मुख्यमंत्री नीतीश कुमार राजनीतिक और प्रशासनिक मामलों में काफी परेशान चल रहे हैं। पार्टी के अंदर से अभी उनको कोई खतरा नहीं है, लेकिन बाहरी मोर्चों पर उन्हें कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
नौकरशाही ब्यूरो
चुनाव नजदीक आते देख नौकरशाही की आस्था भी दुविधा में दिख रही है। पूर्व सीएम जीतनराम मांझी ने नौकरशाही को दलितोन्मुख किया था। दलित अधिकारियों को बड़ी जिम्मेवारी दी जा रही थी। लेकिन नीतीश कुमार के वापस आने के बाद उस अभियान को धक्का लगा। इससे कई अधिकारी नीतीश के स्वभाविक ‘दुश्मन’ बन गए। हालांकि विरोध का कोई स्वर मुखर नहीं हुआ। लेकनि यह चुपी भी कम खरतनाक नहीं है। जीतनराम मांझी के भाजपा की ओर खिसकने के साथ ही उनसे सहानुभूति रखने वाले अधिकारी की निगाह भी भाजपा की ओर जा रही है।
डीएम-एसपी के ट्रांसफर में लालू की अनदेखी
इधर प्रशासनिक मामलों में राजद प्रमुख लालू यादव की बढ़ती अपेक्षा भी नीतीश के लिए किरकिरी बन रही है। सूत्रों के अनुसार, सचिवालय स्तर पर बदलाव के बाद जिलों और अनुमंडलों में ट्रांसफर को देखते हुए लालू ने भी अपनी लिस्ट थमा दी थी। हालांकि नीतीश ने लालू की सूची को नकार दिया था। लेकिन बताया जा रहा है कि इसी विवाद में डीएम-एसपी का ट्रांसफर भी लटक गया है। डीएम के ट्रांसफर में चुनाव प्रक्रिया भी एक बाधा मानी जा रही है।
कौन है किरकिरी
सीएमओ सूत्रों के अनुसार, सीएम नीतीश कुमार वफादार प्रशासनिक और पुलिस पदाधिकारियों की सूची बनवा रहे हैं। इसमें कुर्मी और भूमिहार को तरजीह दी जा रही है। सीएम अब सचिवालय के बाहर के प्रशासनिक तंत्र को मजबूत करना चाहते हैं। इसके लिए वफादार राजनीतिक कार्यकर्ताओं के बजाए वफादार अधिकारियों का तंत्र खड़ा चाहते हैं, जबकि उस तंत्र पर निगरानी के लिए स्वजातीय अधिकारियों की तैनाती भी चाहते हैं। वे घोर विरोधियों को हाशिए पर भी करना चाहते हैं। ऐसे आंख की किरकिरी की तलाश भी की जा रही है। अगले डेढ़-दो महीनों में इसका असर पर भी प्रशासनिक महकमा पर देखने को मिल सकता है।