स्मृति में प्रकाशित श्रद्धांजलि–ग्रंथ ‘शिवचंद्र :स्
पटना,२७ सितम्बर। किसी भी महान व्यक्तित्व के प्रति श्रद्धांजलि देने के दो हीं श्रेष्ठ मार्ग हैं। पहला यह कि, उनके आदर्शों और मार्ग का अनुसरण किया जाए तथा दूसरा उनकी स्मृति को चिर–स्थाई बनाया जाए, जिससे कि आने वाली पीढ़ियाँ उनसे प्रेरणा लेती रहे। स्मृति को चिर–स्थाई बनाने में ‘जीवनी‘और ‘स्मृति–ग्रंथ‘के प्रकाशन सर्वश्रेष्ठ है, क्योंकि साहित्य के रूप में ये ग्रंथ विशिष्ठजनों को चिरायु बनाते हैं। शिक्षा को ग्रामोन्वयन और लोक–संस्कृति के विकास में श्रेष्ठतम साधन मानने वाले, ऐसे हीं एक महान शिक्षक और लोकप्रिय समाजसेवी बाबू शिवचंद्र शर्मा के जीवन और समाज के लिए किए गए उनके वलिदानों और संघर्षों पर, एक अत्यंत मूल्यवान पुस्तक ‘शिवचंद्र: स्मृति–पुष्प
यह बातें आज यहाँ, बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन में,शर्मा जी की द्वितीय पुण्यतिथि पर आयोजित स्मृति–पर्व एवं पुस्तक–लोकार्पण समारोह की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि, शर्मा जी का व्यक्तित्व और कृतित्व आकर्षक और अनुकरणीय है। पुस्तक में विद्वानों ने जो अपने संस्मरण प्रस्तुत किए हैं उनसे उनके स्तुत्य चरित्र का स्फटिक के समान दर्शन होता है। समाज की समस्याओं का समाज के हीं संगठित प्रयास और श्रम से सहजता से किया जा सकता है,यह उनके कार्यों से सीखा जा सकता है। निर्मल पब्लिकेशन, दिल्ली से प्रकाशित तथा विद्वान प्राध्यापक डा उमेश चंद्र शुक्ल द्वारा संपादित इस पुस्तक में ४६ विद्वानों के संस्मरणात्मक आलेख संकलित हैं।
समारोह का उद्घाटन करते हुए, पटना उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश राजेन्द्र प्रसाद ने कहा कि, वह व्यक्ति महान होता है जो स्वार्थ छोड़कर,सदैव औरों के भले की सोंचता है, संपूर्ण समाज की उन्नति छाता है। हर एक महान व्यक्ति, शिक्षा और ज्ञान को मानव–जीवन के लिए सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण मानता है। शिवचंद्र बाबू उसी तरह के शिक्षक और समाज सुधारक थे। उन्होंने इस बात को समझा था कि आर्थिक उन्नयन की भौतिक शिक्षा जीवन यापन के लिए भले आवश्यक हो, किंतु सही शिक्षा वह है जो मनुष्य को मुक्ति प्रदान करती है।
पुस्तक के लोकार्पणकर्ता तथा विद्वान प्राध्यापक प्रो लाल नारायण शर्मा ने कहा कि, शिवचंद्र बाबू अत्यंत निष्ठावान और ऋषि–तुल्य शिक्षक थे। समय के इतने पाबंद थे कि ऐसा एक भी उदाहरण नही मिला कि वे अपने विद्यालय में कभी भी देर से गए हों। वे एक आदर्श गुरु थे।
इसके पूर्व अतिथियों का स्वागत करते हुए, पुस्तक के संपादक डा उमेश चंद्र शुक्ल ने कहा कि, पुण्य–श्लोक शर्मा जी ने ग्रामीण–विकास और सहकार का एक नया मॉडल दिया था, जो आज के लिए भी आदर्श है।
विशिष्ट अतिथि और वरिष्ठ कवि राम उपदेश सिंह ‘विदेह‘, सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद, प्रो राजेंद्र प्रसाद शर्मा,मुरारी प्रसाद सिंह,साहित्यिक पत्रिका‘भाषिकी‘ के संपादक प्रो डा देवेंद्र सिंह,रामदेव शर्मा प्रभाँजन,गीतकार डा रामाश्रय झा, कवि राम नरेश प्रसाद शर्मा, कवि जीतेन्द्र चैतन्य, डा नवीन कुमार तथा महेश चंद्र शुक्ल ने भी अपने विचार व्यक्त किए। मंच का संचालन ‘संझाबाती‘पत्रिका के संपादक और कवि हेमंत कुमार ने तथा धन्यवाद–ज्ञापन सम्मेलन के अर्थ मंत्री योगेन्द्र प्रसाद मिश्र ने किया।
इस अवसर पर,वरिष्ठ कवि बच्चा ठाकुर, डा विश्वनाथ वर्मा, आचार्य आनंद किशोर शास्त्री, राज कुमार प्रेमी, जय प्रकाश पुजारी, बाँके बिहारी साव, शुभचंद्र सिन्हा, डा विनय कुमार विष्णुपुरी, डा नागेश्वर प्रसाद यादव,कवि रवि घोष, डा आर प्रवेश,नेहाल कुमार सिंह‘निर्मल‘ समेत बड़ी सैकड़ों की संख्या में प्रबुद्धजन उपस्थित थे।
लोकार्पण समारोह के पश्चात एक कवि सम्मेलन का भी आयोजन किया गया,जिसमें विभिन्न स्थानों से आए दर्जनों कवियों ने अपनी रचनाओं का पाठ किया।