गांधीजी यह जान गये थे कि स्वतंत्रता आंदोलन में जब तक भारत की महिलाएं नहीं आयेंगी, तब तक देश स्वतंत्र नहीं होगा। इसलिए उन्होंने कस्तूरबा के माध्यम से महिलाओं को आगे लाया। देश में भारत की महिलाओं की जागृति में कस्तूरबा का योगदान अतुल्य है।
यह विचार सोमवार को पटना में गांधी स्मृति एवं दर्शन समिति, संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार तथा बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के संयुक्त तत्त्वावधान में, कस्तुरबा गांधी की पुण्य-तिथि पर आयोजित, ऐतिहासिक चंपारण सत्याग्रह के अग्रदूत पं राज कुमार शुक्ल स्मृति व्याख्यान का उद्घाटन करते हुए, प्रसिद्ध गांधीवादी चिंतक तथा त्रिपुरा के पूर्व राज्यपाल प्रो सिद्धेश्वर प्रसाद ने व्यक्त किये।
प्रो प्रसाद ने कहा कि, हम कस्तुरबा और गांधी को चंपारण लाने का ऐतिहासिक कार्य करने वाले पं राज कुमार शुक्ल जैसे महान व्यक्तियों को भूलने की भूल कर रहे हैं। हमें विकसित भारत बनाना है तो इन्हें याद रखना होगा।
सभा की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कहा कि, चंपारण का ऐतिहासिक सत्याग्रह ने, इस आंदोलन के जनक राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को, मोहनदास करमचन्द्र गांधी से ‘महात्मा-गांधी’ तो बनाया हीं, उनके विचारों और आचरण में भी क्रांतिकारी परिवर्तन लाया। यहीं उन्होंने ‘एक-वस्त्री’ होने का संकल्प लिया तथा खादी, हस्तकर्घा, चरखा और स्वछता के अकूंठ पक्षधर तथा प्रयोग-कर्ता बने। और यह प्रेरणा उन्हें चंपारण की महिलाओं से मिली। प्राथना-सभाओं में महिलाओं की अत्यल्प भागीदारी के संबंध में दुखीमन से जिज्ञासा करने पर जब उन्हें यह बताया गया कि, यहां की अधिकांश महिलाओं के पास मात्र एक साड़ी होती है और वे इस कारण से घर से बाहर नहीं निकलती, गांधी के पीड़ित मन ने एक अद्भुत संकल्प लिया, वह था कि जब तक भारत की सभी महिलाओं के पास पर्याप्त वस्त्र नहीं होते तबतक वे भी एक हीं वस्त्र धारण करेंगे। तभी से वे जीवन पर्यन्त अपने तन पर एक हीं धोती धारण करते रहे।
डा सुलभ ने कहा कि भले हीं चंपारण-आंदोलन में महिलाओं की सीधी भागीदारी कम रही, किंतु परोक्ष रूप में उनकी प्रेरणा ने स्वतंत्रता आंदोलन में महिलाओं को प्राण-शक्ति और दिव्य-उर्जा प्रदान की। ‘बा’ से प्रेरणा और प्रशिक्षण पाकर अनेक महिलाओं ने हस्तकर्घा तथा स्वच्छता व सफ़ाई के प्रचार-प्रसार और महिलाओं की जागृति में मह्त्तपूर्ण भूमिकाएं दर्ज करायीं।
इस अवसर पर अपने व्याख्यान में प्रसिद्ध कथा लेखिका डा उषा किरण खान ने कहा कि, चंपारण-सत्याग्रह गांधीजी का प्रस्थान बिन्दु माना जाता है। इस सत्याग्रह में महिलाओं की भूमिका इस कारण से उल्लेखनीय नही हो सकी, उसका कारण, बिहार की तत्कालीन सामाजिक व्यवस्था हीं थी, जिसमें घर की महिलाएं अपनी देहरी नहीं लांघ सकती थी। किंतु गांधीजी और ‘बा’ के प्रयास से इसमें व्यापक परिवर्तन अवश्य आया। गांधीजी ने स्त्रियों के प्रशिक्षण और उनकी सफ़ाई के प्रति उनकी चेतना के लिये व्यापक कार्य किया।