नीतीश सरकार के सबसे बड़े और सबसे प्रिय अधिकारी अंजनी कुमार सिंह चारा घोटाले में फंसने का कुछ तो मतलब है. अंजनी मुख्यसचिव हैं. उन्हें पिछले दिनों राज्य सरकार ने रिटायरमेंट के बाद तीन महीने का एक्सटेंशन दिया था.
[author image=”https://naukarshahi.com/wp-content/uploads/2016/06/irshadul.haque_.jpg” ]इर्शादुल हक, एडिटर, नौकरशाही डॉट कॉम[/author]
अंजनी कुमार सिंह को सीबीआई की स्पेशल अदलात के उन्हीं जज शिवपाल सिंह ने चारा घोटाला मामले में आरोपित घोषित किया है, जिन्होंने हाल ही में लालू प्रसाद को इसी मामले में सजा सुनाई थी. अब जस्टिस शिवपाल सिंह ने बिहार के मुख्यसचिव को नोटिस जारी किया है और उन्हें 28 मार्च को अदालत में हाजिर होने का हुक्म दिया है.
दुमका कोषागार से अवैध निकासी से संबंधित चारा घोटाला मामले में बिहार के मुख्य सचिव व दुमका के तत्कालीन उपायुक्त अंजनी कुमार सिंह सहित सात लोगों को अदालत ने चारा घोटाला में आरोपी बनाया है.
मुख्यसचिव के अलावा यूं तो अन्य रिटायर अधिकारियों को भी नोटिस जारी किया गया है, लेकिन अंजनी के ऊपर नोटिस जारी होना, नीतीश सरकार के लिए गंभीर समस्या खड़ी करने वाला है. ब जहारि इससे सरकार की सेहत पर कोई खास असर नहीं पड़ने वाला, पर इसका राजनीतिक प्रभाव इतना सरल नहीं है. क्योंकि प्रशासनिक स्तर पर अंजनी, न सिर्फ नीतीश सरकार के दाहिने हाथ हैं, बल्कि उनके निष्ठावान अफसर भी हैं. नीतीश के इन निष्ठावान अफसर को अपने करियर के अंतिम दिनों में मुश्किल का सामना है. यह कार्रवाई तब हुई है जब हाल ही में अंजनी कुमार को मुख्यसचिव के पद पर एक्सटेंशन मिला है.
भाजपा-जदयू के अपने-अपने नौकरशाह
जानकारों का मानना है कि जब मुख्यमंत्री, अंजनी कुमार को मुख्यसचिव पद पर एक्सटेंशन दे रहे थे तो भाजपा लॉबी को यह पसंद नहीं था. इसकी प्रतिक्रिया एक दूसरे तरीके से तब पिछले दिनों सामने आयी जब केएस द्विवेदी को डीजीपी बनाया गया. द्विदे भागलपुर दंगा के दौरान वहां एसएसपी थे और जांच कमिशन ने उन पर ‘कॉम्युनल बायस्ड’ होने का ठप्पा लगा रखा है. नौकरशाही के गलियारे की अंदरूनी खबर रखने वालों का मानना है कि भाजपाई थिंक टैंक ने चीफ सेक्रेटरी, जदयू की पसंद तो डीजीपी अपनी पसंद के फार्मुले के तहत यह पद द्विवेदी को दिलवाया.
राजनीति में भूचाल की आहट
ऐसे में अंजनी कुमार का चारा घोटाले में घिरने से भाजपाई ठिंक टैंक में गुदगुदी होना स्वाभाविक है. पिछले कुछ दिनों में नीतीश के यह दूसरे नौकरशाह हैं जिन पर कार्वाई हुई है. अंजनी पर सीबीआई अदालत ने गाज गिराया है तो औरंगाबाद के डीएम कंवल तनुज के यहां सीबीआई का छापा पड़ चुका है. दोनों ही मामले में सैद्धांतिक रूप से केंद्र सरकार की कोई भूमिका नहीं है. दोनों ही संस्थायें स्वायित्त हैं, स्वतंत्र हैं. पर इन कार्रवाइयों का कोई राजनीतिक प्रभाव न हो, ऐसा नहीं कहा जा सकता. याद रखने की बात है कि पिछले अगस्त महीने में सृजन घोटाला उजागर हो चुका है. उस घोटाले में कुछ आईएएस अफसरों पर सीबीआई की नजर है तो दूसरी तरफ कुछ नेताओं पर भी संदेह है. अंजनी कुमार से ले कर कंवल तनुज तक के तमाम माले भ्रष्टाचार से जुड़े हैं.
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समझा जाता है कि देर सबेर सृजन घोटाला मामले की कार्वाई भी होगी. इस कार्रवाई में कुछ वर्तमान तो कुछ पूर्व नौकरशाहों पर गाज गिरेगी. इसके अलावा कुछ राजनेताओं के दामन पर भी आंच आयेगी. सत्ता के गलियारे की खबर रखने वालों का आंकलन है कि नीतीश कुमार और भाजपा के रिश्ते जितने सरल व सहज दिख रहे हैं, उतने हैं नहीं. ‘घोटालों’ ने कथित रूप से जदयू और भाजपा को फिर से दोस्ती करने का अवसर दिया है. लेकिन घोटाले के आड़ में ही दोनों दलों के बीच सह मात का खेल शुरू हो सकता है.
आने वाले दिनों में इसकी धमक सुनने को मिलेगी.