हाईकोर्ट ने गुरुवार को एक बार फिर मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी को झटका दे दिया। मुख्यमंत्री के चयन को लेकर शुक्रवार को होने वाले मतदान में आठ विधायक हिस्सा नहीं ले सकते। बताया जाता है कि जिन विधायकों को मतदान देने पर रोक लगाई गई है, वे मांझी खेमे के हैं। शक्ति परीक्षण से एक दिन पूर्व आए इस फैसले ने मांझी को बखौला दिया है।
मांझी को 20 फरवरी को विधानसभा में अपना बहुमत साबित करना है. आठ विधायकों के वोटिंग प्रक्रिया में हिस्सा नहीं लेने से विधानसभा में अधिकतम सदस्यों की संख्या 235 होगी। इस आधार पर अब बहुमत के लिए 113 विधायकों का समर्थन चाहिए.
जिनका वोटिंग राइट अदालत ने छीना है उनमें ज्ञानेंद्र सिंह ज्ञानू, राहुल कुमार, पूनम देवी, सुरेश चंचल, राजू सिंह , नीरज कुमार बब्लू और रवींद्र राय शामिल हैं. गौर तलब है कि ये तमाम एमएलए जद यू के बागी रहे हैं और मांझी की हिमायत कर रहे हैं.
इस बीच वोटिंग राइट से वंचित एक एमएलए राजू सिंह ने नौकरशाही डॉट इन को बताया है कि वे सभी एमएलए सुप्रीम कोर्ट जायेंगे
हाईकोर्ट का फैसला आने से पहले गुरुवार को विधानसभा स्पीकर उदय नारायण चौधरी ने बीजेपी को हटाकर जदयू को मुख्य विपक्षी दल का दर्जा दे दिया। अब भाजपा विधायक नंद किशोर यादव की जगह जदयू विधायक विजय चौधरी नेता प्रतिपक्ष बन गए हैं। नंद किशोर को नेता प्रतिपक्ष से हटाए जाने के बाद भाजपा विधायकों ने विस अध्यक्ष के कार्यालय के बाहर धरना दे दिया। विस गेट पर लगे गमलों को तोड़ दिया। इसकी वजह से मार्शल और विधायकों के बीच धक्का-मुक्की भी हुई। वहीं जदयू का कहना है कि मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी का समर्थन करने के वाली पार्टी विपक्ष में नहीं हो सकती। यही कारण है कि भाजपा की जगह जदयू को मुख्य विपक्षी पार्टी का दर्जा मिला है।
इस बीच नंद किशोर यादव ने नेता प्रतिपक्ष के रूप में मिलने वाली सुविधाओंको वापस कर दिया है। उन्होंने कहा कि स्पीकर कार्यालय जदयू कार्यालय के रूप में काम कर रहा है और स्पीकर उदय नारायण चौधरी नीतीश कुमार के दबाव में काम कर रहे हैं। साथ ही जदयू के पक्ष में हर निर्णय कर रहे हैं। यह लोकतांत्रिक मर्यादाओं के खिलाफ है।