Surgical Strike: चुनावी मैदान से यूं ही नहीं हटे हैं फातमी, क्या है गेमप्लान?
अली अशरफ फातमी ने मधुबनी से अपना नामांकन वापस ले लिया है. उन्होंने यूं ही नामांकन वापस नहीं लिया.नामांकन वापसी के पीछे उनका कुछ बड़ा गेमप्लान है.
आखिर-आखिर तक अली अशरफ फातमी इस इंतजार में थे कि राजद उन्हें कहीं एडजस्ट कर देगा. इसके लिए उन्होंने प्रेशर टैक्टिस का भरपूर इस्तेमाल किया. लेकिन राजद टस से मस नहीं हुआ.फातमी इस उम्मीद भी थे कि मधुबनी सीट जिस विकासशील इंसान पार्टी को दी गयी है, उसे प्रत्याशी नहीं मिल रहा था.
संभव था कि उसी दल राजद उन्हें टिकट दिलवा देता. लेकिन यह भी नहीं हुआ. नामांकन के अंतिम दिन उन्होंने बसपा से अपना पर्चा भरा. और आज जब नाम वापसी का अंतिम दिन था, उन्होंने अपना नाम वापस ले लिया.
फातमी की रणनीति
इसके बाद फातमी ने इसकी जानकारी पत्रकारों को दी. हालांकि उन्होंने अपनी रणनीति का खुलासा नहीं किया कि अब वह क्या करेंगे. लेकिन बस इतना इशारा जरूर दिया कि वह भाजपा को हराने में अपनी पूरी ताकत लगायेंगे.
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यहां कुछ लोग इस मुगालते में हैं कि भाजपा को हराने का मतलब यह नहीं है कि फातमी राजद गठबंधन के उम्मीदवार को जिताने के लिए मेहनत करेंगे. दर असल वह भाजपा को हराना तो चाहते हैं लेकिन मुकेश सहनी की वीआईपी को भी जीतने नहीं देना चाहते.
जब फातमी प्रेस कांफ्रेंस में अपने नामांकन लेने के फैसले को विस्तार से बता रहे थे तो वह बार बार मौलाना वली रहमानी का नाम ले रहे थे. मौलाना रहमानी आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के महासचिव और इमारत ए शरिया के प्रमुख हैं. फातमी बार बार कह रहे थे कि वली रहमानी साहब की इस इलाके में मजबूत पकड़ है. वह आगे की रणनीति उनसे मिल कर तय करेंगे.
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लेकिन सच्चाई यह है कि फातमी ने अपनी अगली रणनीति तय कर ली है. दर असल फातमी राजद से निकाले जाने के बाद खुदको आहत महसूस कर रहे हैं. वह अब राजद को अपनी ताकत दिखाना चाहते हैं. वह अपनी ताकत इसी शर्त पर दिखा सकते हैं कि जब वीआईपी का प्रत्याशी हारे. इसके लिए इस बात की प्रबल संभावना है कि च वह शकील अहमद के समर्थन में कूद जायें.
शकील अहमद चंद रोज पहले तक कांग्रेस के बड़े नेता थे. उन्होंने पार्टी पदों से इस्तीफा दे कर मधुबनी से निर्दलीय नामांकन भरा है. नामांकन उन्होंने कांग्रेस के मेम्बर की हैसियत से भी भरा था और चुनाव आयोग को आश्वासन दिया था कि वह पार्टी का सिम्बल समय पर जमा कर देंगे. पार्टी औपचारिक रूप से उन्हें सम्बल इसलिए नहीं दे सकती थी क्योंकि वहां की सीट उसने अपने गठबंधन सहयोगी को अलाट की है.
शकील पर सॉफ्ट कांग्रेस
ऐसे में कांग्रेस के अंदरूनी सूत्र चाहते हैं कि फातमी लड़ें. उन्हें अपने बूते चुनाव जीतना होगा. अगर जीत जाते हैं तो वह कांग्रेस में शामिल हो सकते हैं. राजद भी इस बात को समझता है. झारखंड की चतरा सीट पर राजद और कांग्रेस प्रत्याशियों की फ्रेंडली फाइट हो रही है.
इस मामले का दूसरा पहलु यह है कि महागठबंधन के सहयोगी वीआईपी के उम्मीदवार की राजनीतिक पकड़ बिल्कुल भी नहीं है. ऐसे में फातमी ने मैदान छोड़ कर शकील अहमद को ताकत सौंप दी है. शकील इस सीट से सांसद रह चुके हैं. यहां शकील अहमद की पकड़ अली अशरफ फातमी से ज्यादा मजबूत है. फातमी के हटने के बाद मधुबनी में असल टक्कर भाजपा और शकील अहमद के बीच ही होगी.
अब सवाल यह है कि फातमी जो कल तक जोश में थे, अब किन शर्तों पर चुनावी जंग से अलग हो गये हैं? यह सवाल अहम है. चूंकि फातमी ने प्रेस कांफ्रेंस में साफ कहा है कि वह एक नेता हैं. अपनी हैसियत के हिसाब से किसी भी पार्टी में स्थान ले लेंगे. जाहिर है, अगर शकील जीत जाते हैं तो शकील अहमद इस मामले में फातमी की बड़ी मदद कर सकते हैं.
कुछ सियासी पंडित यह अनुमान लगा रहे हैं कि फातमी को राज्यसभा भी भेजा जा सकता है. अगर सबकुछ रणनीतिक लिहाज से चला और शकील जीत गये तो कांग्रेस में उनकी वापसी तय है. और तब कांग्रेस उन्हें राज्यसभा भेज सकती है. कांग्रेस ने महागठबंधन में सीट बंटवारे के समय कम सीट मिलने पर राजद से यह आश्वासन पहले ही ले लिया है कि राज्यसभा चुनाव में उसके प्रत्याशी को पहली प्राथमिकता दी जायेगी.
आखिरी बात
भले ही कांग्रेस व राजद गठबंधन में हैं. पर अंदर ही अंदर सबकुछ ठीक नहीं है. लोग बार बार सवाल कर रहे हैं कि राहुल गांधी के चुनावी सभाओं में तेजस्वी क्यों नहीं जाते. अब तक दो फेज का चुनाव हो चुका है. तीसरे फेज का प्रचार भी खत्म हो चुका है. कोसी, मिथिलांचल और सीमांचल ही कांग्रेस का गढ़ है. लेकिन अब तक दोनों दलों के नेता एक मंच पर नहीं आये. ऐसे में शकील अहमद का निर्दलीय लड़ना यूं ही नहीं है. विश्लेषकों का मानना है कि शकील अहमद कांग्रेस आला कमान से बगावत नहीं कर सकते. इसलिए संभव है कि कांग्रेस पोरक्ष रूप से शकील के साथ जरूर है.