वरिष्ठ पत्रकार विद्युत प्रकाश मौर्य ने श्रीनगर में अपनी आंखों से न सिर्फ सैलाब की तबाही देखी बल्कि खुद इस प्रलय से जीवनदान प्राप्त किया. पढिये उनके अनुभव
श्रीनगर शहर के लोग शनिवार छह सितंबर की रात इस उम्मीद के साथ सोए थे कि इतवार की सुबह खुशनुमा होगी। कई दिनों से लगातार हो रही बारिश रुक गई थी। अब उम्मीद थी मौसम खुशगवार होगा। आसपास के शहरों के रास्ते खुल जाएंगे और बाग सैलानियों से गुलजार होंगे। पर रविवार की सुबह साढ़े तीन बजे का वक्त था जब सारा शहर गहरी नींद में था पर शहर के बीचों बीच गुजरती झेलम नदी के पानी में भंयकर शोर था।
कई दिनों से कश्मीर के तमाम इलाकों में हुई बारिश के पानी को संभाल पाना महज 30 मीटर चौड़ाई वाले दरिया के लिए अब मुश्किल हो चुका था। दरिया पर बना बांध तेज बहाव का दबाव नहीं सह सका। बांध टूटने के साथ ही तेज गति के साथ पानी शहर में घुसा। छह फीट ऊंची पानी की धारा तेज गति से शहर में घुसी।
जिसकी भी नींद खुली उसने इस जल प्रलय का भयावह मंजर अपनी आंखों से देखा और चीखते हुए बिस्तर छोड़ उपरी मंजिलों की ओर भागने लगा। सैकड़ों लोग तो सोते सोते ही बह गए। पानी इतना तेज था कि दो घंटे में दो मंजिला इमारतें डूबा चुकी थीं। लोग तीसरी मंजिल की ओर भाग रहे थे। काफी लोगों ने छत पर शरण ली । कई लोग पेड़ पर चढ़ गए। मेरे लिए यह अनुभव कयामत की तबाही जैसी थीं। मैं बेबस और लाचार रहा. मेरी पत्नी माधवीऔर बेटा अनादी अनत भी मेरे संग थे। जीवन में मैंने इस तरह की कल्पना भी नहीं की कभी. अगर मुझसे कोई पूछे कि नया जीवनदान मिलना किसी कहते हैं तो निश्चित रूप से मैं इस घटना को ही बताऊंगा.
साठ साल में किसी ने झेलम का ऐसा रौद्र रूप नहीं देखा था। सालों भर किसी नाले सी दिखाई देने वाली झेलम पूरे शहर पर अपना गुस्सा दिखा रही थी।
रविवार की दोपहर तक लाल चौक, टूरिस्ट रिसेप्शन सेंटर, जम्मू एंड कश्मीर बैंक की मुख्य इमारत सब डूब चुके थे। शहर का सबसे लोकप्रिय इटिंग प्वाइंट कृष्णा ढाबा शनिवार की रात को गुलजार था। पर अगली दोपहर तक कृष्णा ढाबा उसके आसपास के हिंदुस्तान पेट्रोलियम के दो पेट्रोल पंप डूब गए थे। दोपहर तक पूरे शहर की बिजली गुल हो गई। मोबाइल और टेलीफोन सेवाएं बंद हो गईं। धरती का स्वर्ग कहा जाने वाला शहर कुछ ही घंटे में तबाह हो चुका था।
रविवार की शाम शहर के सबसे चहलपहल वाले इलाके डल गेट में पानी उफान मारने लगा। पानी का बहाव इतना तेज था कि डल झील के कई शिकारे टूट कर दो टुकडे हो गए।
