पाटलिपुत्र लोकसभा क्षेत्र के सिगोड़ी के मुसलमान नमो को रोकने के लिए गोलबंद हैं. यूपी के मऊ से भी बड़ा बुनकरों का यह इलाका आखिर इस चुनाव में क्या चाहते हैं?

साभार भास्कर
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आलोक कुमार सिगोड़ी से

अंसारी मुसलमानों की सबसे बड़ी बस्ती सिगोड़ी। यूपी के मऊ से भी बड़ी है। राज्य में सबसे ज्यादा बुनकर यही हैं। कभी बिजली से चलने वाले पावर लूम की घरघराहट सिगोड़ी की पहचान हुआ करती थी। अब हाथकरघा का खट-खट। समस्याएं और भी हैं। सिगोड़ी को प्रखंड का दर्जा देने से लेकर बुनकरों को आर्थिक सहायता के साथ बाजार उपलब्ध कराने की मांग। हालांकि लोकसभा चुनाव की तपिश में पाटलिपुत्र के इस मुस्लिम बहुल सिगोड़ी में बुनकरों की बदहाली या विकास का मुद्दा पीछे छूट गया है। फिलहाल सबकी जुबान पर एक ही बात है कि कौन रोकेगा नमो की लहर को…। जो सक्षम दिखेगा, उसी को यहां मिलेगा वोट। अब्दुल समद, मो शहजाद, मो रिजवान, अमरूल्ला मियां, मो सलाम अंसारी और अब्दुल सलाम जैसे सिगोड़ी वासियों की बातों में यह साफ-साफ दिख रहा है कि लोग इस बार वोट बर्बाद नहीं करेंगे…।

हस्तकरघा उद्योग

बुनकर फखरुद्दीन अहमद कहते हैं, मेहनत के हिसाब से आमदनी नहीं है। सूत महंगा हो गया है। ऐसे में ज्यादा समय तक इस धंधे में टिके रहना मुश्किल होगा। मोईन अंसारी ने कहा कि लुंगी-गमछा के लिए मार्केट नहीं है, इसलिए लोकल स्तर पर इसे बेचना पड़ता है। असगर अली ने बताया कि मौका दिया जाए, तो वे बिहार ही नहीं देश के कई राज्यों चादर आदि की सप्लाई कर सकते हैं। मो शोएब कहते हैं अस्पताल ही नहीं, रेलवे, जेल, सचिवालय समेत सरकारी कार्यालयों में चादर सप्लाई का आर्डर मिलना चाहिए।

मेहनत है, मार्केट नहीं

शाहिर प्राथमिक बुनकर सहयोग समिति सिगोड़ी के अध्यक्ष मो फैयाज अहमद की देखरेख में 50 करघे चलते हैं। जबकि पूरे सिगोड़ी में करीब 1500 करघा। फैयाज ने बताया कि नीतीश कुमार के प्रयास से बुनकरों की हालत सुधरी है। मुख्यमंत्री समेकित बुनकर विकास योजना से सिगोड़ी के 553 बुनकरों को 20-20 हजार की राशि मिली। राज्य भर में स्वास्थ्य विभाग के सतरंगी चादर योजना के तहत अस्पतालों में सप्लाई होने वाली चादर सिगोड़ी में बनती है। हालांकि इसकी सप्लाई आदर्श बुनकर विकास समिति पटना द्वारा होता है। यह संस्था सिगोड़ी के बुनकरों से चादर बनवाती है।

जब पावरलूम था, तब सिगोड़ी से खादी के कपड़े देश के विभिन्न हिस्सों में ही नहीं, विदेश भी जाते थे। खासतौर से अरब देशों, यूरोप, अमेरिका आदि देशों में। बुजुर्ग मो इलियास बताते हैं 1976-77 में पावर लूम लगा। संख्या करीब एक सौ रही होगी। तब धोती-साड़ी भी बनती थी। 1985-86 तक सबकुछ ठीक रहा। उस समय चोरों ने इलाके के बिजली तार काट लिए। बिजली क्या गई, लोगों की किस्मत ही रूठ गई। पावरलूम बंद हो गए। तब बुनकरों ने हस्तकरघा लगाया। करीब दो हजार करघे चलने लगे। लेकिन, महंगाई और मार्केट नहीं मिलने के कारण बंद होने लगे। 1990 से 2000 के बीच स्थिति इतनी खराब हुई कि सिगोड़ी का करघा उद्योग बंद होने के कगार पर पहुंच गया। आधा से अधिक बुनकर महाराष्ट्र की भेवड़ी चले गए। वहां पावरलूम चलाने लगे। यानी मजदूर बन गए।

रिपोर्ट साभार दैनिक भास्कर

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