देश की सेना का कमांडर एक राजनेता के दमदार उभार से डर गया है.बदरुद्दीन अजमल की राजनीति रसूख ने असम में कांग्रेस की लोटिया डुबो दी तो अब भाजपा की नींद हराम है. 2005 से 2018 तक अजमल ने जितनी लोकतांत्रिक शक्ति बटोरी है वह किसी फौजी टैंक के बूते संभव नहीं है. समझे रावत साहब.
इर्शादुल हक, एडिटर नौकरशाही डॉट कॉम
अब जनरल रावत आर्मी में रह कर भाजपाई भाषा बोलते हों तो इससे फौज का मनोबल कमजोर होगा. रावत को अपने श्बद वापस लेने चाहिए.
हां अगर रावत अपनी जिद्द पर अड़े रहे तो समझिये कि वह रिटायरमेंट के बाद भाजपा में शामिल होंगे.
पढ़िये जनरल रावत का विवादित बयान
रावत साहब आप इतनी ज्लदबाजी में क्यों हैं? कुछ दिन ही तो बचे हैं आपके रिटायर होने में. जरा सब्र कर लेते तो आपके पद की गरिमा को तो नुक्सान नहीं पहुंचता न. निजी लाभ के लिए पद को भी भूल गये आप.
और हां आपको अजमल के जवाब से कुछ सीखना चाहिए जो कहते हैं कि राष्ट्रीय पार्टियां लोगों की अपेक्षा पर खरी नहीं उतरेंगी तो आप और एआईयूडीएफ जैसी क्षेत्रीय पार्टियों की ताकत तो बढ़ेगी ही. अजमल ने जो ताकत हासिल की है वह लोकतांत्रिक तरीके से हासिल की है. दम है तो उनका जवाब लोकतांत्रिक तरीके से दीजिए रावत साबह. लेकिन इसके लिए आपको अपनी वर्दी उतार कर राजनीति के मैदान में आना होगा, जहां बंदूक और तोप की नहीं राजनीतिक समझ की जरूरत होती है.
जब रावत साहब के दिमाग में यह फितूर बैठ गया हो कि भाजपा के विस्तार से भी तेज गति से एआईयूडीएफ का विस्तार हो रहा है तो यह सोचना होगा कि उन्होंने पाक की नापाक हरकतों के विस्तार पर क्यों चिंता नहीं है, जबकि रावत से देश को उम्मीद है कि वह चीन और पाकिस्तान की करतूतों का मुंहतोड़ जवाब दें. हमारे जवान लगातार सीमा पर गोलियों के शिकार हो रहे हैं. पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद ने हमारी सेना के जवानों के जीवन से खेल रहे हैं और रावत साहब राजनीतिक बयान दे रहे हैं. यह चिंता की बात है.
जब आर्मी चीफ अपनी जिम्मेदारियों के बजाये राजनीतिक हालात पर चिंता करने लगें तो यह दुखद तो है ही अफसोसनाक भी है. याद रखिये रावत साहब .. बदरुद्दीन अजमल ने वोट के दम पर असम में 18 विधायक और तीन सांसदों की ताकत हासिल की है, जो फौज की टैंकों के बूते की बात नहीं है