सूबे में आये दिन भूमि -विवाद कि घटना को लेकर खून ख़राबे की घटनायें घटित होती रहती हैं. सरकार ऐसी घटनाओं की रोकथाम के लिये कड़े कदम उठाने के के दावे करती हैं. लेकिन जमुई जिले के सिकंदरा बाजार में एक भूमि विवाद के मामले में एडीएम के फैसले ने सरकारी तंत्र को विवाद के कठघरे में लाकर खड़ा कर दिया.
मुकेश कुमार, जमुई से
सिकंदरा के तत्कालीन हल्का राजस्व कर्मचारी रामानंद दास ने नसीम खां व वसीम खां के मेल में आकर जालसाजी करके षड्यंत्र पूर्वक अलाउद्दीन वेग ग्राम +थाना -सिकंदरा की जमीन को हड़पने की नीयत से फरेबी केवाला न.10884 दिनांक 3.10.85 का दाखिल खारिज का फाइल बनाया. जिसका सत्यापन सुनील कुमार चौधरी , प्रभारी अंचल निरीक्षक सिकंदरा द्वारा कर सीओ ,सिकंदरा के कैम्प कोर्ट से 09.09.1988 को दाखिल खारिज का आदेश ले लिया गया. . बताते चले कि जमाबंदी न.51 में मात्र 14 डिसमील जमीन बची हुई थी जिसमें 22 डिसमील जमीन नही घटाया जा सकती हैं. जबकि ऐसा ही किया गया.
किस तरह धांधली की गई
मृत व्यक्ति को आवेदक बनाकर जमाबंदी की गई.जबकि मृत व्यक्ति के नाम पर जमाबंदी नही की जाती हैं दाखिल खारिज अपील वाद न. 01/2012 नसीम खां व अन्य बनाम अलाउद्दीन वेग व अन्य के फैसले में एलआरडीसी के फैसले के विरुद्ध एडीएम ने फैसला नसीम खां के पक्ष में सुनाया. जो चर्चा का विषय बनी हुआ है. इस फैसले के बाद अलाउद्दीन वेग की जमीन पर जिस तरह मजमा बनाकर सीओ की मौजूदगी में जमीन की नाजायज घेराबंदी की गई. उससे यह साबित हो गया की कानून मे आस्था रखने वाले अलाउद्दीन वेग की एक नही सुनी गई और बिना कागजात को देखे ही सम्पूर्ण भूमि पर बलात कब्जा जमाया जा रहा हैं.