उत्तराखंड उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के एम जोसेफ को उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश न बनाये जाने पर विपक्ष की आलोचना के जवाब में केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने आज स्पष्ट किया कि किसी न्यायाधीश के नाम पर पुनर्विचार के लिए फाइल वापस भेजने का अधिकार शीर्ष अदालत ने खुद सरकार को दिया है और इसे न्यायमूर्ति जोसेफ के पूर्व के किसी फैसले से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए।
केंद्रीय मंत्रिमंडल के फैसलों की जानकारी देने के लिए आयोजित संवाददाता सम्मेलन में श्री प्रसाद ने एक सवाल के जवाब में कहा कि किसी न्यायाधीश की पदोन्नति की फाइल पुनर्विचार के लिए कॉलेजियम को भेजने का अधिकार सरकार के पास मौजूद है और यह अधिकार स्वयं शीर्ष अदालत ने अपने 1993, 1998 और 2015 के फैसलों में दिया है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस एवं कुछ अन्य दलों का यह आरोप सरासर भ्रामक है कि उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन को निरस्त करने के कारण न्यायमूर्ति जोसेफ को उच्चतम न्ययालय का न्यायाधीश नहीं बनाया गया है। पदोन्नति मामले से इसका कोई लेना देना नहीं है।
श्री प्रसाद ने कहा कि यदि सरकार कुत्सित मानसिकता से काम करती तो राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) गठित करने संबंधी संविधान संशोधन कानून को निरस्त करने वाले न्यायाधीश जे एस केहर देश के मुख्य न्यायाधीश नहीं बनाये गये होते। न्यायमूर्ति केहर मुख्य न्यायाधीश बने भी और बेहतर काम भी किया। केंद्रीय मंत्री ने इस मुद्दे पर विभिन्न न्यायविदों की प्रतिक्रिया पर कुछ भी कहने से यह कहते हुए इन्कार कर दिया कि वह सिर्फ इतना कह सकते हैं कि सरकार देश में स्वतंत्र न्यायपालिका की सदैव पक्षधर रही है और इसके सम्मान से कोई समझौता नहीं किया जायेगा।