विधानसभा चुनाव के पहले अखिलेश यादव ने वरिष्ठ नेताओ की राय से इतर सांसद डीपी यादव के मामले पर सख्त रुख अपनाते हुए कहा था कि सपा में बाहुबलियों के लिए जगह नहीं तो लगा था कि सपा की सरकार आई तो राज्य में सुशासन स्थापित होगा.
पर परिणाम इसके ठीक विपरीत निकल रहा है. आंकड़े बताते हैं कि सुशासन के नाम पर बनी इस सरकार में केवल कुशासन ही बढ़ा है. चोरी, हत्या रेप, दंगा जैसे अपराध इस सरकार की एक साल की उप्लाप्धि बन गये हैं. कानून व्यवस्था के नाम पर पिछले एक साल से ये सरकार जो कुछ भी करती आ रही उसे सिर्फ मीठे शब्दों का मायाजाल कहा जा सकता है.
जहाँ एक तरफ सपा प्रमुख मुलायम सिंह प्रशानिक अधिकारीयों की कार्यशैली पर तल्ख़ टिप्पणी करते है तो वही उन्हीं की पार्टी का युवा मुख्यमंत्री बेहतर कानून व्यवस्था के नाम ऐसे अधिकारियो को ला रहा है जो खुद कानून व्यवस्था के लिए एक सवालिया निशान हैं. अभी पिछले माह जनवरी में राज्य सरकार ने प्रशासनिक अधिकारीयों की स्थानान्तरण और प्रोन्नति लिस्ट ये कहते हुए ख़ारिज कर दी थी कि इस लिस्ट में काफी गड़बड़ी है लिहाजा अब नयी सिरे से लिस्ट बनेगी. फरवरी में नई लिस्ट बनी और अधिकारियों को प्रोन्नति और स्थानान्तरण भी मिला.
इस क्रम में जो महत्वपूर्ण फेरबदल हुआ वह लखनऊ में और गोंडा जिले में हुआ. दोनों ही जगह के पुलिस प्रमुख बदले गए. बदले तो कई जिलों के पुलिस प्रमुख गए लेकिन इन दोनों जिलों में हुआ फेरबदल सत्ता के गलियारे में चर्चा का विषय बना क्योंकि उस समय ये दोनों जिले एक खास कारण से चर्चा में थें. लखनऊ के तत्कालीन वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (एसएसपी) राम कृष्ण चतुर्वेदी जहाँ जिले की बिगड़ती कानून व्यवस्था के लिए चर्चा का विषय बने हुए थे तो वहीं गोंडा के त्तकालीन पुलिस अधीक्षक (एसपी) नवनीत राणा एक गौ तस्कर के.सी पाण्डेय, जो वर्तमान में राज्य मंत्री का दर्जा पाए हुए है , के विरुद्ध मोर्चा खोलने के कारण चर्चा के केंद्र में थे.
लिहाजा फरवरी में आयी स्थानान्तरण लिस्ट में दोनों को हटाया गया. लखनऊ में राम कृष्ण चरुर्वेदी की जगह पर जे रविंदर गौड को लाया गया और गोंडा में नवनीत राणा की जगह हरिनारायण को लाया गया पर जब तक हरिनारायण एसपी गोंडा का चार्ज सँभालते एक बार फिर फेर बदल किया गया और आर.पी.एस यादव को एसपी गोंडा बना कर भेजा गया. यानि नवनीत राना की जगह पर आर.पी.एस यादव ने एसपी गोंडा का चार्ज संभाला.
इन दोनों के स्थानातरण में जो खास बात रही, वह यह कि एक को उसकी नाकामी के प्रोन्नति देते हुए पुलिस उप-महानिरीक्षक कानपुर रेंज बना दिया गया और दूसरे को उसकी ईमानदारी के चलते पुलिस महानिदेशक कार्यालय से सम्बद्ध कर दिया. यानि युवा मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की नजर में कानून व्यवस्था का मतलब निक्कमे अधिकारीयों को प्रोन्नति देना और ईमानदार के पर कतरना है.
हत्या के आरोपी पुलिस एसएसपी रवीन्द्र गौड़
2005 बैच के इस आईपीएस अधिकारी की विशेषता का अंदाजा केवल इस बात लगाया जा सकता है कि मात्र आठ साल की सर्विस में इनको एसएसपी बना दिया जाता है जबकि इनसे वरिष्ठ अधिकारी अब भी प्रोमोशन का इंतज़ार ही कर रहे हैं. वह भी उस परिस्थिति में जब इस आईपीएस अधिकारी के दामन में दाग है.
10 फरबरी 2013 को एक अखबार में प्रकशित रिपोर्ट के अनुसार वर्तमान वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक जे रविन्द्र गौड़ पर फर्जी इनकाउंटर कर एक निर्दोष व्यक्ति की हत्या का आरोप है. जिसकी पहचान मुकुल के रूप में हुई थी.वहीं पुलिस ने मुकुल के दो साथियों विकी शर्मा और पंकज की गिरफ्तारी दिखाई थी. इसके बाद पुलिस ने पंकज, मुकुल और अन्य के खिलाफ तत्कालीन एसपी जे रविंद्र गौड़ की शिकायत पर फतेहगंज पुलिस स्टेशन में हत्या के प्रयास का मुकदमा दर्ज कराया. इस दौरान मुकुल के पिता बृजेंद्र कुमार गुप्ता ने इलाहाबाद हाईकोर्ट की शरण ली. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 2010 में मामले की जांच सीबीआई को सौंप दी. सीबीआई ने 23 जून को मामले में 12 पुलिसकर्मियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर ली, जिनमें 2005 बैच के आईपीएस अफसर जे रविन्द्र गौड़ भी थे.
अब सवाल उठता है कि 2005 बैच के आईपीएस अधिकारी जो 2007 तक अपर पुलिस अधीक्षक के पद पर रहा हो और जिस पर हत्या का आरोप रहा हो, कैसे मात्र आठ साल की सर्विस में प्रदेश की राजधानी का पुलिस प्रमुख बन गया ? जवाब साफ़ है कि अब सत्ता के गलियारों में अधिकारीयों का स्थानान्तरण योगियता और ईमानदारी के दम पर नहीं अपितु सत्ता में बैठी सरकार के प्रति अधिकारी की वफादारी से होता है.
इसकी एक बानगी गोंडा के वर्तमान एसपी आर.पी.एस यादव भी हैं. जिनके आने के बाद से गौ तस्कर और मौजूदा राज्यमंत्री के.सी पाण्डेय के विरुद्ध गौ तस्करी के मामले मे निवर्तमान पुलिस अधीक्षक नवनीत राणा द्वारा की जा रही जांच ख़त्म हो गयी है और उन्हें क्लीन चिट मिल गयी.
ऐसी स्थिति में अखिलेश सरकार का ये दावा कि राज्य की कानून व्यवस्था में सुधार के लिए ईमानदार अधिकारीयों की तरजीह दी जाएगी एक छलावा लगता है क्योंकि यदि ये दावा सही होता तो राजधानी का पुलिस प्रमुख एक दागी अधिकारी के बदले किसी बेदाग और निष्पक्ष अधिकारी को बनाया जाता.