राजगीर की वादियों के बीच राजद के व्यवस्थित कार्यकर्ता

यह 19990 और 2017 के राष्ट्रीय जनता दल का फर्क है. यह नया अवतार है. पढ़िये राजद और लालू प्रसाद में ऐसे बदलाव की गाथा जिसे अब से पहले न तो देखा गया और न ही इस बदलाव की कभी उम्मीद की गयी थी.

इर्शादलु हक, एडिटर नौकरशाही डॉट कॉम

एक

राजगीर की वादियों के बीच राजद के व्यवस्थित कार्यकर्ता

यह कहां संभव था कि मंच पर लालू प्रसाद बैठें, छह-छह घंटा बैठे और बोलें कुछ नहीं. मंच पर लालू यादव के होने का अर्थ है कि वह बोलेंगे और लोग सुनेंगे. लेकिन राजगीर प्रशिक्षण शिविर में माजरा एक दम उलटा था. सारा-सारा दिन लालू सुनते रहे और पूरी तन्मयता से सुनते रहे. बीच-बीच में जब कभी अवसर मिला वह कार्यकर्ताओं को हिदायत देते रहे कि- सुनो और सब नोट करो. लौट कर जाना तो आरएसएस के लोगों को जवाब देना और उनकी बोलती बंद कर देना. ऐसा नहीं था कि मंच पर जब लालू नहीं बोले तो कोई नेता भी नहीं बोलेगा. चुनिंदा नेता बोले. वे चुनिंदा नेता जो वैचारिक रूप से समृद्ध हैं. जो रणनीतिकारों की भूमिका में हैं- जगदानंद, शिवानंद तिवारी, अब्दुल बारी सिद्दीकी और कुछ और इक्के-दुक्के नेता. जगदानंद विचारक के रूप में नजर आये तो शिवानंद संघी झूठे के मुकाबले के लिए तरकश से तीर निकालने वाले के रूप में.

दो

शायद यह पहला अवसर था जब राजद के मंच पर बौद्धिक वर्ग का कब्जा था. राजद ही क्या तमाम क्षेत्रीय दलों की यही परम्परा रही है जहां बौद्धिक और विद्वान वर्ग के लिए या तो अवसर नहीं होता या अगर होता भी है तो उनकी आवाज एक औपचारिकता तक सीमित रहती है. पर राजद ने इस रस्म को तोड़ा.80 विधायक, तमाम मंत्री, सभी कार्यकर्ता इतना ही नहीं लालू परिवार के तमाम सदस्य( तेजस्वी अपवाद) खामोश श्रोता रहे, खुद लालू भी. तीन दिवसीय प्रशिक्षण शिविर के दूसरे दिन तो केवल बौद्धिक जमात के लोग जिनमें पुरुषोत्तम अग्रवाल, इमरान प्रताप गढ़ी, अरुण कुमार, दिलीप मंडल, व जयशंकर गुप्ता और तेजस्वी यादव के अलावा कोई और नहीं. इन विशेषज्ञों की तैयारी भी कोई ऐसी-वैसी नहीं थी. विषय की परिधि में पूरी तरह से केंद्रित. सबका मकसद एक कि कैसे संघ और भाजपा के विचारों को, समाजवादी विचारों से ध्वस्त किया जाये. साम्प्रदायिक उन्माद का आपसी भाईचारे से कैसे लोहा लिया जाये. संघ के झूठ, अफवाह और झांसे का, यथार्थवादी तथ्यों और तर्कों से कैसे तोड़ा जाये यही गुर तमाम नेता कार्यकर्ता सीखते रहे. इस आलेख में उन तमाम बिंदुंओं को समेटना संभव नहीं लेकिन इतना जरूर कहा जा सकता है कि आयोजक विद्वानों के उन तर्कों को पुस्तिका की शक्ल दे कर हजारों कार्यकर्ताओं तक पहुंचा दें तो यह बड़ा एसेट साबित हो सकता है.

