मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपने पिछले कार्यकाल में विकास के रोडमैप की खूब चर्चा करते थे। जीतनराम मांझी के खिलाफ अभियान चलाने वाला ‘नीतीश गिरोह’ भी रोडमैप की बात करता था और मांझी पर रोडमैप की उपेक्षा करने का आरोप लगाता था। लेकिन नीतीश की नयी सरकार मांझी के तय रोडमैप पर चलने को विवश है।
वीरेंद्र यादव
नीतीश कुमार ने सत्ता संभालने के बाद पहले प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा था कि नयी सरकार मांझी के फैसलों की समीक्षा करेगी। बुधवार को हुई नीतीश कैबिनेट की पहली बैठक के पहले मांझी सरकार के फैसलों को नकारने की लंबी कवायद हुई, लेकिन उन निर्णयों को नकारने का साहस नीतीश नहीं जुटा पाए। अपनी पहली कैबिनेट में नीतीश कुमार महाधिवक्ता की नियुक्ति के एकमात्र फैसले को ही खारिज कर पाए। जीतनराम मांझी ने आज एक कार्यक्रम में स्वीकार किया कि हम नौ माह भले सीएम रहे हों, लेकिन गरीबों के लिए असली काम सात फरवरी के बाद ही किया। मांझी ने पत्रकारों के लिए पेंशन, दुसाध को महादलित शामिल करने, पुलसि कर्मियों को साल में 13 माह का वेतन देने, महिलाओं को सरकारी सेवा में 35 फीसदी आरक्षण, लड़कियों व दलितों के लिए स्नातकोत्तर तक की मुफ्त शिक्षा, गरीब सवर्णों के लिए आरक्षण के लिए कमेटी गठन, तीसरी व चौथी श्रेणी के ठेकों में अनुसूचित जाति के लिए आरक्षण व प्राथमिकता जैसे दर्जनों घोषणाएं अंतिम दिनों में ही की हैं।
घोषणाओं को नकारना असंभव
इसमें अधिकांश घोषणाएं जनहित से जुड़ी हैं और बहुमत को पंसद आ रही है। इस कारण इन घोषणाओं को सिरे से नकार देना भी नीतीश कुमार के लिए संभव नहीं है। यानी मांझी के दस-बारह दिन की सरकार ने कार्ययोजनाओं का जो रोड मैप बना दिया है, उससे अलग हटना सरकार के लिए संभव नहीं है। अब नीतीश कुमार को मांझी के रोडमैप पर चलने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। जलसंसाधन विभाग ने मांझी सरकार के रोडमैपर आगे बढ़ते हुए तीसरी और चौथी श्रेणी के ठेकों में दलितों के लिए प्राथमिकता देने का निर्देश जिला प्रशासन को भेज दिया है।