बिहार के नये डीजीपी केएस द्विवेदी की नियुक्ति पर उठे विवाद से घिरी नीतीश सरकार ने गृहसचिव से जवाब दिलवाया है. भागलपुर दंगा के दौरान एसपी रहते द्विवेदी की ‘पक्षपाती’ भूमिका के चलते सरकार की आलोचना हो रही थी.

गृहसचिव ने प्रेस कांफ्रेंस करके सरकार के पक्ष को रखा. उन्होंने प्रसाद कमीशन की रिपोर्ट का ब्यौरा देते हुए स्वीकार किया कि आयोग के दो सदस्यों ने द्विवेदी की भूमिका पर विपरीत टिप्पणी की थी लेकिन जांच आयोग के अध्यक्ष ने उनकी भूमिका पर कोई प्रतिकूल टिप्पणी नहीं की थी. सुबहानी ने बताया कि इसके बाद इस रिपोर्ट के खिलाफ द्विवेदी पटना हाई कोर्ट गये और मामले को दायर किया. हाईकोर्ट ने अपने फैसले में द्विवेदी के पक्ष में फैसला दिया. सुबहानी ने बताया कि इस फैसले के आ जाने के बाद 1998 में द्विवेदी को पदोन्नत्ति मिली. और वह 2015 से डीजी के पद पर तैनात थे. उन्होंने कहा कि वह अपने पद के समतुल्य अन्य अधिकारियों से सीनियर थे. सरकार ने बिहार के डीजीपी पर उनकी नियुक्ति उनकी वरियता के आधार पर की है.

गौर तलब है कि प्रसाद कमीशन की रिपोर्ट में केएस द्विवेदी की बतौर भागलपुर एसपी की भूमिका पर टिप्पणी करते हुए कहा था कि उनका व्यवहार साम्प्रदायिक रूप से पक्षपाती था.

डीजीपी पद पर द्विवेदी की नियुक्ति के बाद विपक्षी दलों ने कड़ी आपत्ति की थी. राजद के प्रवक्ता मनोज झा ने आरोप लगाया था कि उनकी नियुक्ति नागपुर(आरएसएस) के दबाव में की गयी है, वहीं जीतन राम मांझी ने कहा था कि भागलपुर दंगा में संदिग्ध भूमिका वाले अफसर को डीजीपी बनाना अल्पसंख्यकों के सर पर बोझ है. उन्होंने कहा कि किसी दलित को बिहार का डीजीपी बनाया जाना चाहिए था.

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