दिनकर जयंती: नेता,अफसर सब राष्ट्रकवि के दीवाने पर उनके गांव की सुधि लेने वाला कोई नहीं
शिवानंद गिरि, सिमरिया से
सिमरिया आने पर ग्रामीणों की बात सुनना भी नेताओं व अधिकारियों को खराब लगती रही है। उदाहरण देखिए-एक बार तत्कालीन केन्द्रीय उधोग राज्यमंत्री कृष्णा शाही एक समारोह में आयीं हुई थी.स्थानीय युवा साहित्यकार शशिधर ने गांव के हालात तथा अन्य मुद्दों को गर्मजोशी से क्या रखा ,मंत्री महोदया का चेहरा लाल हो गया ।
जैसे ही कृष्णा शाही ने भाषण शुरू किया तो उन्होंने अपने भाषण में गांव व दिनकरजी की चर्चा कम यहां के लड़कों की अनुशासनहीनता की चर्चा ज्यादा की।समझा जा सकता है कि वो क्या सिमरिया के विकास के लिए पहल करेंगी?
इसी तरह, सांसद राजो सिंह का भी सुलूक रहा.एक बार तत्कालीन डीएम हरजोत कौर को भी एक समारोह में वहां के लोगों की पीड़ा नागवार गुजरी और वो इतनी नाराज हुई कि सिमरिया में पैर नहीं रखने की बात तक कह डाली।और हुआ भी ऐसा ही।भला हो ऐसे अधिकारियों व नेताओं को जो नाराजगी(अहं) के कारण सिमरिया के विकास में रूचि दिखाना मुनासिब नहीं समझें।
लेकिन ऐसे दर्जनों नेता व मंत्रियों के नाम हैं जो सिमरियों में “विकास की गंगा” बहा देने का दिवास्वप्न दिखा गए।
दिवास्वप्न दिखाते नेता
दिनकरजी के गर्भगृह को स्मारक बनाने की बरौनी रिफायनरी के तत्कालीन अधिकारी के़.पी़.शाही व आनंद कुमार के पहल पर की गई थी लेकिन सिमरिया में घटित एक घटना व जमीन संबंधी कानूनी दांवपेंच के बाद रिफाईनरी प्रबंधन ने मुहंमोड़ लिया ।हांलाकि रिफायनरी ने अपने स्त्तर से गांव में कई काम जरूर कराए हैं।गांव के इंटर हाईस्कूल टीचरों की कमी से जूझ रहा है।अस्पताल में डॉक्टर का दर्शन नहीं,चौबीस घंटे बिजली नहीं ,सड़कें खस्ताहाल,किसान फटेहाल यहीं है आज सिमरिया की पहचान।
जहां मूलभूत सुविधाओं के लिए लोग जद्दोजहद में लगे हो वहां नेताओं द्वारा “दिनकर शोध संस्थान “खोलने की बात बेमानी लगती है।
भला हो गांव के युवाओं का जिसने अपनी बदौलत न सिर्फ दिनकर की यादों को संजोए रखा है बल्कि उनके समारोह को गांव के त्योहार की तरह वर्षों से मनाते आ रहे हैं।
स्थानीय निवासी प्रवीण प्रियदर्शी कहते हैं कि अब हमलोगों का नेताओं पर से भरोसा उठ गया है लिहाजा गांव के लोगों व स्थानीय जनसहयोग से विकास सहित दिनकरजी की यादों को संजोंने में लगे हैं।
साहित्यकार संजीव फिरोज बताते हैं कि इस मिट्टी को नमन करने बीबीसी सहित कई विदेशी व राष्ट्रीय स्तर के पत्रकार आकर न सिर्फ पुस्तकालय बल्कि लोगों की तन्मयता की प्रशंसा की शायद नेताओं को थोड़ी भी समझ होती तो सिमरिया बदहाल नहीं होता।
दिनकर स्मृति विकास समिति के सचिव मुचकुंद कुमार कहते हैं कि हाल ही में दिनकर की दो रचनाओं केपचास साल होने के अवसर पर दिल्ली में आयोजित एक समारोह में पीएम नरेन्द्र मोदी ने भी शिरकत की लेकिन न तो उन रचनाओं के रचनाकार दिनकर व उनके गांव की ही सुधि ली गई।
सच तो यह हौ कि सरकार देश स्तर पर दिनकर के नाम पर जितनी राशि खर्च करती है उसका कुछ हिस्सा व सही देख रेख के लिए किसी प्रायोजक को दे दे तो सिमरिया राष्ट्रीय मानचित्र पर सांस्कृतिक विरासत को समेटे एक पर्यटक स्थल बन जाएगा।
बहरहाल,दिनकर के गांव सिमरिया के हालात व अधिकारियों व नेताओं की घोषणाओं से तो दिनकरजी द्वारा लिखित निम्न पंक्तियां सही साबित होती नजर आ रही है-