साहित्य सम्मेलन में हुआ जियालाल आर्य की पुस्तक ‘स्वाधीनता आंदोलन और बिहार‘ का लोकार्पण
पटना,२ मई। बक्सर की लड़ाई और सिधु–कानू भाइयों के क्रांतिकारी विद्रोह से लेकर चंपारण–सत्याग्रह के अंतिम सोपान तक और उसके पश्चात भी, स्वाधीनता आंदोलन में बिहार का अग्रणी और अप्रतिम योगदान है। शहीद पीर अली के रूप में भारत का पहला वलिदानी भी बिहार का था और पहला सत्याग्रही बाबू श्रीकृष्ण सिंह भी बिहार के थे। स्वयं महात्मा गांधी ने श्री बाबू को स्वतंत्रता–संग्राम का ‘प्रथम–सत्याग्रही‘कहा था।
यह विचार आज यहाँ बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में, बिहार हिन्दी ग्रंथ अकादमी द्वारा प्रकाशित, सुप्रसिद्ध लेखक जियालाल आर्य की पुस्तक‘स्वाधीनता आंदोलन और बिहार‘ के लोकार्पण–समारोह की अध्यक्षता करते हुए,सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने व्यक्त किए। डा सुलभ ने कहा कि, स्वतंत्रता–आंदोलन का इतिहास बहुत बड़ा और व्यापक है। उसमें बिहार का योगदान अत्यंत गौरवशाली है। ऐसे में कुछ सौ पृष्ठों की पुस्तक में समग्र को समेट लेना संभव नही है। इसलिए विद्वान लेखक,यद्यपि कि वे इतिहासकार नहीं हैं, बहुत हीं विद्वतापूर्ण ढंग से तथा श्रम से संकलित सामग्रियों के बूते,सुबुद्ध पाठकों और विद्यार्थियों के लिए एक मूल्यवान ग्रंथ का सृजन किया है, जिससे स्वाधीनता–संग्राम में बिहार के अमर वलिदानियों और क्रांतिकारियों के त्याग और संघर्षों पर गहरा प्रकाश पड़ा है। इस पुस्तक से कई भूली–बिसरी मार्मिक कथाओं पर से समय के पड़े हुए धूल को हटाया गया है। इस पुस्तक की एक विशेषता यह भी है कि,लेखक ने अपने साहित्यिक दायित्व को पूरा किया है और बिहार के साहित्यकारों के अवदानों को भी स्वर्णाक्षरों में रेखांकित किया है।
इसके पूर्व पुस्तक का लोकार्पण करते हुए, वीर कुँवर सिंह विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति ईश्वरचंद्र कुमार ने कहा कि, लेखक भले इतिहासकार नही हैं, किंतु इतिहास लेखन में प्रशंसनीय महारत हासिल कर ली है। महात्मा फुले, गोखले,ज्योति बा फुले आदि स्तुत्य व्यक्तित्वों पर श्री आर्य द्वारा लिखी गई रचनाओं को महाराष्ट्र सरकार द्वारा पाठ्य–पुस्तकों में स्थान दिया गया है। श्री कुमार ने कहा कि, स्वतंत्रता आंदोलन में अन्य राज्यों के मुक़ाबले बिहार के लोगों ने स्वतंत्रता–संग्राम में सबसे अधिक बढ़–चढ़ कर हिस्सा लिया। १८५७ की क्रांति ने संसार भर में स्वतंत्रता के आंदोलन को प्रेरणा दी।
अपने उद्गार में वरिष्ठ कवि राम उपदेश सिंह ‘विदेह‘ने अपनी प्रसिद्ध रचना‘चलो आज कर लें शहीदों की बातें‘ का पाठ करते हुए, शहीदों को नमन किया तथा लोकार्पित पुस्तक के लिए लेखक को बधाई दी।