तीन-

राष्ट्रीय जनता दल की गतिविधियों को जो विश्लेषक 90 के दशक से देखते रहे हैं उन्हें पता है कि राजद का पूरा तंत्र एक व्यक्तिविशेष के इर्द-गिर्द घूमता रहा है. सारी भीड़ से बस एक ही व्यक्ति सारा संवाद करता रहा है. हर कायर्क्रम की सारी व्यस्था एक व्यक्ति से शुरू होती रही है और बस एक व्यक्ति तक सीमटती रही है. यह 1990 का राजद था. लेकिन 2017 का राजद अपने नये अवतार में है. जहां राजगीर का प्रशिक्षण शिविर एक कार्पोरेट संगठन या अंतरराष्ट्रीय संस्था के आयोजन जैसा है. एकदम व्यवस्थित और समय का एकदम पाबंद. आयोजन की एक-एक व्यस्था के लिए एक-एक कमेटी तैनात है.एकदम ईवेंट मैनेजमेंट कम्पनी की कमेटियों की तरह. भोजन और अल्पाहार के समय सबकी जेब मे रखे कूपन निकलते हैं और सब लोग कूपन के साथ कतार में हैं. भोजनावकाश का समय समाप्त तो फिर शिविर के कार्यक्रम में सब तैनात. ऐसा दृश्य राजद के कार्यक्र में दिखे तो इसे राजद का नया अवतार ही कहा जाये. बस बदली नहीं तो एक चीज और वह है राजद की वैचारिक राजनीति. जहां धर्मनिरपेक्षता अपने बुनियादी मूल्यों के रूप में अब भी कायम है तो सामाजिक न्याय और कमजोरों के हक की आवाज अब भी उसी रूप में है. यह होना ही था क्योंकि सेक्युलरिज्म का सवाल, सामाजिक न्याय का सवाल और हाशिये के लोगों का सवाल अब भी अपना जवाब चाहता है. और राजद इन्ही सवालों का जवाब तलाशने में जुटा है.

चार-

राष्ट्रीय जनता दल एक युग से गुजरता हुआ अगले युग में प्रवेश कर रहा है.  पर इसका मतलब यह नहीं कि वह गुजरे हुए युग को पीछ छोड़ रहा है. लालू अब भी वर्तमान हैं और तब भी वर्तमान थे. हां पर नये युवाओं के कांधों पर जिम्मेदारियां आयी हैं. यह युवा वर्ग बीते युग के युवाओं से अलहदा है. यह आधुनिक सोच और आधुनिक सूचना तकनीक से लैस है. इंटरनेट और सोशल मीडिया की रफ्तार को समझता है. पढ़ा लिखा है और बौद्धिक तौर पर संवेदनशील है. यहां 90 के दशक की तरह आयोजनों में लाठियां नहीं और न ही लाठी को तेल पिला कर विरोधी से लड़ने की तैयारी. इन लाठियों की जगह हथेलियों में मोबाइल हैं जो विचारों और छवियों को सेकेंडों में दुनिया तक पहुंचाने में जुटी हैं. इस नयी पीढ़ी की नुमाइंदगी जिन हाथों में हैं वह तेजस्वी यादव और उनकी युवा टीम है. तेजस्वी के सहयोग के लिए अगर पर्दे के पीछे संजय यादव व उनकी टीम  हैं तो पर्दे के बाहर प्रगति मेहता, आलोक मेहता, शक्ति यादव व कारी शुएब जैसे  दर्जनों नुमाइंदे हैं.

 

पांच

राजद का यह प्रशिक्षण शिवर एक नयी उम्मीद का संचार है. नये जोश और विचारों की तेज धार से वार व प्रहार से भरा हथियार है. जहां पिछड़ों और दलितों व माइनारिटी के अधिकारों की रक्षा के सपने हैं. मंडल कमिशन के अधूरी रह गयी सिफारिशों को लागू करने का सपना है. सौ में साठ के अधिकार को फिर से परिभाषित करने की बेचैनी है. आरक्षण के बिहार व कर्पूरी फार्मुले से अलग अब तमिलनाडु फार्मुले की तरफ बढ़ने का वक्त है. जहां आरक्षण का दायरा 69 प्रतिशत है. बिहार में अब तक जो आरक्षण है वह  आरक्षण के  50 प्रतिशत की परिधि के अंदर है.

सामाजिक न्याय की लड़ाई अपने नये अवतार में है. राजगीर घोषणा पत्र के साथ यह लड़ाई 2019 के सफर पर निकल पड़ने को तैयार है.

[author image=”https://naukarshahi.com/wp-content/uploads/2016/06/irshadul.haque_.jpg” ]इर्शादुल हक ने बर्मिंघम युनिवर्सिटी इंग्लैंड से शिक्षा प्राप्त की.भारतीय जन संचार संस्थान से पत्रकारिता की पढ़ाई की.फोर्ड फाउंडेशन के अंतरराष्ट्रीय फेलो रहे.बीबीसी के लिए लंदन और बिहार से सेवायें देने के अलावा तहलका समेत अनेक मीडिया संस्थानों से जुड़े रहे.अभी नौकरशाही डॉट इन के सम्पादक हैं. [/author]

 

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