सच्चे अर्थों में देश के सच्चे लाल थे भारत के द्वितीय प्रधानमंत्री लाल बहादुर शात्री। अभावों में भी कोई व्यक्ति अपने कठोर संयम और निष्ठा से न केवल अपने स्वाभिमान की रक्षा कर सकता है, बल्कि अपने पुरुषार्थ से उच्च से उच्च लक्ष्य की प्राप्ति भी कर सकता है, यह उनके जीवन से सीखा जा सकता है।
उनके जीवन-चरित और विचारों से आज के राजनेताओं को शिक्षा लेनी चाहिये। आदर्श और सिद्धांत के वे प्रदीप्त दृष्टांत थे। आज हम चारो तरफ़ दृष्टि दौड़ा कर भी उनके जैसा कोई एक व्यक्ति भी नही पाते हैं। ऐसे मे भारत कैसे वांछित ऊंचाई पा सकेगा? हमारे समक्ष एक बड़ा प्रश्न है।
यह बातें पटना में शास्त्री जी की पुण्य-तिथि पर स्थानीय शास्त्री नगर उद्यान में, लाल बहादुर शास्त्री स्मृति समिति के तत्त्वावधान में आयोजित श्रद्धांजलि समारोह का उद्घाटन करते हुए, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही।
डा सुलभ ने कहा कि भारत के लोग शास्त्री जी को अपना आदर्श बनायें तभी सही दिशा में हम अग्रसर हो सकेंगे।
सभा की अध्यक्षता करते हुए समिति के अध्यक्ष और बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डा हरिराज मिश्र ने कहा कि, नयी पीढी के समक्ष आज अच्छे आदर्श नही रह गये हैं। उनकी दृष्टि में धन और सत्ता लोलुप राक्षसी प्रवृतियों वाले लोगों की विशाल आकृति है। दुर्भाग्य से अब वे इनके आदर्श बन रहे हैं। यह स्थिति बनी तो देश पराभव के गर्त में चला जायेगा। हमें इसे रोकना होगा।
इसके पूर्व अतिथियों के स्वागत के क्रम में समिति के महासचिव और वरिष्ठ साहित्यकार बलभद्र कल्याण ने शास्त्री जी के विराट व्यक्तित्व और कृतित्व पर विस्तार से चर्चा की। उनके जीवन के कई मह्त्त्वपूर्ण घटानाओं की चर्चा करते हुए उन्होंने बताया कि उनका जीवन-आदर्श किस प्रकार महान था। शास्त्री जी के उद्दात गुणों का अंश मात्र पाकर भी हम धन्य हो सकते हैं।
इस अवसर पर, संस्था के सचिव आचार्य पांचु राम, विनोद विहारी त्रिवेदी, हरिश्चन्द्र सिन्हा, कमलाकांत शर्मा, नरेन्द्र देव, विष्णु प्रभाकर पाण्डेय, शत्रुघ्न प्रसाद सिंह, शशिभूषण कुमार, शत्रुघ्न प्रसाद तथा कामाख्या नारायण सिंह ने भी अपने श्रद्धा उद्गार व्यक्त किये। आरंभ में उद्यान स्थित शास्त्री जी की प्रतिमा पर माल्यार्पण और पुष्पांजलि देकर कृतज्ञ राष्ट्र की ओर से श्रद्धांजलि दी गयी।