जदूय से अलग होने का जोखिम क्यों उठाना चाहते हैं चिराग?जदूय से अलग होने का जोखिम क्यों उठाना चाहते हैं चिराग?

जदूय से अलग होने का जोखिम क्यों उठाना चाहते हैं चिराग?

LJP अध्यक्ष चिराग पासवान राजनीति में बड़ा जोखिम लेने की तैयारी में है. उन्हें पता है कि राजनीति में स्वतंत्र लकीर जबतक नहीं खीची जायेगी तब तक उनकी पार्टी का वजूद और दायरा बड़ा नहीं हो सकता.

जदूय से अलग होने का जोखिम क्यों उठाना चाहते हैं चिराग?
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Irshadul Haque, Editor naukarshahi.com

इसलिए अब यह चर्चा बड़ी तेजी से गर्दिश करने लगी है कि या तो एलजेपी को बिहार चुनाव में उसके मन माफिक कम से कम 42 सीटें दी जायें या फिर वह नीतीश कुमार के साये से अलग हो कर चुनावी मैदान में कूद पड़े.

अपनी इसी रणनीति के तहत चिराग, विगत अनेक महीनों से नीतीश सराकर पर हमला बोलते रहे हैं. उधर नीतीश किसी भी कीमत पर अपनी पार्टी के हिस्से की सीट अन्य दलों को नहीं देना चाहते. उधर एलजीपी का साफ दावा है कि उनकी पार्टी को 2014 में ही यह आश्वासन मिल चुका है कि वह 42 सीटों पर विधानसभा लड़ेगी. जबकि जनता दल यू 122 सीटों पर चुनाव लड़ना चाहता है. बिहार में कुल 243 सीटें हैं. अगर एलजेपी के फार्मुले के तहत सीट बंटवारा हो तो भाजपा और जदयू को अपने कोटे की सीटें कम करनी पड़ेगी. जो कि ये दल इस पर राजी नहीं हैं. ऐसे में चिराग दोनों बड़े घटक दलों से तकरार मोल लेने के बजाये सिर्फ जदयू पर वार कर रहे हैं ताकि उन्हें भाजपा का समर्थन मिल सके.

चिराग ने इस सिलसिले में आज पटना में पार्लियामेंटरी बोर्ड की बैठक की. हालांकि इस बैठक की बातें मीडिया को अधिकृत रूप से नहीं बतायी गयीं. पर माना जा रहा है कि चिराग अपने कार्यकर्ताओं को यह बता चुके हैं कि उनकी उम्मीदों के अनुरूप सीट नहीं मिली तो उनकी पार्टी नीतीश सरकार से समर्थन वापस ले कर अन्य छोटे दलों के साथ मिल कर चुनाव मैदान में कूदेगी.

चिराग दर असल अपनी पार्टी को विस्तार देना चाहते हैं. अपना जनाधार बढ़ाना चाहते हैं. उनके पास विधानसभा में खोने के लिए कुछ नहीं है. क्योंकि उनके पास फिलवक्त बिहार में 2 एमएलए हैं. जबकि उन्हें भरोसा है कि अगर वह अकेले चुनाव लड़े तो उनकी सीट तीन दर्जन का आंकड़ा छू सकती है. इसलिए चिराग के पास दोनों ही परिस्थितियों में लाभ होगा.

नीतीश के साथ रहने का वैसे भी, चिराग को लाभ होगा इसमें उन्हें संशय है. क्योंकि कोरोना लाकडाउन के कारण नीतीश द्वारा बिहारी मजदूरों को बिहार बुलाने से मना करने के बाद बड़े पैमाने पर लोगों में नाराजगी है. इस बात का पूरा फिडबैक चिराग को मिल चुका है. वैसे में उन्हें लगता है कि अगर नीतीश के साथ रह कर और कम सीटों पर लड़ कर नुकसान उठाने से बेहतर है कि उनसे अलग हो कर भाग्य आजमाया जाये.

वैसे चिराग की रणनीति अगले कुछ दिनों में सामने आ ही जायेगी.

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