सुहैल खान 12 वर्षों तक रहे माइनारिटी कमिशन के चेयरमैन

बिहार राज्य अल्पसंख्यक आयोग के निरंतर बारह वर्षों तक चेयरमैन रहे प्रो सुहैल अहमद खान भी नहीं रहे. उनका देहांत रविवार को साढ़े नौ बजे सुबह में हो गया है.

सुहैल खान 12 वर्षों तक रहे माइनारिटी कमिशन के चेयरमैन

सेराज अनवर, रेजिडेंट एडिटर फारूकी तंजीम

कल 29 जनवरी को दस बजे दिन में अंज़ूमन इसलामिया पटना में जनाज़े की नमाज़ होगी और क़दम कुआँ पीरमुहानी क़ब्रिस्तान में सुपुर्द ए ख़ाक किए जाएगें. वो चार दिनों से पारस में थे. उनके बाडी के अनेक महत्वपूर्ण अंगों ने काम करना बंद कर दिया था.

 

प्रोफ़ेसर साहब मिलनसार शख़्स थे. समाज में सौहार्द के साथ मिल्लत की तरक़्क़ी के लिये चिंतित रहते थे. उन्हें सबसे अधिक इसलिए याद किया जाएगा कि अपनी ही सरकार के ख़िलाफ़ बिहार की डेढ़ करोड़ मुस्लिम आबादी की आर्थिक, शैक्षणिक, सामाजिक और सियासी हालात पर अल्पसंख्यक आयोग के बैनर तले आद्री के सहयोग से सर्वे करा दिया. सर्वे रिपोर्ट जब आयी तो राबड़ी सरकार की चूल हिल गयी.

 

रिपोर्ट में सामाजिक न्याय की सरकार में मुसलमानों की हालत बदतर बतायी गयी थी.रिपोर्ट को विधानसभा के पटल पर रखना था. इसी बुनियाद पर मुसलमानों के कल्याणकारी कार्यों को आगे बढ़ाना था. मगर नेगेटिव रिपोर्ट से सरकार डर गयी. इसलिए रिपोर्ट को मंज़रआम तक नहीं किया गया. सरकार रिपोर्ट दबा कर बैठ गयी. अपने ही सर्वे रिपोर्ट के आइने में सरकार मुसलमानों की बदहाली की तस्वीर देखना नहीं चाहती थी. इसमें दरबारी सियासत में यक़ीन रखने वाले मुस्लिम नेताओं ने भी सत्ता का साथ दिया. ज़ाहिर सी बात है इस आइना में उनका चेहरा भी कुरूप नज़र आ रहा था.

सचर कमेटी से भी पहले दिखा दी थी सच्चाई

सरकार पर दबाव डालने का काम मुस्लिम विधायकों और नेताओं का था. मगर सुहैल खान हीरो ना बन जाए इन नेताओं ने सरकार की ख़ूब मक्खनबाज़ी की.सुहैल अहमद खान को सरकार और सरकारी मुसलमानों के रवैया से बहुत दुःख पहुँचा. देश में मुसलमानों की बदहाली पर पहली रिपोर्ट थी. इस रिपोर्ट को ही आधार बना कर केंद्र की यू पी ए सरकार ने जस्टिस राजेंद्र सिंह सच्चर को देश के मुसलमानों की आर्थिक, शैक्षणिक, सामाजिक और आर्थिक स्तिथि का जायज़ा लेने केलिये सर्वे करने का ज़िम्मा सौंपा.रिपोर्ट बिहार से मेल खाती आयी. उस रिपोर्ट में भारतीय मुसलमानों की हालत दलितों से बदतर बतायी गयी.पता नहीं मनमोहन सरकार शर्मिंदा हुई या नहीं मगर रिपोर्ट देख कर सेक्युलर भारत शर्मसार हो गया. सच्चर कमेटी रिपोर्ट का हस्र भी वैसा ही हुआ ,जैसा बिहार में.

रिपोर्ट आज तक सार्वजनिक नहीं की गयी

रिपोर्ट को सदन में नहीं रखा गया.मुसलमान आज भी बदहाली के शिकार हैं. सुहैल अहमद खान ग़रीबों और पिछड़ी जातियों के हमदर्द थे. उनसे ज़्यादा, जो मुसलमानों में बैक्वर्ड की राजनीति कर राज्यसभा पहुँच गए. प्रोफ़ेसर साहब ने जाबिर हूसैन की पहचान दिलाई गयी अल्पसंख्यक आयोग को एक नई ऊँचाई दी. उनके कार्यकाल में आयोग दफ़्तर के बाहर फ़रयादियों की भीड़ लगी रहती थी. वो प्रशासनिक अधिकारियों के साथ सख़्ती से पेश आते थे. आज अल्पसंख्यक आयोग का वजूद ही नहीं है.वो 12.10.1995 से 22.07.2006 तक आयोग के अध्यक्ष रहे. अजमेर दरगाह समिति के भी अध्यक्ष बनाए गए थे.

पटना जिले के बाढ़ के रहने वाले थे. पेशे से प्रोफ़ेसर थे. कॉलेज आफ कामर्स से सेवानिवृत्त हुए. लालू- राबड़ी कार्यकाल में मुस्लिम राजनीति के अहम कड़ी थे.
सुहैल साहब को आख़िरी सलाम

By Editor