टॉपर घोटाला क्या अब गुमनाम अंत की तरफ बढ़ने लगा है? मई-जून महीने में जहां इस महाघोटाले ने बिहार में कोहराम मचा रखा था वहीं अब तक एक-एक कर इसमें शामिल 20 अभियुक्तों की जमानत हो गयी और मीडिया को समय पर भनक तक नहीं लगने दिया गया.

लालकेश्वर व उषा सिन्हा
लालकेश्वर व उषा सिन्हा

इर्शादुल हक, एडिटर नौकरशाही डॉट कॉम

तुर्रा यह कि इस घोटाले की किंगपिन माने जाने वाली प्रो. ऊषा सिन्हा की जमानत की खबर मीडिया को चार-पांच दिन बाद मिल सकी. ऊषा सिन्हा के बार में यह जान लेना जरूरी है कि वह तत्कालीन बोर्ड अध्यक्ष लालकेश्वर प्रसाद की पत्नी तो हैं ही, एक कालेज की प्रिंसिपल के साथ साथ विधायक भी रह चूकी हैं. स्वाभाविक है उनका राजनीतिक रसूख भी है. याद दिलाने की बात यह भी है कि गिरफ्तारी के बाद इन्हीं ऊषा सिन्हा की जमानत को अदालत ने खारिज कर दिया था. तो सवाल यह है कि जेल में बंद रहते हुए अचानक घोटाले के आरोप में वह कौन सा परिवर्तन हुआ कि जिनकी जमानत अदालत खारिज कर चुका था, उन्हें फिर जमानत मिल गयी.

भूलना नहीं चाहिए कि इस घोटाले से बिहार की भारी जगहंसाई हुई थी. खुद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी यह बात स्वीकार किया था. उन्होंने यह भी कहा था कि घोटालेबाजों को किसी हाल में बख्शा नहीं जायेगा. यह मान भी लिया जाये कि जमानत मिलने का मतलब यह नहीं कि आरोपी बख्शे जा रहे हैं, पर कुछ महत्वपूर्ण सवाल हैं जिनके उत्तर बिहार की जनता को चाहिए.

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तीन कारणों से फंसेगी लालकेश्वर की गर्दन

सवाल यह हैं कि पुलिस ने इस घोटाले में 32 लोगों को गिरफ्तार किया था. इन 32 में से 30 के खिलाफ पुलिस ने आरोप पत्र दाखिल कर दिया. सिर्फ दो के खिलाफ आरोप गठित नहीं हो सके. लेकिन अब तक 30 में से 20 आरोपी जमानत पा चुके हैं. यह दीगर बात है कि इस घोटाले के दो महा आरोपी लालकेश्वर व बच्चा राय अभी भी अंदर हैं.

कुछ लोग इस मामले में पटना पुलिस की सुस्ती बता रहे हैं. कह रहे हैं कि पुलिस की सुस्ती के कारण आरोपियों को जमानत मिलती जा रही है. सोचने की बात यह भी है कि पुलिस की इस सुस्ती के पीछे तो कोई नहीं है. क्या पुलिस किसी दबाव में तो काम नहीं कर रही है?

यहां इस सवाल को फिर से दोहराने की जरूरत है कि जमानत मिल जाने का मतलब तो यह नहीं कि वह आरोपी बरी हो गया, पर संदेह की गुजाईश इस बात को ले कर है कि जमानत मिल जाने के बाद मामले को ठंडे बस्ते में न डाल दिया जाये. और फिर आरोपी एक रूटीन की तरह अदालत में समय-समय पर हाजिरी लगा कर खुली हवा में सांस लेते रहे हैं. और इस तरह बरसों-बरस बीतता चला जाये.

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