मांझी सरकार साढ़े तीन लाख नियोजित शिक्षकों को न तो पूरी तरह खुश करने का साहस दिखा पायी और न ही उनका कोपभाजन बनना स्वीकार किया.
अपने अस्तित्व बचाने के प्रयास के आखिर दिन मांझी कैबिनेट नियोजित शिक्षकों को वेतनमान देने की सैदांतिक सहमति दे कर जहां यह जताने की कोशिश तो कर दी कि सरकार उनको अब मानदेय के बदले वेतन देना चाहती है, पर इसके लिए एक उच्चस्तरीय समिति बनाने का फैसला लिया गया है.
यह समिति तय करेगी कि नियोजित शिक्षकों का वेतन क्या हो. इस फैसले में दूसरा तकनीकी पहलू यह है कि नियोजित शिक्षकों को वेतनमान तो दिये जायेंगे पर इसके लिए कुल 3.5 लाख शिक्षकों को एक मुश्त वेतनमान की श्रेणी में नहीं लाया जा सकेगा. इसके लिए उन्हें कई चरणों में यह फैसला करना पड़ेगा. चूंकि शिक्षकों को कई चरणों में वेतनाम दिया जायेगा इसलिए अब यह भी तय करना होगा कि किन शिक्षकों को वेतनमान की श्रेणी में पहले लाया जाये.
जाहिर है कि इसके लिए सरकार एक मापदंड तैयार करेगी. इनमें से एक मापदंड यह हो सकता है कि शिक्षकों की नियुक्ति में वरिष्ठता को बुनियाद बनाया जाये. मतलब साफ है कि साढ़े तीन लाख शिक्षकों में से अगर हरेक वर्ष 50 हजार शिक्षकों को भी वेतनमान की श्रेणी में लाया जाये तो इसके लिए कम से कम 5 वर्ष और लगेंगे. मतलब साफ है कि नियोजित शिक्षकों को अभी अपना संघर्ष जारी रखना पड़ेगा. चूंकि शिक्षकों को वेतमान देना एक बड़े वित्तीय बोझ सहने का मामला है इसलिए इस जोखिम को उठाना किसी भी सरकार के लिए आसान नहीं है.
हालांकि मांझी कैबिनेट ने कल शाम 31 फैसले लिये इनमें सरकारी नौकरियों में महिलाओं को 35 प्रतिशत आरक्षण देने का फैसला भी हुआ. इतना ही नहीं होमगार्डकर्मियों का दैनिक भत्ता 300 रुपये से बढ़ा कर चार सौ रुपये कर दिया गया.