मुख्य–वक़्ता के रूप में अपना विचार रखते हुए, ‘नई धारा‘ के संपादक डा शिव नारायण ने कहा कि, इस किताब की सबसे बड़ी देन यह है कि इसे इतिहास के विद्यार्थी पूरे मन से पढ़ेंगे। यह संभवतः पहली पुस्तक है, जिसमें पटना के सात अमर शहीदों पर इतने विस्तार से लिखा गया है। लेखक ने बहुत हीं श्रम पूर्वक सभी छात्र–शहीदों पर, वह सबकुछ लिखा है, जो अबतक परोक्ष में रहा है। इस पुस्तक की एक विशेषता यह भी है कि यह किसी इतिहासकार की दृष्टि से नहीं,एक साहित्यकार की दृष्टि से लिखा है। पुस्तक में ४० से अधिक कवियों की ६० से अधिक कविताओं का उल्लेख किया है, जिसने क्रांतिकारियों को आत्मोत्सर्ग की प्रेरणा दी। लेखक ने बिहार के दूर–दराज़ के छोटे–छोटे उपनगरों और क़स्बों में जाकर सूचनाएँ एकत्र की है और तब लिखा है। इसलिए स्वतंत्रता–आंदोलन पर लिखी गई इस पुस्तक को प्रामाणिक जानकारी देने वाला एक मात्र ग्रंथ कहा जा सकता है। इसमें परिशिष्ट के रूप में अनेक सरकारी दस्तावेज़ लगाए गए हैं, जो ऐतिहासिक दृष्टि से भी अत्यंत मूल्यवान है।
पुस्तक के लेखक जियालाल आर्य ने कहा कि, पटना के सचिवालय के पूर्वी द्वार के निकट स्थित‘शहीद–स्मारक‘हमेशा मन को अपनी ओर खींछा करता था। मेरे मन में यह प्रेरणा होती रही कि इन वालिदानी छात्रों के विषय में और जानकारी प्राप्त करनी चाहिए और अवश्य हीं कुछ लिखना चाहिए। इस पुस्तक के लेखन में बीज तत्त्व इसी से प्राप्त हुआ। इस पुस्तक में तत्कालीन ज़िलाधिकारी पटना डब्ल्यू जी आर्चर का प्रतिवेदन भी परिशिष्ट के रूप में संलग्न है, जिसमें उन्होंने स्वयं स्वीकार किया गया है कि, ११ अगस्त १९४२ को, सचिवालय पर राष्ट्रीय–ध्वज फहराने वाले छात्रों पर उन्होंने गोलियाँ चलाने का आदेश दिया था।
सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद तथा अमियनाथ चटर्जी ने भी अपने विचार व्यक्त किए । अतिथियों का स्वागत सम्मेलन का उपाध्यक्ष नृपेंद्र नाथ गुप्त ने तथा धन्यवाद ज्ञापन बबीता आर्य ने किया। मंच का संचालन योगेन्द्र प्रसाद मिश्र ने किया।
इस अवसर पर, पटना विश्व विद्यालय के पूर्व कुलपति डा लक्ष्मी निवास राम, डा मेहता नगेंद्र सिंह, वरिष्ठ शायर आरपी घायल, हृषिकेश पाठक, डा अर्चना त्रिपाठी, आचार्य पाँचु राम, डा शालिनी पाण्डेय, डा विनय कुमार विष्णुपुरी, दिनेश दिवाकर, डा राधा कृष्ण सिंह, आचार्य आनंद किशोर शास्त्री, डा मनोज गोवर्द्धनपुरी, राकेश आर्य, पंकज प्रियम,राज कुमार प्रेमी,कृष्ण रंजन सिंह,जय प्रकाश पुजारी,पं गणेश झा, बाँके बिहारी साव, सिंधु कुमारी, शशि भूषण प्रसाद सिंह, अतिकांत आर्य, निशिकांत मिश्र, श्याम नंदन सिन्हा, अमन आर्य,राज किशोर झा, नेहाल कुमार सिंह ‘निर्मल‘तथा जनार्दन पाटिल समेत बड़ी संख्या में सुधीजन और साहित्यकार उपस्थित थे।