्वी यादव ककी राह आसान हो जाएगी। फिर बिहार की सत्ता में तेजस्वी यादव को आने से रोकना संभव नहीं होगा। फिर तो आनन-फानन में जदयू ने भगवान सिंह कुशवाहा को एमएलसी बनाने की घोषणा कर दी। एक दिन बाद ही उपेंद्र कुशवाहा को राज्यसभा भेजने का निर्णय भी हो गया। बात यहीं खत्म नहीं होती है, अभी कुशवाहा राजनीति का बिहार में और भी महत्व बढ़ेगा। ऐसा माना जा रहा है कि 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव में कुशवाहा समाज गेम चेंजर बनेगा।