लखीमपुर नरसंहार;क्या मोदी की चुप्पी उनकी बेबसी है
लखीमपुर खीरी में कथित तौर पर मंत्रिपुत्र द्वारा किसानों को जीप से रौंद कर मार डालने के मामले में नरेंद्र मोदी की चुप्पी उनकी बेबसी है या कोई रणनीति?
भले ही नरेंद्र मोदी ने बतौर प्रधान मंत्री एक भी प्रेस कांफ्रेंस न की हो.पर माइक थाम कर जब वह बोलते हैं तो कई बार बढ़बोलेपन की हद पार कर जाते हैं. लेकिन जब भी देश के सामने बड़ी समस्या खड़ी हो जाती है तो उनकी चुप्पी मनमोहन सिंह को भी पीछे छोड़ देती है.
नागरिकता विरोधी आंदोलन और कोरोना की दूसरी लहर में सरकार के शर्मनाक पॉर्फार्मेंस पर मोदी की चुप्पी दुनिया के किसी भी प्रधान मंत्री की चुप्पियों में सबसे उल्लेखनीय चुप्पी थी.
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लखीमपुर खीरी में मोदी राज में भारत के किसी आंदोलन में आंदोलनकारियों को रौंद कर मार डालने की अपनी तरह की सबसे बड़ी हैवायनियतों में से एक है. और देश का प्रधान मंत्री चुप है. चुप्पी अक्सर बेबसी को प्रतिबिंबित करती है. तो, भाजपाई भक्त जिन मोदी को देश ही नहीं, दुनिया का सबसे शक्तिशाली नेता घोषित करते हैं, वह इतने लाचार, इतने बेबस क्यों हैं?
जगहंसाई
कुछ लोग प्रधान मंत्री मोदी की लखीमपुर मामले में चुप्पी को रणनीतिक चुप्पी करार दे रहे हैं. लेकिन वह कौन सी रणनीति है जिसके चलते पार्टी और सरकार दोनों की जगहंसाई हो रही है. लोगों में भाजपा सरकार के प्रति क्रोध बढ़ रहा है. और यकीनन इसका नुकसान आने वाले चुनावों में मोदी सरकार को उठाना ही पड़ेगा.
दर असल नरेंद्र मोदी की हालत दोधारी तलवार पर चलने वाले व्यक्ति की हो चुकी है. नरेंद्र मोदी और यूपी के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ एक दूसरे को फूटी कौड़ी नहीं सुहाते. लेकिन दोनों की अपनी मजबूरी है. बिना मोदी, योगी का सियासी भविष्य मुश्किलों में फंसने जैसा है. तो बिना योगी के समर्थन के नरेंद्र मोदी तीसरी बार प्रधान मंत्री नहीं बन सकते. यही कारण है कि दोनों सार्वजनिक मंच पर एक दूसरी की जम कर तारीफ करते हैं.
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उत्तर प्रदेेश में योगी के चलते ब्रह्मण वोटर्स बिदक चुके हैं. हाल ही में नरेंद्र मोदी ने ब्रह्मणों को अपनी और खीचने के लिए अजय मिश्र टेनी सरीखे नेताओं को मंत्रिमंडल में जगह दी. लेकिन दिक्कत यह है कि अजय मिश्र के बेटे आशीष मिश्रा ही लखीमपुर खीरी के किसानों को गाड़ी से रौंदने के मुख्य आरोपी हैं. यूपी में ब्रह्मणों की आबादी 12 प्रतिशत बतायी जाती है. ऐसे में भाजपा के लिए बड़ी विकट समस्या है. लेकिन जिस तरह विपक्ष ने इस मुद्दे को पकड़ लिया है और जिस तरह सुप्रीम कोर्ट से ले कर आमजन में इस मुद्दे पर नाराजगी है, उससे यह तो लगने लगा है कि आज न तो कल मोदी सरकार को सख्त कदम उठाने पर मजबूर होना ही पड़ेगा. इसके पहले योगी अपना हिसाब किताब लगाने में व्यस्त हैं तो मोदी अपनी स्थिति मजबूत करने में लगे हैं. लेकिन यह तो तय है कि देर से ही सही मोदी को अपनी चुप्पी तोड़ने पर मजबूर होना पड़ेगा.