राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा देने के प्रावधान वाले 123वें संविधान संशोधन विधेयक को लोकसभा ने सर्वसम्मति से पारित कर दिया। संविधान संशोधन विधेयक पारित करने के लिये जरुरी मतविभाजन में इसके पक्ष में 406 मत पड़े तथा विरोध में एक भी मत नहीं पड़ा।
करीब चार घंटे तक चली चर्चा के बाद हुए सदन ने बीजू जनता दल (बीजद) के भर्तृहरि मेहताब के एक संशोधन को 84 के मुकाबले 302 मतों से नकार दिया तथा सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री थावरचंद गहलोत द्वारा लाये गये संशोधनों को मंजूरी दे दी। इस विधेयक को लोकसभा पारित कर चुकी थी लेकिन राज्यसभा ने इसे कुछ संशोधनों के साथ पारित किया था जिस पर लोकसभा ने दोबारा चर्चा कर उस पर अपनी मुहर लगायी। विधेयक में किये गये नये संशोधनों के कारण इसे एक बार फिर राज्यसभा में पारित कराना होगा।
श्री गहलोत ने चर्चा का जवाब देते हुए कहा कि आयोग परामर्शी कार्यों के अलावा पिछड़े वर्गों की सामाजिक आर्थिक प्रगति में भागीदारी की पहल करेगा, विधेयक में इसका भी प्रावधान किया गया है। विधेयक में पिछड़ा वर्ग आयोग को अत्यधिक सक्षम निकाय बनाये जाने का प्रावधान किया गया है।
श्री गहलोत ने विपक्षी सदस्यों के सवालों का जवाब देते हुए कहा कि पिछड़ी जातियों को राज्यों की सूचियों में शामिल करने के काम में राष्ट्रीय आयोग की कोई भूमिका नहीं होगी। यह काम राज्य सरकारें करेंगी। केवल उन्हीं मामलों में राष्ट्रीय आयोग की भूमिका होगी जिनमें राज्य द्वारा किसी जाति को केन्द्रीय सूची में शामिल करने की सिफारिश की जाएगी। उन्होंने कहा कि राज्यों की सिफारिश पर भारत के महापंजीकार की रिपोर्ट ली जाएगी और उसकी स्वीकृति के बाद आयोग की स्वीकृत ली जाएगी। न्होंने कहा कि संविधान के 123वें संशोधन में विपक्षी सदस्यों के पूर्व में दिये गये संशोधनों को समाहित कर लिया गया है। आयोग में महिला सदस्य की नियुक्ति की अनिवार्यता नियमावली में जोड़ी जाएगी। विधेयक में आयोग के सदस्यों की योग्यता की शर्तें अन्य आयोगों की तर्ज पर रखी गयीं हैं।