मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी के भविष्य पर हो रहे उठापटक के बीच शिवानंद तिवारी ने जदयू विधायकों को  खुली चिट्ठी लिख कर  पूछा है कि वे कबत तक एक तानाशा के सामने आत्मा की आवाज समर्पित करेंगे?shivanand

 

चिट्ठी का संपादित अंश

शरदयादव ने अपनी पार्टी की विधायक दल की बैठक बुलाई है।चालीस वर्षों से शरद जी संसद के किसी न किसी सदन के सदस्य हैं। विधायक दल का बैठक उसका नेता ही बुला सकता है इतनी समझ की अपेक्षा शरद जी से करना ज्यादा नहीं माना जा सकता है। खेद है कि शरद जी जैसा नेता जिसने दलित, पिछड़ा, शोषित के नाम पर ही अब तक राजनीति की है, वह समाज के सबसे निचले पायदान से आने वाले जीतनराम मांझी को हटाने के अभियान में गलत-सही भूलकर #नीतीशकुमार के हाथ का कठपुतली बना हुआ है।

दल का नेता
ऐसे लोग जिनका बिहार में कोई आधार नहीं है, आज विधायक दल की बैठक बुलाने के मुख्यमंत्री के अधिकार को चुनौती दे रहे हैं। उनका कहना है कि मांझी विधायकों द्वारा नहीं बल्कि नीतीश कुमार द्वारा बनाये गए हैं। शायद उनको पता नहीं है कि प्रधान मंत्री और मुख्य मंत्री कैसे बनता है। इसकी प्रक्रिया संविधान में निर्धारित है।यह सही है कि विधायक दल की बैठक में नेता के रूप में चयन के लिए जीतनराम मांझी का नाम नीतीश कुमार ने प्रस्तवित किया था। लेकिन विधायकों ने उस प्रस्ताव का सर्वसम्मति से उसका अनुमोदन किया था। इस अनुमोदन के बगैर राज्यपाल मांझी जी का मुख्य मंत्री के रूप में शपथ नहीं करा सकते थे। इसलिए मांझी जी विधायकों द्वारा चुने गए विधायक दल के नेता हैं। अत: विधान के अनुसार मांझी जी ही विधायक दल की बैठक बुला सकते हैं। शरद यादव को इसका अधिकार नहीं है।

हिंदुत्व की आड़ में ब्राह्मणवादी ताकत
सात-आठ महीने मेँ ही बिहार का दलित और कमजोर वर्ग #जीतनराममांझी को अपना नेता मानने लगा है। बिहार के समाज से जिसका भी थोड़ा बहुत रिश्ता है वह इसको देख और समझ रहा है। मैं जानता हूँ कि जाति व्यव्स्था वाले हमारे समाज में कइयों को मांझी जी की बोली अच्छी नहीं लगती होगी।लेकिन समाज में उनलोगों की तादाद बहुत ज्यादा है जो उनकी बोली के कारण ही उनको अपना नेता मानने लगे हैं। लोकतन्त्र बोली से ही चलता है। लालू जी को आप चाहे जितना गरियाईए। लेकिन लालू ने बोली से ही समाज को बदल दिया। सामाजिक सत्ता पर जिनका सदियों से वर्चश्व था वे हाशिये पर चले गए।इतने बड़े परिवर्तन के लिए गोली नहीं चलानी पड़ी। लालू के बाद मांझी जी कि बोली से समाज के अंतिम आदमी का मन उछल रहा है। उसमे आत्मगौरव का भाव पैदा हुआ है। इतने कम समय में यह साधारण उपलब्धि नहीं है। यह बहुत बड़ी ताकत है। इस ताकत के सहारे हिंदुत्व की आड़ में ब्राह्मणवादी ताकतों को पुनः अपने को स्थापित करने के प्रयास को कम से कम बिहार में रोका जा सकता है। लेकिन मांझी को हटाने का अभियान चलाकर नीतीश इस ताकत को दबाने की कोशिश कर रहे हैं। उसको अपमानित कर रहे हैं। इससे बिहार में हिंदुत्व की ताकत को बल मिल रहा है। दशकों के संघर्ष और क़ुरबानी से हासिल सामाजिक न्याय आंदोलन की उपलब्धियों कमजोर करने की यह साजिश है।
मदान्ध की जिद्द

