शेरवानी में नीतीश, कुछ नया संदेश, कुछ नये मंसूबे
बॉडी लैंगुएज पर काफी बात होती है कि किस प्रकार शरीर का हावभाव मन का हाल बता देता है, उसी तरह आपकी ड्रेस भी बहुत कुछ कह जाती है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इधर नए पहनावे में दिखे हैं। क्या है इसका अर्थ?
कुमार अनिल
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार केंद्र में भी मंत्री रहे हैं। अपने लंबे राजनीतिक जीवन में वे प्रायः सफेद कुर्ते-पायजामे में ही दिखते रहे हैं। जाड़े के दिनों में स्वेटर और मफलर भी ड्रेस में शामिल होता रहा है, पर हाल के दिनों में कई बार वे शेरवानी में दिखे हैं। ऐसे तो किसी व्यक्ति की ड्रेस कुछ भी हो सकती है। यह उसकी निजी स्वतंत्रता का मामला है, पर इस दौर में जब कुछ लोगों के लिए ‘ड्रेस से ही उपद्रवियों की पहचान ’ हो जाती है, तब ड्रेस ही नहीं, टैगोर जैसी दाढ़ी सबकुछ लोगों में चर्चा का विषय हो जाता है।
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भारतीय नेताओं की लंबी फेहरिस्त में मौलाना आजाद हमेशा शेरवानी पहना करते थे। पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह भी प्रायः शेरवानी नजर आते थे। उनकी फरवाली टोपी पर तो खूब विवाद भी छिड़ा। तब इंडिया टुडे (India Today) ने लिखा था कि उनकी फरवाली टोपी को उनके विरोधियों ने मुद्दा बना दिया था। इसे ‘जिन्ना टोपी ’ कहा गया। यह भी कहा गया कि यह देश के मुस्लिमों को आकर्षित करने का जरिया है।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की शेरवानी पहनने के दो अर्थ निकाले जा सकते हैं। पहला यह कि वे हिंदुस्तानी परंपरा का सम्मान करते हैं। इस परंपरा में महात्मा गांधी की एक ही धोती से पूरा शरीर ढकना है, तो पायजामा-कुर्ता भी है। आंबेडकर तो अंग्रेजी सूट पहनते थे। जैसे टीका लगाना और टोपी पहनना, दोनों भारतीय परंपरा का हिस्सा है, वैसे ही शेरवानी भी हमारी परंपरा का हिस्सा है। इसलिए मुख्यमंत्री का शेरवानी पहनना भारतीय विविधता का सम्मान करना है।
दूसरी बात यह कि हाल के दिनों में कई ऐसे मौके आए हैं, जब जदयू ने भाजपा के साथ अपनी स्वतंत्रता की लकीर खींची है। अरुणाचल प्रदेश में जदयू के विधायकों को तोड़ने के बाद पार्टी ने अपनी नाराजगी सार्वजनिक तौर पर बयां की थी। पार्टी ने यहां तक कहा कि देश के कुछ हिस्से में ‘लव जिहाद ’ के नाम पर विवाद खड़ा किया जा रहा है। बिहार में ऐसे कानून की कोई जरूरत नहीं है। अरुणाचल की घटना के बाद मुख्यमंत्री ने जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद छोड़ दिया था और संगठन की कमान पार्टी के वरिष्ठ नेता आरसीपी सिंह को सौंप दी थी। तो क्या शेरवानी पहनना भी उसी कड़ी में एनडीए में रहते हुए अपनी स्वतंत्र पहचान की लकीर है?