देश भर में अपने सहयोगियों और विरोधियों को मटियामेट कर देने वाली BJP, Nitish Kumar से अपमानित भी होती है और उनके सामने घुटने भी क्यों टेक देती है?

इर्शादुल हक, एडिटर नौकरशाही डॉट कॉम

बीते 15 वर्षों में भारतीय जनता पार्टी अपने विरोधियों समेत अनेक सहयोगियों को मटियामेट कर विशाल शक्ति के रूप में उभरती चली आयी है. वह अपने विरोधियों को धूल चटाने से ले कर कुछ व्यक्तियों को गिन-गिन कर जेलों तक पहुंचा चुकी है. अपने सबसे पुराने सहयोगी शिव सेना पर उसने न सिर्फ नकेल लगाई बल्कि उसे इस लायक बना डाला कि उसका नेता चीफ मिनिस्टर बनने की भी नहीं सोच सकता. जहां बाल ठाकरे के काल में भाजपा उनके सामने नतमस्तक रहती थी वही भाजपा आज ठाकरे परिवार को उंगलियों पर नचा रही है.

 

पिछले कुछ सालों में, जब से भाजपा केंद्र और अधिकतर राज्यों में सत्ता में आई है, अपनी ताकत और धौंस की बदौलत, विरोधियों को तो छोड़िये, सहोयोगियों को भी उखाड़ फेका है. ताजा उदाहरण महबूबा मुफ्ती का है जिनके साथ भाजपा कश्मीर में सत्ता में आई थी, आज महबूबा मुफ्ती चाहारदीवारी मैं कैद की जा चुकी हैं.

 

 हर कदम पर अपमान सहती रही BJP

लेकिन एक अपवाद भी है. यह ( Nitish Kumar) अपवाद नीतीश कुमार हैं. नीतीश के जदयू और भाजपा एक साथ करीब चौदह वर्षों से बिहार में सरकार चला रहे हैं. इन वर्षों में नीतीश ने अनेक बार भाजपा को सार्वजनिक तौर पर अपमानित किया है. अपमान भी ऐसा वैसा नहीं, बल्कि ऐसा कि कोई भी बाजमीर नेता या पार्टी इसके बारे में सोचे तो उसे रातों में नींद न आये.

BJP के अपमान की और भी मिसालें

ये नीतीश कुमार ही हैं जिन्होंने मौजूदा प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को, 2009 के चुनाव में बिहार में प्रचार करने पर पाबंदी लाग दी थी. मोदी तब गुजरात के सीएम थे. और इस अपमान को जहर की घोट की तरह पी लिया था. फिर यह भाजपा ही थी जिसके कद्दावर नेताओं को मुख्यमंत्री ने अपने आवास पर भोज के लिए दावत दी थी. सारे पकवान तैयार हो चुके थे और भाजपा के नेता गण अण्णे मार्ग पहुंचने ही वाले थे कि नीतीश ने भोज रद्द करने की घोषणा करके भाजपाइयों को अपमानित किया था.

अपमान का यह इतना बड़ा था जिसे अनेक वर्षों तक भाजपा वाले भूल नहीं पाये थे. इसी तरह समय आगे बढ़ता गया और नीतीश ने भाजपा को उससे भी बड़ा जख्म तब दिया था जब 16 जून 2013 को नीतीश कुमार ने भाजपा कोटे के तमाम 11 मंत्रियों को, मंत्रपरिषद से निकाल बाहर किया था. इसके बाद भाजपा व जदयू की 17 वर्ष पुरानी मित्रता टूट गयी थी. हालांकि बाद में दोनों पार्टियों ने एक साथ सरकार बनाई थी. और आखिरी बार 2019 में जब नरेंद्र मोदी की सरकार दोबारा बहुमत में आयी तो उनके मंत्रिमंडल में जदयू ने यह कहते हुए शामिल होने से इनकार कर दिया था कि उसे केंद्र की सरकार में सांकेतिक भागीदार स्वीकार नहीं है.

