महाश्वेता देवी सत्ता से मुठभेड़ करने वाली शोषितों एवं वंचितों की प्रख्यात लेखिका थी। वह अपने पात्रों की भूमि तक जाने वाली और एक गतिशील विचारधारा की लेखिका थी। उन्होंने अपने को आजीवन जन-आंदोलनों से संबद्ध रखा।
महाश्वेता देवी की याद में शुक्रवार को पटना के जगजीवन राम संसदीय अध्ययन एवं राजनीतिक शोध संस्थान में आयोजित स्मृति सभा की अध्यक्षता करते हुये कवि आलोक धन्वा ने ये बातें कहीं।
वरिष्ठ पत्रकार अरुण श्रीवास्तव ने महाश्वेता देवी के साथ कोलकाता में अपने बिताए क्षणों को याद करते हुए कहा कि वे मूलतः एक कार्यकर्त्ता थे और वे रिपोटों के आधार पर जमीन पड़ताल कर कहानियां और उपन्यास लिखती थी। उन्होंने ‘‘वर्तिका’’ पत्रिका निकाली जिसमें कृषि-श्रमिकों की जमीनी हकीकत का वर्णन होता था।
साहित्यकार प्रेम कुमार मणि ने कहा कि महाश्वेता जनता के साथ संबद्ध थी और उनके साथ एकाकार हो जाती थी। उनके निधन से आदिवासियों और वंचित समाज की आवाज उठाने वाला एक अभिभावक खो गया। हम जनता के साथ एकाकार होना सीखे, उनके प्रति यही सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
इस अवसर पर प्रभात सरसिज ने भी अपने संस्मरण सुनाये।
इस अवसर पर संस्थान के निदेशक श्रीकांत, अजय, शशि भूषण, नीरज, अरुण सिंह, मनोरमा सिंह, सुषमा कुमारी, अजय त्रिवेदी, राकेश, ममीत प्रकाश सहित कई साहित्यकार एवं पत्रकार मौजूद थे।