वाह! सिखों ने यूक्रेन में चलती ट्रेन में लगाया लंगर, नहीं पूछते धर्म

आज फिर सिखों ने इतिहास रच दिया। यूक्रेन में तबाही है। लोग मर रहे हैं। भाग रहे हैं। कई लोगों के पास खाने को कुछ नहीं। मदद में सबसे पहले पहुंचे सिख।

यूक्रेन में चलती ट्रेन में खालसा एड ने लगाया गुरु का लंगर

कुमार अनिल

अपने धर्म को सबसे पुराना, सबसे ऊंचा बताने में लोग लड़ पड़ते हैं। आजकल दूसरे धर्म से घृणा की लहर चल रही है। जो दूसरे धर्म से नफरत करे, वही सच्चा धार्मिक कहला रहा है। इस विषैली लहर के बीच सिखों ने साहस, प्रेम और सद्भाव की मिसाल बना दी। सिखों के कई जत्थे यूक्रेन पहुंच गए हैं। वे शहरों में गुरु का लंगर लगा कर भूखों की भूख मिटा रहे हैं। यहां तक कि चलती ट्रेन में भी लंगर लगा दिया। वाह, खालसा एड के सिख सेवादारों की जितनी तारीफ की जाए कम है।

सिख सेवादार किसी से धर्म नहीं पूछते, जाति नहीं पूछते, किस देश के हैं, यह भी नहीं पूछते और न ही रंग देखते हैं। वे यूक्रेन छोड़कर जा रहे लोगों की भूख मिटा रहे हैं। खालसा एड के संस्थापक रनींदर सिंह ने यह वीडियो सेयर किया है-

सिखों ने ऐसा पहली बार नहीं किया है। जब रोहिंग्या मुसलमानों को म्यांमार से पलायन को मजबूर होना पड़ा, तो बांग्लादेश सरकार से पहले सिखों ने पहुंचकर भूखे लोगों का पेट भरा था।

एक तरफ युद्धोन्माद में लोग डूबे हैं, वहीं आज दुनिया भर में दो बातों की विशेष चर्चा है। रूसी टेनिस खिलाड़ी आंद्रे रूबलेव ने दुबई में मैच के दौरान एक टीवी चैनल के कैमरे पर लिख दिया-नो वार प्लीज। उनके साहस की दुनिया भर में सराहना हो रही है।

जब कोई देश दूसरे देश पर आक्रमण करे, तो उस देश के लोग अगर युद्ध का विरोध करें, तो वे तुरत देशद्रोही कहे जाते हैं। सबसे आसान होता है युद्धोन्माद फैलाना और शांति-मैत्री की बात होती है सबसे खतरनाक। भारत के बड़े-बड़े सेलिब्रेटी और तथाकथित धर्मगुरु तक युद्ध बंद करने और शांति-मैत्री की बात करने से बच रहे हैं। जरूर भारत में भी शांति के लिए आवाज उठी है, पर वह अभी बहुत कमजोर है। भाषणों में वसुधैव कुटुंबकम की बात करना आसान है, व्यवहार में उतारना बहुत कठिन। इसके लिए सच्ची उदारता और साहस दोनों चाहिए।

पत्रकार अजीत अंजुम ने सिख सेवादरों को फरिश्ते की संज्ञा दी है।

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