प्रथम युनानी दिवस का आयोजन

 राजकीय तिब्बी कालेज कदम कुआं पटना मे  रविवार को पहला राष्ट्रिय यूनानी दिवस के समारोह का आयोजन किया गया। भारत सरकार द्वारा 11 फ़रवरी, हाकिम अजमल ख़ान के जन्मदिवस को राष्ट्रिय यूनानी दिवस  घोषित किया था.

प्रथम युनानी दिवस का आयोजन
प्रथम युनानी दिवस का आयोजन

 

इस मौक़े पर स्टेट परोग्राम आफ़िसर , स्टेट हेल्थ सोसाईटी के आफ़ीसर प्रोफ़ेसर तबरेज़ अख़तर लारी ने इस मौक़े पर कहा के हुकूमत की पालिसी है के युनानी पद्धती को आम लोगों तक पहुंचाया जाए, इस मौक़े पर मुख्य अतिथि मो. उमर अशरफ़ ने कहा के हर क़ौम ने अपना नायक चुना है इस लिए क़ौम ए युनानी को भी हकीम अजमल ख़ान को अपना नायक मानना चाहीए क्यूंकि उन्होनेे यूनानी और आयुर्वेद पद्धती का डंका पुरे विशव मे बजाया था. उनकी पहचान महज़ एक यूनानी हकीम की नहीं  बल्कि वो लेक्चरर भी थे और आज़ादी के मतवाले भी.

इंडियन नेशनल कांग्रेस के सदर भी बने और मुस्लिम लीग से भी जुड़े, असहयोग आंदोलन में भी हिस्सा लिया और खिलाफ़त तहरीक के क़ाएद भी थे और हिंदू-मुस्लिम दोनों समाज  के लोग उन्हे बहुत चाहते थे.

इस मौक़े पर कालेज प्राधानाचार्य प्रोफ़ेसर ज़ियाउद्दीन ने ख़िताब करते हुए लोगों को राष्ट्रिय यूनानी दिवस की बधाई दी और बताया कि  हकीम अजमल ख़ान की ही मेहनत है जो आज यूनानी और आयुर्वेद पद्धती ज़िन्दा है वरना अंग्रेज़ो ने तो इसे ख़त्म करने की ही ठान ली थी. उन्होंने यह भी कहा राजकीय तिब्बी कालेज बिहार का एक मात्र सरकारी और भारत के सबसे पुराने युनानी कालेज मे एक है जिसकी बुनियाद 1926 मे रखी गई. इस मौक़े पर उन्होने कालेज मे एक नए नियुरो रिहैबीलिटेशन सेंटर खोलने की घोषणा की.

इसी अवसर पर हकीम तनवीर आलम, हकीम फ़ख़रुल हक़ ने चर्म रोग मे युनानी पद्धती के योगदान पर प्रसतुति दी.

छात्रों की तरफ़ से वैश अहमद और तनवीर नुर ने दसतान ए मसीहुल मुल्क के नाम से दास्तानगोई की. अहमद हुसैन, मशकुर अहमद और महजबीं नाज़ ने हकीम अजमल ख़ान और कॉसमेटोलाजी पर प्रसतुती दी. मुज़फ़्फ़र सुलैमान और शमशाद आलम ने एच टु ओ सेवनटीन नाम से नाटक की प्रसतुती दी, दुसरे वर्ष के छात्र अब्दुस सलाम ने पुरे आयोजन को क्रमवध किया , प्रोफ़ेसर तौहीद किब्रीया ने सबका धन्यावाद व्यकत करते हुए सभी लोगों को राष्ट्रिय यूनानी दिवस की बधाई दी. उस मौक़े पर डॉ शफ़ात करीम, डॉ ख़ुर्शीद आलम, शकील अहमद, आऱफया हुसैन, राशिद इमाम, वसीम अकरम, मौलाना मतलुब अदी मौजुद थे जबकि का संचलान मोहम्मद तनवीर आलम ने किया.

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