नेपाल में आयी भूकम्प की त्रासदी से बेरोजगारी के दंश झेलते लोगों पर अब मानव तस्करों का शिंकजा है पिछले कुछ महीने में सैकड़ों नाबालिग बच्चियों को देहव्यापर में धकेल दिये जाने की आशंका है.

फाइल फोटो एशिया न्यूज
फाइल फोटो एशिया न्यूज

मोतिहारी से इंतजारुल हक की रिपोर्ट

एक बार फिर भारत-नेपाल की सीमा रक्सौल व उसके आस-पास का इलाका मानव तस्करों का सेफजोन बनता जा रहा है।हाल के दिनों में नेपाल में भूकम्प से हुई भीषण तबाही व उससे बढ़ी बेरोजगारी ने एक तरफ मानव तस्करों की मंशा पूरी कर दी. इतना ही नहीं यहां की नाबालिग लड़कियों को भारत के विभिन्न महानगरों में ऑर्केस्ट्रा में नौकरी दिलाने के नाम पर भेजा जाने लगा है जहां उनका भरपूर शोषण तो हो ही रहा है साथ ही उनसे देह-व्यापार भी कराये जाने की खबरें हैं.

मानव तस्करों की लागातार बढ़ रही सक्रियता व हो रही तस्करी ने सरकारी व्यवस्था की पूरी तरह से पोल खोल दी है।मानव तस्कर व दलाल नेपाल के भूकम्प प्रभावित क्षेत्रों के साथ-साथ चम्पारण के विभिन्न क्षेत्रों में घूम रहे हैं और बड़ी आसानी से छोटे-छोटे बच्चों को देश के महानगरों में नौकरी दिलाने का झांसा देकर अपने चंगुल में फंसाने में कामयाब हो रहे हैं तथा उनके भविषय के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं।पिछले 12  महिनों में विभिन्न स्टेशनों से 200 सौ से अधिक बाल श्रमिकों की हुई बरामदगी व करीब दों दर्जन दलालों की हुई गिरफ्तारी तथा नेपाल के भूकम्प के बाद रक्सौल स्टेशन पर हुई छापेमारी ने यह साफ कर दिया है कि दलालों द्वारा आर्थिक रूप से कमजोर अभिभावकों को निशाना बनाया जाता है. उन्हें कुछ रूपये देकर उनके बच्चों को  महानगरों में ले जाकर उन्हें या तो बेच दिया जाता है या फिर उन्हें गुमनाम इलाके मे रखकर जानवरों जैसा काम लिया जाता है।

ऐसे होती तस्करी

मुम्बई,दिल्ली,हरियाणा,कानपुर व अमृतसर जाने वाली गाडि़यों में सब से अधिक बालश्रम व उनके दलाल मिलते हैं।ये दलाल बच्चों को सीट पर बैठाने के बाद उस समय तक स्टेशनों के प्लेट फार्म पर रहते हैं जबतक गाड़ी खुल न जाये।गाड़ी खुलने के बाद एक दो-स्टेशन तक वे दूसरी बोगी में रहते हैं और बड़ी चालाकी से उन बच्चों को देखते रहते हैं।शायद यही कारण है कि मानव तस्करी पर रोक लगाने के लिए रक्सौल में काम कर रही प्रयास नामक संस्था व रेलवे पुलिस द्वारा ट्रेनों की बोगियों में तलाशी कर बाल मजदूरों को तो पकड़ लेती है किंतु दलाल भागने में कामयाब रहते हैं।हालाकि प्रयास के सहयोग से इधर आधा दर्जन दलाल भी पकड़े गये हैं जो अभी जेल में बंद हैं।

मिलीभगत?

जानकार बताते हैं कि ये दलाल स्टेशनों पर काफी सुनियोजित ढ़ंग से चलते हैं और वहां तैनात प्रयास के कार्यक्रताओं व रेल पुलिस को चकमा देकर निकल जाते हैं।नेपाल के प्रभावित क्षेत्र बाल तस्करों की सक्रियता की शिकायतें भी पुलिस व विभाग को समय समय पर मिलती रहती है किंतु कारवाई के नाम पर केवल कागजी खानापूर्ति की जाती है। जानकार यह भी बताते हैं कि जिस तरह पुलिस जिला बाल कल्याण समिति के बार-बार आग्रह के बावजूद सहयोग नही करती है और अगर  अन्य संस्थायें यहां नहीं होती तो स्थिति काफी खतरनाक होती और प्रतिदिन भारी संख्या में बाल मजदूर इन तस्करों का शिकार होते।

 

इस बीच जिला बाल कल्याण समिति के अनुसार, 2 वर्षों में करीब 400 बाल श्रमिकों को न्यायालय में प्रस्तुत किया गया है जिस में सुनवाई के बाद बच्चों को उनके अभिभावकों को सौंप दिया गया है।वैसे जिनके अभिभावक नहीं आ पाते वैसी स्थिति में प्रयास के होम में बच्चों को रखा जाता है।

By Editor