क्या नोटबंदी का विरोध करनेवाले सारे लोग कालाधन के पोषक और राष्ट्रविरोधी है ? तो इसका एक मतलब यह भी हुआ की जो लोग नोटबंदी का समर्थन कर रहे वे सारे लोग अनिवार्य रूप से ईमानदार और राष्ट्रभक्त हैं .note.ban

भारती कुमारी

पिछले डेढ़ महीने से भारतीय रनीति में कुछ इसी अंदाज़ में ईमानदारी और बेईमानी का प्रहसन खेला जा रहा है और मेरे जैसे असंख्य लोग भ्रष्ट और राष्ट्रविरोधी कहे जाने के डर से मुंह में जाब लगा के बैठे हैं . पर कब तक ? हिटलर भी यही करता था और उसके बाद के सारे तानाशाह भी ऐसा ही करते आये हैं .

अधिनायकवाद

कभी पढ़ा था कि जब पूंजीवाद संकटग्रस्त होता है , अधिनायकवाद का जन्म होता है और तब वह अधिनायक अपनी सारी नीतियों को राष्ट्रवाद से जोड़ते हुए कुछ इस अंदाज़ में अपनी बातें लोगों के बीच रखता है मानो एकमात्र वही और उसके समर्थक ही राष्ट्रभक्त हैं , केवल उन्हें ही राष्ट्र के विकास और आम लोगों की चिंता है , बाकी सारे विरोधी राष्ट्रविरोधी हैं . जबकि हकीकत में उसकी जो भी नीतियाँ होती हैं उनका एकमात्र उद्देश्य पूंजीवाद को सारे खतरे से बचाते हुए उसे मजबूत करना होता है , चाहे इसके लिए अभिव्यक्ति की आज़ादी पर आक्रमण करना पड़े , श्रम कानून में बदलाव लाकर मजदूरों को पूंजीपतियों का चारा बनाना पड़े , किसानों को बंधुआ और बेचारा बनाना पड़े या फिर अपने विरोधियों को गिलोटिन ही क्यों न करना पड़े .

काला कालाधन की विशाल इमारत पर बैठे लोग

कई तरीके अमल में लाये जाते हैं . अपने देश में भी कुछ ऐसा ही हो रहा .लोग नरेंद्र मोदी के ऐतिहासिक रूप से खर्चीले चुनाव को आज तक नहीं भूले हैं . शायद बीस हज़ार करोड़ से ज्यादा खर्च किये बीजेपी ने . ये सब कालाधन ही तो था . हम कितने बेवकूफ हैं . जो व्यक्ति खुद कालेधन के विशाल इमारत की छत पर बैठा है , आज वही लोगों को ईमानदारी और देशभक्ति की शिक्षा दे रहा और हम इस डर से चुप बैठे हैं कि कहीं हमको राष्ट्रविरोधी न घोषित कर दिया जाए .

मेरा पैसा, फिर क्यों सहें कष्ट

नोटबंदी से लोग मर रहे , कलप रहे ; लाखों मजदूर बेरोजगार हो गए , किसानों की किसानी मर गयी , चारों ओर हाहाकार मचा है . अपने पसीने की कमाई बैंक से लेने में लाइन में ही लोगों की जान निकल रही . और ये बोलते हैं कि कड़े फैसले के लिए थोड़ा कष्ट सहना होगा . क्यों सहें कष्ट ? ये मेरा पैसा है और वो भी बेईमानी का नहीं बल्कि हाड़ तोड़कर कमाया गया पैसा . इस पैसे को मैं कैसे खर्च करुँगी , इसका नियम तय करने वाले तुम कौन होते हो ?

दवा के अभाव में मौतें

शर्म आनी चाहिए ऐसी वाहियात नीति पर . कभी किसी पूंजीपति या समाज में बड़े पैसेवाले लोगों को तो लाइन में खड़ा नहीं देखा ? कहाँ गया उनका पैसा . पाखंडी कहीं के ! बताओ तुमने अदानी और अम्बानी का क़र्ज़ क्यों माफ़ किया ? चलो मान लिया मायावती और मुलायम जैसे लोगों के विरोध में विश्वसनीयता नहीं है , पर उस गरीब के पास कितना ब्लैक मनी था जो अपनी बेटी की शादी के पैसे के लिए बैंक की कतार में ही स्वर्ग सिधार गया ? कितनी शादियाँ टूटीं , कितने लोग दवा दारु के चलते मर गए , कितने घर जल गए , कितने खेत उजड़ गए . जाओ जाकर ट्रेनों की जनरल बोगियों में नौकरी छूटने के बाद लुटे पिटे घर लौट रहे मजदूरों से मिलो ,किसी बूढ़े बाप से मिलो जिसकी बेटी की शादी पैसे के अभाव में टूट गयी , और जरा बोलकर दिखाओ की राष्ट्रनिर्माण हो रहा है .

ये सरासर धोखाधड़ी है . इस आलेख के माध्यम से मैं देशवासियों से आह्वान करती हूँ की घर से निकलिए और इस पाखंडी सत्ता के असली चेहरे को बेनकाब कीजिये . आज नहीं तो कभी नहीं .

[author image=”https://naukarshahi.com/wp-content/uploads/2016/12/bharti.kumari-1.jpg” ]लेखिका जनता दल यू की नेत्री हैं[/author]

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