आफ़ताब की कहानियाँ संवेदन हीन हो रहे समाज की विडंबनाओं का बयान करती है
साहित्य सम्मेलन में कहानी–संग्रह‘आख़िरी रास्ता‘का हुआ लोकार्पण,आयोजित हुई लघुकथा–गोष्ठी
पटना,२४ अक्टूबर। युवा कथाकार सैयद आफ़ताब आलम की कहानियों में समाज की गहरी पीड़ा की अभिव्यक्ति तो होती ही है, संवेदनहीन होते जा रहे लोग और भ्रष्ट होती जा रही राजनैतिक शक्तियों का ख़ुलासा भी करती हैं। इनकी कहानियों में अनेक ऐसे मार्मिक–स्थल आते हैं, जो मन को झकझोर डालते हैं। ये कहानियाँ समाज के दुखती रग पर हाथ डालती दिखाई देती है।
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यह बातें गुरुवार को बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में सैयद आफ़ताब आलम के प्रथम कहानी–संग्रह‘आख़िरी रास्ता‘के लोकार्पण–समारोह की अध्यक्षता करते हुए,सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि, कहानीकार में क़िस्सा–गोई का पूरा हुनर भी है और कोमल हृदय भी। हृदय की कोमलता और संवेदनशीलता ऐसे गुण हैं,जिनके अभाव में कोई लेखक समालोचक तो हो सकता है,रचनातमक–साहित्य का सृजन नहीं कर सकता। आफ़ताब में इन गुणों के अतिरिक्त भाषा और शिल्प का भी इल्म है,जिससे यह कहा जा सकता है कि, इनमे बड़ी कहानी लिखने की क्षमता और पात्रता है। ये एक बड़ी संभावनाओं वाले कहानीकार हैं।
समारोह का उद्घाटन करते हुए,विश्वविद्यालय सेवा आयोग के अध्यक्ष डा राजवर्धन आज़ाद ने कहा कि, जीवन अपने आप में एक दिलचस्प कहानी है। इसीलिए हमारे आसपास हर तरफ़ कोई न कोई कहानी होती है। कहानियाँ हमारे चारों तरफ़ है। आस–पड़ोस में,कुछ दूर, कुछ पास में। कहानी झोपड़पट्टी से लेकर महलों तक की भी होती है। किंतु अपने चारों तरफ़ बिखरी कहानियों को सुनने वाले बहुत काम हैं। लेखक ने इन कहानियों को पूरे मन से बटोरा और हमें परोसा है।
पुस्तक पर अपनी राय रखते हुए, उर्दू और हिन्दी के ख्यातनाम साहित्यकार डा क़ासिम ख़ुर्शीद ने कहा कि, कहानी कभी ख़त्म नहीं होती। दरअसल कहानी जहाँ ख़त्म होती दिखाई होती है,वहाँ से शुरू होती है। कहानी की सफलता इसमें है कि,पाठक को लगे कि कहीं ना कहीं उसमें उसकी भी कहानी है।
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सम्मेलन के उपाध्यक्ष नृपेंद्र नाथ गुप्त, विशिष्ट अतिथि अनवारुल होदा, बच्चा ठाकुर, सुनील कुमार दूबे, ने भी अपने विचार व्यक्त किए।
इस अवसर पर आयोजित लघुकथा–गोष्ठी में सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद ने ‘शहादत‘शीर्षक से, डा कल्याणी कुसुम सिंह ने ‘कचरा‘शीर्षक से, डा सुधा सिन्हा ने ‘मैं रिटायर करना चाहता हूँ‘शीर्षक से, डा मेहता नगेंद्र सिंह ने ‘भ्रम‘शीर्षक से, पंकज प्रियम ने ‘पहले‘शीर्षक से, योगेन्द्र प्रसाद मिश्रने ‘दैव का दंड‘ शीर्षक से,रमेश चंद्र ने ने‘नालायक‘ शीर्षक से, डा पुष्पा जमुआर ने ‘मैं हूँ न !’ , डा विनय कुमार विष्णुपुरी ने ‘बेटी‘ शीर्षक से, डा सविता मिश्र मागधी ने ‘वह अद्भुत अनुभव‘ , माधुरी भट्ट ने ‘पछतावा‘ शीर्षक से, विभारानी श्रीवास्तव ने ‘ग़ैरतदार‘,डा रामाकान्त पाण्डेय ने ‘अंतर्द्वंद‘,अजय कुमार सिंह ने‘भद्र महिला‘,बिंदेश्वर गुप्ता ने‘ भेदभाव‘ शीर्षक से अपनी लघुकथा का पाठ किया।
मंच का संचालन योगेन्द्र प्रसाद मिश्र ने तथा धन्यवाद ज्ञापन श्रीकांत सत्यदर्शी ने किया। इस अवसर पर परवेज़ आलम, राज कुमार प्रेमी, बाँके बिहारी साव, नरेंद्र झा, शमा कौसर तथा मजाहिरूल हक़ समेत बड़ी संख्या में प्रबुद्धजन उपस्थित थे।