अब तक यह होता था कि डल झील में पानी बढ़ने पर उसे डल गेट नंबर एक से चैनल द्वारा झेलम में छोड़ा जाता था। अब उल्टा हो रहा था झेलम का पानी डल झील में आ रहा था और डल झील का स्तर बढ़ता जा रहा था। डल के किनारे के सभी होटल पानी में डूब चुके थे। पूरे शहर में कोहराम मचा था। लोग सुरक्षित जगहों पर जाने के लिए नावें ढूंढ रहे थे तो बड़ी संख्या में लोग जान बचाने के लिए डल झील के पास स्थित शंकराचार्य पर्वत पर चढ़ने लगे।
अपनी बारी का इंतजार
राजभवन के हेलीपैड के अंदर और बाहर खुले आसमान के नीचे हजारों लोग अपनी बारी का इंतजार कर रहे हैं, कब उनका नंबर आएगा और उन्हें वायुसेना का हेलीकॉप्टर उठाकर सुरक्षित स्थान तक पहुंचा देगा। 7 सितंबर की सुबह झेलम दरिया ने जो तांडव दिखाया उसके बाद 80 फीसदी श्रीनगर शहर तबाह हो चुका है। धरती का स्वर्ग कहे जाने वाले इस शहर के तमाम सड़कों पर अभी भी 8 से 15 फीट तक पानी भरा है। शहर का राजबाग, लाल चौक, इंदिरा नगर, बंटवारा जैसे इलाके आठ दिनों से पानी में डूबे हुए हैं। शहर से श्रीनगर एयरपोर्ट जाने के लिए तीन रास्ते हैं पर तीनों में पानी भरा हुआ है।
श्रीनगर एयरपोर्ट से नियमित उड़ानें जारी हैं पर एयरपोर्ट पहुंचे तो कैसे… वहीं जम्मू-श्रीनगर हाईवे खुलने में अभी कई दिन लगेंगे। 25 हजार से ज्यादा विदेशी नागरिक, पर्यटक, बाहर से आकर श्रीनगर में नौकरी करने वाले, दूसरे राज्यों के मजदूर अभी भी आपदा में फंसे हुए बाहर निकलने के लिए दिन भर उम्मीद भरी निगाहों से अपनी बारी का इंतजार करते हैं पर शाम ढल जाती है और उनका नंबर नहीं आता। सहारनपुर के मोहम्मद मसूद का नंबर तीन दिनों के बाद आया। सैकड़ो लोग चार दिन पांच दिन से अपनी बारी का इंतजार कर रहे हैं पर उनका नंबर नहीं आ रहा। जिन लोगों का नंबर आ गया मानो उन्हें नई जिंदगी मिल गई। जिनकी बारी नहीं आ रही है उनके मन में जिंदगी को लेकर निराशा बढ़ रही है। पता नहीं घर पहुंच भी पाएंगे या नहीं।
फंसे हुए लोगों को निकालने के लिए राजभवन के नेहरु हैलीपैड से उड़ान भरने वाले वायु सेना के हेलीकाप्टर रोज 500 से 1500 लोगों को ही बचाकर एयरपोर्ट पहुंचा पा रहे हैं। शुरुआती तीन दिन कुप्रबंधन के कारण कम लोगों की लिफ्टिंग हो सकी। सभी लोगों को सुरक्षित निकालने के लिए हेलीकाप्टर के फेरे बढ़ाने जरूरी हैं।
राजभवन के बाहर हजारों लोग खुले आसमान के नीचे श्रीनगर की सर्द रातें गुजारने को मजबूर हैं। पीड़ित लोगों के लिए जो राजभवन के आसपास अपनी बारी का इंतजार करने वालों के लिए खाने-पीने की सामग्री आ रही है वह नाकाफी है। बच्चे भूख से बिलबिला रहे हैं। लोग तेजी से बीमार पड़ रहे हैं। पीने के पानी की कमी है।
सीमा सुरक्षा बल ने कई जगह रैन बसेरों का इंतजाम जरूर किया है, पर ये रैन बसेरे बेघर हुए लोगों के लिए कम हैं। वहीं जम्मू कश्मीर सरकार की ओर से कहीं राहत शिविर चलता हुआ दिखाई नहीं देता।