गरजे तेजस्वी यादव-मुझसे कहो, मैं सुनूंगा, मैं करूंगा
आम तौर से चुनाव बाद विपक्ष सुस्त रहता है। कई बार सौ दिन तक चुप रहने की घोषणा करता है, लेकिन क्या कारण है कि तेजस्वी ने अभी ही बिगुल फूंक दिया।
कुमार अनिल
किसी भी आम चुनाव के बाद कम-से-कम सौ दिन नई सरकार के लिए हनीमून काल होता है। विपक्ष अपनी हार का मंथन करने या हार से उपजी निराशा को दूर करने में परेशान रहता है, लेकिन कल राजधानी पटना में जो कुछ हुआ, वह कुछ और ही कहानी बयां कर रही है। आज तेजस्वी ने नारा दिया- मुझसे कहो, मैं सुनूंगा, मैं लड़ूंगा। आखिर इतनी जल्दी संघर्ष का बिगुल फूंकने के पीछे क्या राज है?
कल पटना में धरना दे रहे शिक्षक अभ्यर्थियों को उनके धरनास्थल से भगा दिया गया। वे संकट में थे, तभी खुद तेजस्वी यादव आंदोलनकारियों के बीच पहुंचे। उनके बीच घंटों रहे। अधिकारियों से बात की और आंदोलनकारियों को उनके धरना स्थल पर पहुंचाया। इससे हजारों आंदोलनकारियों का जोश बढ़ गया। आज तेजस्वी ने कहा- मुझसे कहो, मैं सुनूंगा, मैं करूंगा। तेजस्वी का यह बयान न सिर्फ उनके आत्मविश्वास को जाहिर करता है, बल्कि यह भी बताता है कि बिहार के लोग, खासकर बेरोजगार युवा सरकार को कोई मोहलत देने के मूड में नहीं है। वह ‘सरकार गंभीर है, विचार हो रहा है, जल्द होगी नियुक्ति ‘ जैसे घिसे-पिटे मुहावरों से तंग आ चुका है।
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शिक्षक अभ्यर्थियों के संघर्ष और तेजस्वी के हस्तक्षेप ने अन्य विभागों में नियुक्ति की प्रतीक्षा कर रहे युवाओं को भी आंदोलन में उतरने की प्रेरणा दी है।
तेजस्वी ने जो नया नारा दिया है, उसकी एक महत्वपूर्ण वजह यह भी है कि उन्हें लगता है कि एनडीए की सरकार ज्यादा दिन चलनेवाली नहीं है। वह अपने अंतरविरोधों में उलझकर गिर जाएगी। इसके बाद संभव है, मध्यावधि चुनाव हो।
तो तेजस्वी की नजर वर्तमान और भविष्य पर है। उन्हें मालूम है कि इन्हीं बेराजगार युवाओं ने उनके चुनावी अभियान को नई ताकत दी थी। लालू प्रसाद ने भी पिछले साल चुनाव की घोषणा के बाद कहा था-उठो बिहारी, करो तैयारी। तेजस्वी ने लालू के नारे को याद रखा है। वे बीते कल को भूल कर आज और आनेवाले कल की लड़ाई का बिगुल फूंक चुके हैं। बिहार जल्द ही बड़े आंदोलनों का गवाह बने, तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए।