मतभेदों को भुलाना भाईचारे की बुनियाद

हिंदुस्तान अपनी अनेकता में एकता के लए जाना जता है. अनेकता वाला समाज उसे कहते हैं जहां विभिन्न तरह के मजहब, जातियां अलग-अलग रीति-रिवाज वाले लोग साथ साथ रहते हैं.

हालांकि यह परिभाषा पूरी और खालिस नहीं है. वास्तव में अनेकता जीवन के हर पहलू और कुदरत की खसूसियत है. हर समाज यहां तक कि हर परिवार अनेकता की मिसाल है. गहरे शोध से पता चला है कि मतभेद का होना भी लाजिमी है क्योंकि हर आदमी और हर औरत अलग- अलग तरह से सोचता है और जीवन जीने के उनके तरके भी अलग हैं.

इसलिए कभी भी आदम जाति के चाहे वह एक जैसी सभ्यता और तहजीब वाला हो या भिन्न भिन्न तहजीबों वाला,  विचार, पसंद आदत इत्यादि में भारी अंतर बना रहता है. ऐसी स्थिति में परिवार और समाज में अमन या आपसी रिश्तों को बनाये रखने के लिए आपसी तालमेल या भाईचारा बनाये रखना बहुत जरूरी है.

इन सभी सवालों का जवाब बस एक ही है- मतभेदों को खत्म करना. मतभेदों को खत्म करना या कम करना भी एक कला है. जिसे सभी को अपनाना होगा.

बनाने वाले ने कुछ सोच समझ कर ही लोगों को अलग अलग बनाया होगा.जिससे कि कुदरत की खूबसूरती और अनेकता में एकता बनी रही.इसके साथ ही उसने हमें इस प्रकार बनाया कि कोई भी अपने आप में पूरा ना हो. और उसे हमेशा दूसरों से जुडा महसूस करना होगा.

हरेक आदमी और औरत समाज के लिए एक इकाई के तौर पर है. जिससे कि पूरा समाज एक गदुलदस्ता के रूप में लगता है.,यही कहावत बिल्कुल सही है- आदमी एक सामाजिक इकाई है.

समस्या यह है कि कभी कभी मतभेद समस्या का रूप धर लेते हैं. जिन्हें ज्यादा तवज्जो नहीं देना चाहिए. मतभेद दूर करने के लिए सभी को कोशिश करनी होगी ताकि आपसी मुहब्बत टूटने ना पाये और यह हमेशा खिलती और बढ़ती रहे. सही मायने में मानव जाति की उन्नति और विकास की जड़ में  अनेकता में एकता की कोशिशें, सभी समाज और मुल्क की भलाई, सलामती, उन्नति, तरक्की, मजबूती के विचार में ही है.                             

By Editor