इसको समझने के लिए बहुत दिमागी कसरत करने की जरूरत नहीं है। मंत्रिमंडल के कौन सदस्य हैं, जो अपने मुख्यमन्त्री के आदेश को उसके मुख्यसचिव के यहाँ चुनौती दे रहे हैं। इन्हीं ताकतों के हाथ में नीतीश खिलौना बने हुऐ हैं। सवाल यहाँ सिर्फ जितनराम मांझी का नहीं है। लम्बे संघर्ष के बाद जो कुछ हाशिल हुआ है क्या हम उसको एक मदान्ध की जिद्द की वजह से मिट जाने देंगे ? जो साजिश रची जा रही है उसकी सफलता या असफलता उस विधायक दल पर है, जिसने मांझी को अपना नेता चुना है। अगर मुख्यमन्त्री के रूप में मांझी जी ने दल को कमजोर किया हो, या विधायकों को अपमानित किया हो, उनकी समस्याओं को नहीं सुना हो तो मांझी को हटा देना चाहिए।लेकिन उनके मुख्यमन्त्री बनने के बाद दल का आधार बढ़ा है।

विधायक निसंकोच कोई बात उनसे कह सुन रहे हैं। तो फिर क्यों मांझीजी को हटाने का षड्यंत्र हो रहा है। विधायक यह भी अनुमान लगाएं कि जिस प्रकार उनको हटाने का अभियान चलाया जा रहा है उसकी उस समाज में क्या प्रतिक्रिया होगी, जो उनकी वजह से अपने को गौरवान्वित महसूस कर रहा है और उनको अपना नेता मानने लगा है। मांझी जी के हटने की उनमें क्या और कैसी प्रतिक्रिया होगी ? इसलिये विधायक दल के साथियों से अनुरोध करूँगा कि इस साजिस को असफल कीजिये। कब तक अपने विवेक को, अपनी आत्मा की आवाज को एक तानाशाह के आगे समर्पित करते रहिएगा। इस समर्पण में न सिर्फ आपका अपना राजनीतिक नुकसान है।बल्कि सामाजिक न्याय के लिए आपने या आपके वरीय लोंगो ने संघर्ष के जरिये जो उपलब्धि हासिल किया है उसका भी नुकसान है।
राजगीर शिविर का स्मरण

आपको दल के राजगीर शिविर का स्मरण कराना चाहूँगा। उस शिविर में मैंने क्या गलत कहा था। उस समय जो देख सुन रहा था उसीके आधार पर आने वाले खतरे के प्रति मैंने सिर्फ नीतीश को आगाह किया था। सावधान होने और चेतने के बदले उन्होंने मुझे ही अपने कोप का शिकार बना दिया। उसका नतीजा क्या हुआ यह सामने है। जितनराम मांझी को हटाने का क्या नतीजा होगा वह बिलकुल साफ-साफ दिखाई दे रहा है। सिर्फ एक आदमी के आँख पर अहंकार और जिद्द की पट्टी पड़ी हुई है। वह कुछ भी देखने-सुनने को तैयार नहीं है। ‘ अपने साथ सबका नाश ‘ करने के लिए आमादा है। इसलिए आज आप सभी से बहुत विनम्र अनुरोध कर रहा हूँ। जितनराम मांझी के खिलाफ चल रहे इस अभियान को असफल कीजिये। यही सामाजिक न्याय की पुकार है। यही आपका आपद धर्म है।

शिवानंद

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