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इसके बाद मुख्यमंत्री ने बिहार मंत्रिपरिषद का विस्तार किया तो जेडीयू (JDU) के आठ विधायक ने मंत्री पद की शपथ ली थी. वहीं भाजपा के कोटे से इस विस्तार में किसी को जगह नहीं दी गयी. सियासी गलियारों में इसे सीएम नीतीश (CM Nitish) को भाजपा द्वारा नीचा दिखाये जाने का बदला माना था.

Nitish Kumar की रणनीति से चित होती BJP

नीतीश ने हर बार भाजपा के साथ अपनी शर्तों पर राजनीति की. भाजपा भले ही देश भर में अपनी ताकत के नशे में चूर अपने विरोधियों से हिसाब बराबर करती रही हो पर नीतीश पर उसका कोई दाव काम नहीं आ पाता. नीतीश के इस रवैये को भाजपा वाले अहंकार बताते हैं. तभी तो खुद नीतीश कुमार के ऐसे ही फैसलों से आहत नरेंद्र मोदी ने 2014 के लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान कहा था कि नीतीश कुमार में हमालय जैसा अहंकार है. उनकी पार्टी इस अहंकार को तोड़ेगी.

लेकिन पिछले करीब छह वर्षों से सत्ता में रही भाजपा, आज तक इस लायक नहीं बन सकी है कि वह नीतीश कुमार से अपने अपमान का बदला ले सके.

RJD से सांठ-गांठ का शिगुफा

हालांकि 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने, जदयू से बड़ी जीत हासिल की. तब से यह माना जाने लगा था कि 2020 में वह जदयू को औकात बताने का साहस करेगी. ऐसे संकेत भी मिलने लगे थे. भाजपा के नेता लगातार नीतीश पर हमलावर भी हो रहे थे. लेकिन नीतीश की एक मात्र धुरंधर चाल ने भाजपा को चारों खाने चित कर दिया. राजनीतिक गलियारों में यह खबर तैरने लगी कि नीतीश कुमार राजद से फिर नजदीकियां बढ़ा रहे हैं. हालांकि इस मामले में जदयू की तरफ से कोई औपचारिक टिप्पणी नहीं की गयी. लेकिन पिछले दिनों राजद के वरिष्ठ नेता  शिवानंद तिवारी ने एक फेसबुक पोस्ट में लिखा था कि जदयू की तरफ से संदेशा आया था कि भाजपा के साथ भले वह चले गये हों लेकिन उनकी धर्मनिरपेक्ष आत्मा बराबर कसोटती है. शिवानंद तिवारी के पोस्ट से यह अनुमान लगाया जा सकता है कि जदयू की इस रणनीति ने भाजपा को बदहवास कर दिया.

भाजपा को यह बखूबी पता है कि नीतीश के बिना अगर वह विधानसभा चुनाव में जाती है तो उसे बड़ी चुकानी पड़ेगी.

और यही वजह रही होगी जिसके चलते अमित शाह को एक साल पहले यह घोषणा करने के लिए मजबूर होना पड़ा कि 2020 चुनाव में नीतीश ही एनडीए का चेहरा होंगे.

भाजपा भले ही देश भर में अपनी ताकत का डंका बजा रही हो पर बिहार में उसे अपनी औकात का बखूबी पता है. नीतीश कुमार को एनडीए का चेहरा घोषित करना इस बात का सुबूत है.

  BJP की लम्बी रणनीति

हालांकि कुछ विश्लेषकों का मानना है कि भाजपा लम्बी रणनीति पर काम कर रही है. वह इस बार के चुनाव में जदयू के बराबर सीटों पर लड़ना चाहेगी और जदयू से ज्यादा ताकतवर बनके उभरेगी. गोया वहा नीतीश के करियर पर तभी विराम लगायेगी जब विधान सभा में 2020 में उसे ज्यादा सीटें आयेंगी. लेकिन यह भविष्य के गर्भ में है. फिलवक्त नीतीश ने तो बाजी मार ली है.

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By Editor