दिवंगत लेखक

हिन्दी भाषा और साहित्य के विकास में लघु पत्र पत्रिकाओं की भूमिका अत्यंत सराहनीय, साहित्य सम्मेलन में आयोजित संगोष्ठी में वक्ताओं ने लघु पत्रिकाओं की पीड़ा भी गिनाई और इस अवसर पर दिवंगत लेखक प्रो अजय कुमार सिन्हा देवर्षि‘ की पुस्तक ‘भक्तिकाव्य में ईश्वर का मूल स्वरूप’का लोकार्पण किया गया।

पटना,१३ सितम्बर। हिन्दी भाषा और साहित्य की उन्नति और विकास में लघु पत्र पत्रिकाओं ने सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। ये पत्रिकाएँ भाषा और साहित्य की कार्यशालाओं की तरह रही हैं। इनके पीछे कोई औद्योगिक घराना नहीं रहा। फिर भी ये चलती रहीं हैं। नाम बदलते रहेकिंतु ये जीवित रहींक्योंकि इनके पीछे कवियों साहित्यकारों के हृदय लगे रहे। जब तक एक भी कवि जीवित रहेगालघु पत्रपत्रिकाएं किसी न किसी नामरूप में जीवित रहेंगी। 

यह बातें आज यहाँबिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन में आयोजित हिन्दी पखवारा के १३वें दिन हिन्दी भाषा और साहित्य के विकास में लघु पत्र पत्रिकाओं की भूमिकाविषय पर आयोजित संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए,सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा किये लघु पत्रपत्रिकाएँ हीं हैंजिनमें नवोदित कवियोंसाहित्यसेवियों और पत्रकारों को अवसर प्राप्त होते हैं और उन्हें प्रशिक्षण प्राप्त होता है। 

संगोष्ठी का विषयप्रवेश करते हुएसम्मेलन के उपाध्यक्ष नृपेंद्र नाथ गुप्त ने कहा किहिन्दी का पहला पत्र उदंत मार्तण्ड‘ का प्रकाशन ३० मई १८२६ को हुआ था। कोलकाता से प्रकाशित इस पत्र के संपादक कानपुर के पं युगल किशोर शुक्ल थे। इसके बाद राजा राम मोहन राय ने १९२९ में बंगदूतका प्रकाशन आरंभ किया। भारतेंदु हरिश्चन्द्र द्वारा प्रकाशित कवि वचन सुधा‘, ‘हरिश्चन्द्र पत्रिका‘ ‘हिन्दी प्रदीप‘, ‘भारत मित्र‘, ‘बंगवासी‘ ‘हिंदोस्थानआदि पत्रपत्रिकाओं ने हिन्दीसेवियों और हिन्दी प्रेमियों का बड़ा उत्साहवर्द्धन किया। बिहार में मुंशी हसन अली खान और पं केशवराम भट्ट के संपादन मेंबिहार बंधु‘ का प्रकाशन आरंभ हुआ। १८७६ में प्रकाशित विद्यार्थी‘,आदिमभाषाप्रकाशवैष्णव‘, चंपारण हितकारी‘ आदि पत्रपत्रिकाओं ने हिन्दी के विकास में अत्यंत महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।

इस अवसर पर दिवंगत लेखक प्रो अजय कुमार सिन्हा देवर्षि‘ की पुस्तक भक्तिकाव्य में ईश्वर का मूल स्वरूपका लोकार्पण किया गया। पुस्तक पर प्रकाश डालते हुए डा सुलभ ने कहा किविद्वान लेखक ने अत्यंत श्रमपूर्वक हिंदी साहित्य के भक्तिकाल के महान कवियों तुलसीदास,सूरदासजायसी,केशवदासनाभादास,माधव दासप्राणचंद चौहान आदि की रचनाओं को उद्धृत कर इस दर्शन को स्थापित किया है किभक्तिकाल में भीजिस काल को ईश्वर के सगुण साकार रूप की महिमा स्थापित की गईईश्वर का मूल स्वरूप निर्गुणनिराकार‘ हीं था। 

दिवंगत लेखक की पत्नी डा अर्चना कुमारी सिन्हाडा नागेश्वर यादवउपेन्द्र पाठकअभिजीत कश्यपडा विनय कुमार विष्णुपुरी,डा मनोज गोवर्द्धनपुरी,अनिल कुमार झा अधिवक्ता सोनू श्रीवास्तव तथा मनीष गुप्ता ने भी अपने विचार व्यक्त किए।

इस अवसर पर आयोजित कविगोष्ठी का आरंभ कवि जय प्रकाश पुजारी की वाणीवंदना से हुआ। वरिष्ठ कवयित्री कालिन्दी त्रिवेदी ने अपनी इन पंक्तियों से दार्शनिक चितन को अभिव्यक्ति दी कि,

सागर तल की गहराई मेंगिरि शिखरों की ऊँचाई मेंतू उस विराट को देख मनुजधरती के तृणतृण कण में/तू खोज रहा वन कुंजन मेंभगवान बसा तेरे मन में

डा शंकर प्रसाद कहना था कि, “सहरेचिराग़ हूँअब तो संभालो मुझकोअपने हीं दामन में अब छुपालो मुझको। व्यंग्य के चर्चित कवि ओम् प्रकाश पाण्डेय प्रकाशने व्यंग्य को छंद देते हुए कहा कि,

अपनी गोली अपने गुंडेअपनी पुलिस अपने डंडेअपनी मुर्ग़ी अपने अंडेअपनी पूजा अपने पंडेअपनी तिजोरी अपने चंदेअपनी बाज़ी अपने धंधेअपनी तिजोरी अपने चंदेअपनी रस्सी अपने फंदेअपनी सरकार अपना बंद

वरिष्ठ कवि सुनील कुमार दूबेकवयित्री डा सुधा सिन्हाडा शालिनी पाण्डेयडा आर प्रवेशराज कुमार प्रेमीआचार्य आनंद किशोर शास्त्रीजय प्रकाश पुजारीशुभचंद्र सिन्हापंकज प्रियम,लता प्रासरसच्चिदानंद सिन्हासियाराम ओझा तथा नेहाल कुमार सिंह ने भी अपनी रचनाओं का पाठ किया। मंच का संचालन किया योगेन्द्र प्रसाद मिश्र ने।

By Editor


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