SaatRang : यूपी ने देश को दिए दो नए नेता, दो का कद किया छोटा
यूपी में मतदान समाप्त हो गया। लंबे समय तक चले चुनाव ने देश को दो नए नेता दिए- अखिलेश यादव और प्रियंका गांधी। एक में वर्तमान, दूसरे में भविष्य।
कुमार अनिल
हालांकि अखिलेश यादव 2012 में ही यूपी के मुख्यमंत्री बन गए थे, लेकिन तब वे पिता की छाया और चाचा के हस्तक्षेप से मुक्त नहीं थे। 2017 चुनाव से पहले उन्होंने स्वतंत्र ढंग से काम करने की कोशिश की थी, लेकिन उसमें वे कामयाब नहीं हो पाए थे। परिवार की खींचतान भी तब हार की एक वजह बना। लेकिन इस बार स्थिति बिल्कुल भिन्न है। वे अपने दम पर सपा को सत्ता के करीब ले आए हैं। चुनाव बाद उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर मजबूत नेता की पहचान मिलेगी। अब तक कि खबरों के अनुसार यूपी की जनता ने अखिलेश को भारी समर्थन दिया है। भाजपा को उसकी प्रयोगस्थली में हराने के कारण उनका कद भाजपा विरोधी नेताओं में काफी ऊंचा हो जाएगा, इसकी पूरी संभावना है।
हालांकि अखिलेश यादव से दो बड़ी शिकायतें भी रही हैं। पहला, वे योगी राज के पांच साल में कभी संघर्ष करते नहीं दिखे। हाथरस में दुष्कर्म, लखीमपुर में किसानों को रौंदा जाना, सीएए विरोधी आंदोलनकारियों पर भारी दमन और सोनभद्र में आदिवासियों पर पुलिस फायरिंग- इन सभी मामलों में अखिलेश यादव कभी पीड़ित जनता के साथ खड़े नहीं दिखे। अखिलेश समर्थक बचाव में कहते हैं कि उन्होंने जानबूझ कर सड़क पर विरोध नहीं किया क्योंकि करते तो उन्हें मुकदमों में फंसा दिया जाता। इस तर्क में कोई दम नहीं लगता है। अखिलेश यादव से दूसरी बड़ी शिकायत यह रही कि वे कभी हिंदुत्व से मुकाबला करते नहीं दिखे। धर्म संसद में मुसलमानों के कत्लेआम की बात हो या संघ की विचारधारा, कभी अखिलेश देश के सामने इस खतरे के खिलाफ नहीं बोले। अभी तेजस्वी यादव ने बिहार विधानसभा में जिस तरह खुलकर भाजपा-संघ की विचारधारा के खिलाफ आवाज उठाई, वैसी आवाज कभी अखिलेश ने नहीं उठाई।
इसके बावजूद चुनाव जीतने के बाद अगर वे प्रशासन को दुरुस्त करते हैं, सभी वर्गों का साथ लेते हैं और अपनी घोषणाओं पर काम करते हैं, तो वे 2024 में प्रधानमंत्री मोदी के लिए परेशानी का कारण बन सकते हैं।
उधर प्रियंका गांधी ने जिस तरह पूरे चुनाव में मेहनत की, लड़की हूं लड़ सकती हूं का नारा दिया, हाथरस से लखीमपुर तक संघर्ष किया और पीड़ितों के साथ खड़ी हुईं, वह उम्मीद जगानेवाला है। छह महीना पहले कांग्रेस को लोग मरी हुई पार्टी मान रहे थे, पर उन्होंने पार्टी में नई जान फूंक दी। उन्होंने कहा है कि परिणाम कुछ भी हो, वे यूपी में रहेंगी। अगर वे ऐसा करती हैं और लगातार जनता के सवालों पर संघर्ष करती हैं, तो निश्चित रूप से 2024 में कांग्रेस सीटों में भी दिखेगी। वैसे यूपी चुनाव ने जयंत चौधरी के रूप में एक तीसरा नेता भी देश को दिया है।
यूपी चुनाव ने दो नोताओं का कद छोटा किया। प्रधानमंत्री मोदी को दो दिनों तक बनारस में रुकना पड़ा। अपने नमक वाले बयान पर पलटी मारनी पड़ी। महंगाई, बेरोजगारी, छुट्टा जानवर जैसे जनता के बड़े सवालों का उनके पास कोई जवाब नहीं था। उनका कद कैसे छोटा हुआ है, इसे इस बात से समझा जा सकता है कि इस बार तर्क बदल गए हैं। इस बार कहा जा रहा है कि बनारस में भाजपा के विधायक से जनता नाराज है। पहले स्थिति यह थी कि लोग प्रत्याशी नहीं, सिर्फ मोदी को देखते थे। अब मोदी के नाम पर लोग किसी को भी चुनने को तैयार नहीं हैं। यह बड़ा बदलाव है। दूसरे नेता मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ हैं। उनका कद तो खुद भाजपा ने छोटा कर दिया। अंतिम चरण में वे दिखे ही नहीं। और आज की खबर है कि वे दो दिनों से गोरखपुर मठ में हैं।
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