जरा सोचिये. राहुल गांधी ने गुजरात चुनाव के दौरान पार्टी प्रेसिडेंट बनने का फैसला क्यों किया? प्रेसिडेंट चुन लिये गये तो गुजरात चुनाव परिणाम आने से पहले ही प्रेसिडेंट की कुर्सी संभाल लेने का जोखिम क्यों उठाया? खास कर तब जब कांग्राेस लगातार चुनाव हारती रही हो.
इर्शादुल हक, एडिटर नौकरशाही डॉट कॉम
राहुल के कांग्रेस प्रेसिडेंट बनाये जाने के चर्चे कई सालों से चलते रहे. वह टालते रहे. राहुल चाहते तो गुजरात व हिमाचल चुनाव तक इसे और टाल सकते ते. लेकिन ऐसा ना करना राहुल और कांग्रेस की उस रणीतिक जीवट का पता चलता है जो यह बताता है कि कांग्रेस नयी चुनौतियों के लिए खुद को तैयार कर चुकी है.
आज यानी 16 दिसम्बर को राहुल पार्टी अद्यक्ष की जिम्मेदारी बाजाब्ता संभाल ली. उन्होंने यह पद तब संभाला है जब दो दिन बाद यानी 18 दिसम्बर को गुजरात असेम्बली चुनाव के परिणा आने वाले हैं. अध्यक्ष पद पर चुनाव की प्रक्रिया गुजरात असेम्बली चुनाव के दौरान ही चली. अगर कांग्रेस गुजरात और हिमाचल का चुनाव हार जाती है तो उनके अपोनेंट को उनकी आलोचना का पूरा मौका मिलेगा. अगर कांग्रेस गुजरात हार जाती है तो इससे पार्टी के मनोबल पर नकारात्मक असर पड़ेगा सो अलग. इन दोनो राज्यों में कांग्रेस की हार राहुल के लिए बेल मुंडाते ही ओले पड़ने जैसे होंगे.
ऐसे में कांग्रेस ने यह जोखिम यूं ही नहीं उठाया है. इसके लिए कांग्रेस की एक मजबूत और सोची समझी रणनीति है.2014 में लोकसभा में अपने वजूद के इतिहास में सबसे बड़ी हार के बाद भी अनेक राज्यों में हुए चुनाव में कमोबेश कांग्रेस ह्रास की तरफ ही लगातार बढ़ती रही है. उसके लिए पंजाब में जीत से एक सुखद समाचार मिलने के अलावा कहीं किसी राज्य से संतोषजनक परिणाम नही मिले. लेकिन गुजरात में पार्टी ने बड़े उत्साह से चुनाव लड़ा है. हालांकि तमाम सर्वे में कांग्रेस की हार का प्रिडिक्शन किया गया है, लेकिन गुजरात को ले कर कांग्रेस आश्वस्त है. उसे अबभी भरोसा है कि वह कमसे कम गुजरात का रण जीतेगी. हालांकि इसका वास्तविक स्वरूप तो 18 दिसम्बर को तय होगा. लेकिन इतना तो तय है कि कांग्रेस ने ऐसे समय में राहुल के हैंड्स में कमान सौंपने का साहस दिखाया है जब उसे गुजरात और हिमाचल में अग्निपरीक्षा से गुजरना है. अगर कांग्रेस इस अग्निपरीक्षा में सफल हो जाती है तो उसके अंदर अद्मय उत्साह का संचार होगा.
विजय दिवस
16 दिसम्बर की तारीख के चयन का एक और रणनीतिक कारण है. आज ही के दिन 1971 को बांग्लादेश का वजूद दुनिया के नक्शे में नमूदर हुआ. आज का दिन विजय दिवस के रूप में याद किया जाता है. तब भारत की पीएम इंदिरा गांधी तीं. बांग्लादेश को पाकिस्तान से अलग कर एक नये राष्ट्र की उत्पत्ति में इंदिरा की सबसे महत्वपूर्ण भूमिका रही. पाकिस्तानी सेना के 93 हजार सैनिकों को सरेंडर कराने का श्रेय इंदिरा को जाता है. राहुल चाहते हैं कि इस ऐतिहासिक दिन को एक प्रेरक दिन के तौर पर ले कर देश और पार्टी के अंदर एक उत्साह भरा जाये.
पूरे भारत में उसके कार्यकर्ताओं में पिछले चार साल से छायी मायूसी का दर खत्म होगा. और अगर कांग्रेस हार भी जाती है तो वह देश की जनता को बताना चाहेगी कि राहुल ने चुनौतियों को स्वीकार करने का साहस दिखाया है. सही मानों में गुजरात व हिमाचल चुनाव नतीजों से पहले कांग्रेस पार्टी प्रेसिडेंट का चुनाव करवाना और चुनाव परिणाम के पहले ही अध्यक्ष की कुर्सी संभालने का फैसला ले लेना राहुल के जीवट का परिचायक है.