आतंकवाद के मामले में गलत तरीके से फंसाये और हिरासत में लिये गये लोगों के पुनर्वास की सिफारिश को केंद्र सरका ने स्वीकार कर लिया है.

मोहम्मद आमिर 14 साल बाद निर्दोष
मोहम्मद आमिर 14 साल बाद निर्दोष

यह सिफारिश राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग ने केंद्र सरकार से की थी.

इसके अलावा सरकार इस बात पर भी सहमत हो गयी है कि दंगा पीड़ितों को समान मुआवजा दिया जाये.

सरकार ने गुरुवार को राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग की वर्ष 2010-11 की 18वीं वार्षिक रिपोर्ट की एक्शन टेकेन रिपोर्ट (एटीआर) पर अमल करने की बात कही है.

आगे बढ़ने की हामी भरी है। इसमें इस वर्ष अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री ने एक पूरक नोट जोड़ा है। अपनी संस्तुतियों में राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के तत्कालीन प्रमुख मुहम्मद शफी कुरैशी ने कहा था कि पुलिस अकादमी और पुलिस मुख्यालयों द्वारा समय-समय पर व्याख्यानों, कार्यशालाओं और गोष्ठियों का आयोजन करके पुलिस को अल्पसंख्यकों के प्रति जागरूक किया जाना चाहिए.

उनके अनुसार आतंकवाद से जुड़े मामलों में मुस्लिम युवकों की गिरफ्तारी से मुस्लिम समुदाय में असुरक्षा की भावना आई है.जो पीड़ित निर्दोष पाए जाते हैं और अदालतों से बरी हो जाते हैं उन्हें पुनर्वासित तो किया ही जाना चाहिए साथ ही उन्हें हर्जाना भी दिया जाना चाहिए. मालूम हो कि ऐसे सैंकड़ो उदाहरण सामने आये हैं कि विभिन्न राज्यों की एटीएस और स्थानीय पुलिस ने युवाओं को आतंकवाद के आरोप में हिरासत में ले लिया. कई सालों तक वे जेल में बंद रहे पर उनके खिलाफ कोई सुबूत नहीं मिलने के कारण अंत में उन्हें रिहा कर दिया गया. ऐसे में दर्जनों ऐसे छात्रों का करियर बर्बाद हो गया. इनमें कई इनजिनियर और वैज्ञानिक भी शामिल हैं.

ऐसे में सरकार का यह कदम सहानुभूतिपूर्ण माना जायेग. आयोग ने ऐसे युवाओं का करियर बर्बाद करने वाले पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने की भी बात की है.राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग ने यह रिपोर्ट सरकार को 2012 में सौंपी थी.

झूठे मुकदमे

मोहम्मद आमिर इनमें से एक हैं जिन्हें आतंकवाद के झूठे मुकदमे के कारण 14 साल जेल में बिताना पड़ा. लेकिन पुलिस उनके खिलाफ कोई सुबूत तक नहीं जुटा पायी. इस तरह के एक नहीं दर्जनों, बल्कि सैंकड़ों मिसालें हैं.

मुम्बई पुलिस के आतंकवाद निरोधक दस्ते (एटीएस) और सीबीआई ने मालेगांव में 8 सितंबर 2006 में हुए बम विस्फोट में नौ मुस्लिम युवकों के खिलाफ आरोपपत्र दायर किया था बाद में एनआईए ने इन नौ मुस्लिम युवकों के खिलाफ कोई सुबूत नहीं जुटा पायी थी. जिसके बाद इन्हें कोई दो साल जेल में रखने का बाद छोड़ा गया. इस मामले को अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष वजाहत हबीबुल्लाह ने एक खतरनाक ट्रेंड कहा था.हबीबुल्ला ने कहा, ‘यह नहीं होना चाहिए था क्योंकि यह खतरनाक है. यह इस बात का भी संकेत है कि वास्तविक आतंकवादी अब भी बाहर हैं।’ उन्होंने कहा कि ऐसे आतंकवाद से जुड़े मामलों में गलत तरीके से फंसाए गए युवकों के जीवन पर इस सब का गहरा असर पड़ता है.

इसी तरह इसरो में काम करने वाले एक युव वैज्ञानिक को तीन साल तक जेल में रखा गया. बाद में उन्हें छोड़ तो दिया गया पर इस बीच उनकी नौकरी चली गयी. वजाहत हबीबुल्लाह ने ऐसे मामले को काफी गंभीर बताया है और कहा कि इससे मुस्लिम युवाओं के दिलों में सिस्टम के प्रति नफरत फैलती है, इसे रोका जाना चाहिए.

By Editor


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