भाजपा के नेतृत्ववाले एनडीए की सरकार में जदयू के सिर्फ दो मंत्री बनाए जाने से पार्टी में भारी असंतोष देखा जा रहा है। पार्टी के कई नेताओं ने कहा कि लोकसभा चुनाव में भाजपा और जदयू के बराबर-बराबर प्रत्याशी जीते। दोनों के 12-12 सांसद चुने गए, लेकिन बिहार से भाजपा के चार सांसद मंत्री बनाए गए, जबकि जदयू के केवल दो ही मंत्री बनाए गए। जदयू नेताओं का मानना है कि अगर भाजपा के चार मंत्री बनाए गए, तो जदयू के भी चार मंत्री बनाए जाने चाहिए।
नौकरशाही डॉट कॉम को जदयू नेताओं ने बताया कि भाजपा सत्ता बंटवारे में पूरी कीमत वसूलती है। जब जदयू इंडिया गठबंधन से अलग होकर एनडीए का हिस्सा बना, तो भाजपा ने दो उप मुख्यमंत्री बना दिए। मंत्री पद भी जदयू से ज्यादा लिए। कहा गया कि उनके ज्यादा विधायक हैं। इसी तर्क पर केंद्र सरकार में भी जदयू को मंत्री पद मिलने चाहिए था।
मंत्रियों के शपथ ग्रहण से पहले जिस तरह जदयू ने तवर दिएखा थे, उससे लगा था कि पार्टी हार्ड बारगेनिंग करेगी। पार्टी ने अग्निवीर योजना पर विचार करने, बिहार को विशेष दर्जा देने की मांग की थी। तब माना जा रहा था जदयू दबाव बना रहा है। लेकिन केवल दो मंत्री पद दिए जाने से पार्टी में असंतोष साफ देखा जा रहा है।
मालूम हो कि जदयू कोटे से ललन सिंह कैबिनेट स्तर के तथा रामनाथ ठाकुर राज्य स्तर के मंत्री बनाए गए हैं, जबकि भाजपा से गिरिराज सिंह कैबिनेट स्तर के तथा नित्यानंद राय, राजभूषण निषाद तथा सतीश चंद्र दूबे राज्य स्तर के मंत्री बनाए गए हैं।
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राजनीतिक प्रेक्षकों का मानना है कि भाजपा अभी से जदयू को घेर रही है। अगले साल बिहार विधानसभा चुनाव होंगे। अगर यही रवैया रहात तो उस चुनाव में भी जदयू को झुक कर समझौता करने को मजबूर किया जाएगा। यह भी स्पष्ट है कि भाजपा अपने सहयोगियों को ही एक दिन खा जाती है। ताजा उदाहरण ओड़िशा का है। नवीर पटनायक से दोस्ती करने वाली भाजपा ने इस बार उन्हें सत्ता से बाहर कर दिया। क्या यही हश्र जदयू का होगा और क्या उसकी भूमिका लिखी जा रहा है।