केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान को बिहार का राज्यपाल बनाया गया है। केंद्र के इस निर्णय से जदयू नेतृत्व की चिंता बढ़ गई है। आरिफ मोहम्मद का कार्यकाल केरल में कैसा था और उन्होंने वहां की वाम सरकार के साथ क्या किया, यह किसी से छिपा नहीं है। वे जब तक केरल में रहे, वहां की सरकार के साथ उनका संघर्ष चलता रहा। अब वे बिहार के राज्यपाल बनाए गए हैं, तो क्या वे उसी तरह सत्ता का समानांतर केंद्र बन कर काम करेंगे। इस सवाल ने जदयू खेमे को परेशन कर दिया है।
आरिफ मोहम्मद खान और वहां की सरकार के बीच लगातार संघर्ष और तनाव चलता रहा। खान ने पहले शिक्षा विभाग में हस्तक्षेप करना शुरू किया, फिर तो हर प्रमुख मुद्दे पर वे राज्य सरकार के खिलाफ स्टैंड लेते दिखे। हालत इतनी खराब हो गई कि राज्य सरकार को सुप्रीम कोर्ट जाना पड़ा। वाम सरकार भी राज्यपाल के खिलाफ खुल कर बोलती रही। राज्य सरकार ने आरोप लगाया था कि खान राज्य की शिक्षा व्यवस्था का भगवाकरण कर रहे हैं।
अब वही आरिफ मोहम्मद खान बिहार के राज्यपाल बनाए गए हैं, तो जदयू खेमे में चिंता स्वाभाविक है। आज तक नीतीश कुमार ने कभी तनाव पैदा करने वाले राज्यपाल को स्वीकार नहीं किया। उनकी इच्छा के अनुसार काम करने वाले राज्यपाल ही बिहार के राजभवन में रहे, यह पहला अवसर है, जब ऐसे राज्यपाल से नीतीश सरकार का पाला पड़ा है, जो राज्य सरकार के साथ तनाव पैदा करने के लिए जाने जाते हैं।
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नीतीश और तेजस्वी दोनों बिहार यात्रा पर, दोनों में बेहतर कौन, सफल कौन?
सवाल यह है कि क्या भाजपा अगले साल बिहार विधानसभा चुनाव से पहले नीतीश कुमार के साथ कोई खेला कर सकती है। इस मामले में राजनीतिक गलियारे में लोगों की अलग-अलग राय है। वैसे इस बात को सभी मान रहे हैं कि आरिफ मोहम्मद खान जैसे सक्रिय राज्यपाल को बिहार भेजने के पीछ कुछ न कुछ खास बात है। सबको इंतजार है कि वे कार्यभार संभालने के बाद किस तरह काम करते हैं। इसलिए आने वाले महीना-दो महीना विशेष होने वाले हैं।