जी-मेन व नीट-मेडिकल में लाखों छात्र भाग लेते हैं पर सफलता के लिए जरूरी नहीं कि आप केवल प्रतिभाशाली हों. परीक्षा विशेषेज्ञ अमरदीप झा गौतम उन तकनीकी बारीकियों का रहस्योद्घाटन कर रहे हैं जिन्हें जान कर सफलता प्राप्त की जा सकती है.
लगभग 12 लाख बच्चे जी-मेन और लगभग 11.50 लाख बच्चे नीट-मेडिकल की परीक्षा देते हैं, जिनमें लगभग 40-50 हजार बच्चों का केन्द्र-सरकार के अंगीभूत इंजीनियरिंग कॉलेज और लगभग 12 हजार बच्चे केन्द्र-सरकार और राज्य-सरकार द्वारा मान्यता-प्राप्त मेडिकल कॉलेज में नामांकन संभव हो पाता है.
लगभग 9वीं कक्षा से बच्चों के अंदर यह पनपने लगता है कि हमें अपनी पढ़ाई को किस दिशा में रखना है या मुझे अपना करिअर किस विषय को लेकर बनाना है. पर,उचित मार्गदर्शन या खुद की कमी के कारण वे अपने लक्ष्य को प्राप्त करने की तीव्रता को बनाये नहीं रख पाते और 10वीं पास होने के बाद फिर से अपने काम में पूरे मनोयोग से जोड़ने का प्रयास करते हैं.
इन बिंदुओं को गांठ बांध लीजिए
इस चर्चा के क्रम में एक तथ्य उन चीजों पर कि वो कौन बच्चे हैं जो लाखों की भीड़ से आगे निकलकर खुद को आई.आई.टी. या मेडिकल-कॉलेज में प्रवेश पाते हैं ? उनकी कार्यप्रणाली,उनका मानसिक चिंतन और विश्लेषणात्मक-अध्ययन के साथ-साथ उनकी दिनचर्या,उनके मित्र-मंडली का आकर्षण-केन्द्र और उद्बोधन किन चीजों को लेकर सबसे ज्यादा रहता है ? उनके जीवन का उमंग,उत्साह और रोमांच अपने लक्ष्य को लेकर कितना प्रगाढ़ है ? उनकी चिंतनशीलता के मुख्य-केंद्र में लक्ष्य-प्राप्ति की तीव्रता का मान कितना है ? अगर कोई बच्चा जी-मेन या नीट (मेडिकल) में एक प्रश्न गलत कर लेता है तो उसके पाँच नम्बर घट जाते हैं (चार+एक). अब किसी बच्चे की तीव्रता इतनी ज्यादा है कि वह इस पाँच नंबर के घटते ही अपना स्थान ऊपर बनाये रखे तो इस बच्चे का चयन हो जायेगा, वहीं मात्र एक प्रश्न गलत करने वाले छात्र का स्थान बहुत नीचे आ जायेगा. दिल्ली,कोटा,पटना,चेन्नई,कोलकाता,बनारस आदि स्थानों पर स्थापित शिक्षण-संस्थानों के उन छात्रों के साथ प्रतियोगिता होती है,जो या तो एन.टी.एस.ई. या ओलंपियाड जैसी परीक्षाओं में भाग लेकर प्रतियोगी-परीक्षाओं को लेकर सिद्धहस्त हो रहे हैं या अपने बैच में अपना अच्छा रैंक बनाये रहते हैं.
संस्थान किन छात्रों पर देते हैं ध्यान
इस बात को ठीक से समझना जरुरी है कि ऐसे संस्थान इन बच्चों के लिये मात्र पॉलिश करने वाली चीज होती है ना कि उनके मेधा को बनाने या निखारने को लेकर उद्द्यत,क्योंकि ऐसे संस्थान मात्र कुछेक बच्चों पर ही अपना विशेष ध्यान देकर रिजल्ट लाते है. यही कारण है कि इन संस्थानों में उत्तीर्ण छात्रों की गिनती वहाँ नामांकित छात्रों की तुलना से बहुत कम होती है.
अब चर्चा एलिट इन्स्टिच्युट जैसी संस्था को लेकर जो छात्रों के मौलिक-प्रश्नों से लेकर प्रतियोगिता-परीक्षाओं को लेकर उनकी समझ ठीक कर सके. संस्थान प्रत्येक बैच में 45 बच्चों की संख्या ही रखता है,जिससे प्रत्येक छात्र-छात्रा को अपने शिक्षक से अपनी समस्या रखने और उसका हल खोजने में किसी भीड़ का सामना नहीं करना पड़े.
समयवार परीक्षाओं का आयोजन और लक्ष्य-प्राप्ति के समुचित निर्धारण के लिये उनके बौद्धिक और भावनात्मक मजबूती का प्रयोग एलिट के छात्रों के उन्नयन में सहायक रहा है. अद्वितीय शैक्षणिक-माहौल के कारण बच्चों के अंदर स्वजागरण की असीम संभावना,जिसके कारण छात्र-छात्राओं का प्रतियोगिता को जीतकर अपना नाम एलिट के साथ जोड़ने का शौक. अपने पूर्ववर्ती छात्र-छात्राओं के बेहतर-प्रदर्शन और आज भी एलिट में उनका मान और उनके अंदर संस्थान को लेकर भावनात्मकता एकरूपता की परंपरा वर्तमान छात्रों के लिये प्रेरणा-स्त्रोत, जिसके कारण बच्चे की ऊर्जा सकारात्मक और लोक-कल्याण को अभिव्यंजित करती है.
एलिट संस्थान की प्रतियोगिता किसी संस्थान से नहीं, बल्कि उन हजारों बच्चों से है जिसको पीछे छोड़कर एलिट के बच्चे अपने मध्यम-वर्गीय परिवार को ऊँचा उठाने और अपने समाज को शक्ति का संबल देने के लिये कृत-संकल्पित हैं.
अमरदीप झा गौतम. एलिट इन्स्टिच्युट,पटना के निदेशक व फिजिक्स के विख्यात शिक्षक हैं. पिछले डेढ़ दशक में उनके प्रयास से हजारों छात्रों ने सफलता के कीर्तिमान स्थापित किये हैं. उनसे [email protected] पर सम्पर्क किया जा सकता है.[author image=”https://naukarshahi.com/wp-content/uploads/2018/01/amardeep.2.jpg” ]अमरदीप झा गौतम. एलिट इन्स्टिच्युट,पटना के निदेशक व फिजिक्स के विख्यात शिक्षक हैं. पिछले डेढ़ दशक में उनके प्रयास से हजारों छात्रों ने सफलता के कीर्तिमान स्थापित किये हैं. उनसे [email protected] पर सम्पर्क किया जा सकता है. [/author]