लगभग नौ माह के ‘वनवास’ के बाद नीतीश कुमार के पिछले कार्यकाल में सुपर सीएम माने जा रहे सांसद रामचंद्र प्रसाद सिंह यानी आरसीपी लौट आए हैं। प्रशासनिक निर्णयों में उनकी राय मानी जा रही है। नौकरशाही से राजनीति में आए आरसीपी प्रशासनिक मामलों में नीतीश के सबसे विश्वस्त रहे हैं।
वीरेंद यादव
लोकसभा चुनाव में जदयू की हार का कारण आरसीपी सिंह को माना जा रहा था। प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से हार का दोष नीतीश से अधिक आरसीपी पर मढ़ा गया। समीक्षा बैठकों में सत्ता और संगठन पर आरसीपी के वर्चस्व पर सवाल उठाए गए। इससे परेशान आरसीपी मांझी राज में नेपथ्य में चले गए थे। फिर नीतीश के दरबार में उनकी ही बात सुनी जाती थी, लेकिन राजधानी में सार्वजनिक मंच पर आने से आरसीपी बचते रहे। हालांकि नीतीश की ‘माफी यात्रा’ में आरसीपी की भूमिका महतवूपर्ण रहती थी। मैनेजमेंट पूरी तरह आरसीपी सिंह का रहता था, लेकिन आमतौर वह मंच से दूरी बनाए रखते थे।
महत्ता बरकरार
लेकिन 22 फरवरी को शपथ ग्रहण के बाद नीतीश कुमार की पहली प्रेस कॉन्फ्रेंस में आरसीपी सिंह बहुत दिन बाद राजधानी में नीतीश के साथ मंच पर आए। इस दौरान पार्टी अध्यक्ष वशिष्ट नारायण सिंह और आरसीपी सिंह ने मुंह नहीं खोला। लेकिन आरसीपी की उपस्थित यह बताने के लिए काफी थी कि हम साथ-साथ हैं। अपनी जनसंपर्क यात्राओं में नीतीश कुमार जमीन खिसकने की बात स्वीकार करते थे। साथ में यह भी कहते थे कि हमसे किसी ने नहीं बताया कि पैर तले जमीन खिसक गयी थी। तब भी नीतीश के करीबी इस हालात के लिए आरसीपी को ही जिम्मेवार ठहराते थे। नीतीश की बर्बादी के लिए आरसीपी को जिम्मेवार मनाने वाले लोग भले नीतीश से दूर चले गए हों, पर आरसीपी अपनी जगह पर कायम है और अपनी महत्ता भी साबित करने में सफल हुए हैं।