एक ही खबर अलग-अलग सूचना कैसे दे सकती है इसकी हकीकत जाननी हो तो आप पटना से प्रकाशित होने वाले कुछ अखबारों को एक-एक कर पलटिये और जान जाइए. यह खबर पेट्रोलियम के दाम को लेकर है.petrol

नौकरशाही डेस्क

यह खबर है बीती रात तेल कम्पनियों द्वारा पेट्रोलियम की कीमतें कम किये जाने की. लेकिन जहां एक तरफ कीमतें घटीं वहीं दूसरे क्षण केंद्र सरकार ने इसका पूरा लाभ आम जन को देने से रोक दिया. उसने इस पर फिर टैक्स लाद दिया.

 भास्कर, हिंदुस्तान, जागरण, प्रभात

इस खबर को हिंदुस्तान ने अपने पहले पेज पर तीन कॉलम में जगह देते हुए शीर्षक दिया है ‘पटना में पेट्रोल 2.51 और डीजल 2.37 रुपये प्रति लीटर सस्ता हुआ’. जबकि इसी खबर को दैनिक भास्कर ने शीर्षक दिया है-  ‘तेल का खेल- सरकार ने छीना आधा फायदा’.  जबकि दैनिक जागरण ने इस खबर का शीर्षक लगाया है- ‘पेट्रोल डीजल हुए सस्ते, आधी-अधूरी राहत’. इसी तरह प्रभात खबर ने इस खबर पर ज्यादा तवज्जो नहीं देते हुए पहले पेज पर एक कॉलम में जगह दी है जिसका शीर्षक है ‘पेट्रोल-डीजल पर राहत, पर आधी’.

यूं तो खबर की दृष्टि से तीनों अखबारों के शीर्षक अपनी जगह पर ठीक हैं. पर खबरों के बाजार की अपनी दुनिया है. कहते हैं कि खबरों के प्रजेंटेशन और उसकी सुर्खियों से अखबारों के सम्पादकीय रुझान का पता चलता है. इस लिहाज से गौर करें तो दैनिक भास्कर ने अपने शीर्षक के द्वारा यह स्पष्ट करने की कोशिश की है कि तेल के दाम घटाने में भले ही तेल कम्पनियों ने उपभोक्ताओं को फायदा देने की कोशिश की लेकिन सरकार ने उनकी इस कोशिश पर लगाम लगा दिया. जिसका नतीजा हुआ कि उपभोक्ताओं को उतना नुकसान हुआ जितना सरकार ने टैक्स लगा दिया.

सम्पादकीय रुझान

लेकिन जब इसी खबर को हिंदुस्तान के शीर्षक को पढ़िये तो पता चलता है कि तेल के दाम कम हो गये हैं. यह मैसेज शीर्षक से साफ झलकता है. हालांकि अखबार ने अंदर एक छोटा सा उपशीर्षक दिया है जिसमें यह बताया गया है कि ‘और कम हो सकते थे दाम’.  अखबार ने लिखा है कि सरकार ने उत्पाद शुल्क लगा दिये इसलिए दाम कम नहीं हुए.

अब दोनों अखबारों के शीर्षक की तुलना करिये तो दोनों अखबारों के सम्पादकीय रुझान का स्पष्ट पता चल जाता है.  भास्कर अपने पाठकों को साफ बता रहा है कि तेल के दाम कम होने पर खेल हुआ है और सरकार ने उपभोक्ताओं को मिल सकने वाला फायदा छीन लिया है.

जहां तक दैनिक जागरण के शीर्षक का सवाल है तो ‘पेट्रोल डीजल हुए सस्ते, आधी-अधूरी राहत कहके क्या जताना चाहा है?  सवाल यह है कि जब पेट्रोल डीजल खुली बाजार की जिंस हो चुकी है तो दाम घटना और बढ़ना अंतरराष्ट्रीय बाजार की गति पर निर्भर करता है. लेकिन सरकार ने इस फायदे को जनता तक पहुंचाने के बजाये उस फायदे को रोका. ऐसे में यह शीर्षक सूचना की आक्रमकता और पाठकों पर इसके पड़ने वाले नाकारात्मक प्रभाव को कम करने की कोशिश जैसी लग रही है.  प्रभात खबर ने भी ठीक ऐसा ही शीर्षक लगाया है लेकिन उसने यह जताने की कोशिश की है कि सरकार ने टैक्स लगा कर लोगों को जरा कम राहत दी है.

By Editor

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