पूर्व उप प्रधानमंत्री जगजीवन राम को संपूर्णता से समझना हो तो उनकी जीवनी जरूर पढ़नी चाहिए। 1954 में उनकी जीवनी को प्रख्यात साहित्यकार नलिन विलोचन शर्मा ने लिखा था। करीब 61 वर्षों बाद इसके पुनर्मुद्रण (reprint) के नये अंक का लोकार्पण शुक्रवार को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने किया।
वीरेंद्र यादव
(Jagjivan Ram: A Biography की समीक्षा )
जगजीवन राम: ए बायोग्राफी नामक पुस्तक का पुनर्मुद्रण जगजीवनराम संसदीय अध्ययन और राजनीतिक शोध संस्थान, पटना ने करवाया है। यह पुस्तक मूल प्रति का यथावत रूप है। इसमें कोई हेरफेर नहीं किया गया है। यहां तक कि पुस्तक की मूल प्रति में प्रस्तावना लिखने वाले तत्कालीन मुख्यमंत्री श्रीकृष्ण सिन्हा के नाम के नीचे परिचय भी मुख्यमंत्री के रूप में दिया है। रिप्रिंट में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और संस्थान के निदेशक श्रीकांत का आमुख/ प्रस्तावना ही नया जोड़ा गया है। इसमें पुस्तक के पुनर्मुद्रण, पुस्तक की विषय वस्तु, लेखक का योगदान और पुस्तक के महत्व पर प्रकाश डाला गया है। हालांकि पुस्तक के लेखक के संबंध में अलग से कोई परिचय नहीं लिखा गया है। इस कारण नलिन विलोचन शर्मा के संबंध में जानकारी हासिल करने में पाठकों को परेशानी हो सकती है।
ऐतिहासिक तस्वीरें
234 पन्नों की इस पुस्तक में जगजीवन बाबू के विभिन्न पक्षों और पहलूओं को स्पर्श करने की कोशिश की गयी है। 17 उपशीर्षकों में बंटी पुस्तक में जगजीवन बाबू के ग्राम्य जीवन से लेकर संसदीय जीवन की यात्राओं का भावपूर्ण, तथ्यगत और विस्तृत विवरण मौजूद है। छुआछूत की प्रताड़ना से लेकर मंत्री के रूप में उनके योगदान की भी चर्चा इस पुस्तक में है। पुस्तक के अंतिम 20 पन्नों में जगजीवन बाबू से जुड़ी तस्वीरें भी प्रकाशित हैं। ये तस्वीरें भी उनकी जीवन संघर्ष के दस्तावेज हैं। पुस्तक के संबंध में संस्थान के निदेशक श्रीकांत ने सही लिखा है कि पुस्तक तत्कालीन समय के सामाजिक जीवन के अंतर्विरोध और बदलाव को समझने भी सहायक होगी। जबकि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने लिखा है कि जगजीवन बाबू की जयंती के मौके पर पुस्तक उनकी प्रति सच्ची श्रद्धांजलि है।
समय से आगे
1950-60 के दशक में बिहार की प्रमुख हस्तियां अपने जीवन संघर्ष और अनुभवों को हिन्दी में लिख रहे थे। उस दौर में बाबूजी ने प्रख्यात साहित्याकर नलिन विलोचन शर्मा से अपनी जीवनी अंग्रेजी में लिखवायी और अपने संघर्षों को लोगों के सामने प्रस्तुत किया। पुस्तक प्रकाशन के बाद करीब 32 वर्षों तक बाबूजी ने भारतीय राजनीति में अपनी छाप छोड़ी थी। उनके इस हिस्से का अध्ययन भी जगजीवन राम संसदीय अध्ययन और राजनीतिक शोध संस्थान कराए तो समाज के लिए बड़ा योगदान होगा।