पटना: भारतीय मानस में श्री राम की जो छवि है, वह महाकवि तुलसी दास के कारण ही है। तुलसी के मानस में राम, आदिकवि बाल्मिकि के ‘मर्यादा-पुरुषोत्तम’ से बहुत ऊपर उठकर, ‘ब्रह्म’ के रूप में प्रतिष्ठित हो गये। रामचरित मानस के पूर्व, भारतीय समाज में, राम की स्थापना ‘भगवान’ के रूप में नहीं थी। श्री राम, समस्त मानवीय गुणों से युक्त ‘आदर्श-पुरुष’ और ‘महानायक’ की संज्ञा से उत्क्रमित होकर, समस्त चराचर में ‘रमनेवाले’ ब्रह्म के रूप में प्रतिष्ठित हो गये, तो इसका श्रेय तुलसी की अमर-कृति रामचरित मानस को हीं जाता है।DSC_4306

तुलसी जयंती

यह विचार आज यहाँ साहित्य सम्मेलन द्वारा आयोजित, तुलसी जयंती व कवि-गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन-अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने व्यक्त किये। डा सुलभ ने कहा कि, तुलसी एक अवतारी संत-महाकवि थे। जब कोई कवि ‘तुलसी’ बनता है, तभी ‘मानस’ जैसा महाकाव्य रचा जाता है। इसीलिए ‘रचना’ से रचनाकार’ बड़ा माना जाता है। ‘राम’ तुलसी के राम हैं। इस विचार से तुलसी राम से बड़े हैं।

डा सुलभ ने कहा कि, भारतीय समाज को किसी साहित्य ने सबसे अधिक प्रभावित किया, वह ‘राम चरित मानस’ ही है। इसने आज से पाँच सौ वर्ष पूर्व, जब भारत अपनी अस्मिता खोकर, सारे मानवीय-संबंधों को तिलांजलि देने की भयावह स्थिति में आ गया था, इस महागाथा ने भारत को फ़िर से उसकी विशाल वैदिक परंपरा का नये रूप में स्मरण कराया। युवकों को ‘राम’ जैसा शीलवान और शौर्यवान होना चाहिए, सीता जैसी पत्नी, भरत-लक्ष्मण जैसे भाई, ह्नुमान जैसा भक्त और सेवक होना चाहिए, ऐसी भावना का बीजारोपण, मानस की ऐसी सफ़लता है, जिसका कोई दूसरा उदाहरण नही मिलता। भारत में आज फ़िर मानस और प्रासंगिक हो गया है। मानस से दूर हो जाने के कारण हीं आज भारत में चारित्रिक क्षरण और इस कारण मनुष्यता भारी संकट में है।

अतिथियों का स्वागत करते हुए, सम्मेलन के प्रधानमंत्री आचार्य श्रीरंजन सूरिदेव ने कहा कि तुलसीदास अमर कवि हैं। उनका मानस पुजनीय ग्रंथ हैं। यदि संसार के सारे ग्रंथ भी नष्ट हो जाय और केवल ‘रामचरित मानस’ बच जाय तो भी संसार का अकल्याण से रक्षा हो सकती है। यह शांति और आनंद प्रदान करनेवाला महान ग्रंथ है।

 

तुलसी ने भारतीय मानस को समझा

इसके पूर्ब समारोह का उद्घाटन करते हुए, विश्वविद्यालय सेवा आयोग के पूर्व अध्यक्ष तथा वरिष्ठ साहित्यकार, प्रो शशिशेखर तिवारी ने कहा कि, तुलसी दास एक महान प्रतिभाशाली कवि थे। उन्होंने भारतीय मानस को बहुत भीतर तक समझा था और उन्होंने अपने साहित्य से मानव-चेतना को गहरे तक प्रभावित किया। रामचरित मानस वस्तुतः लोक-काव्य है।

सम्मेलन के उपाध्यक्ष नृपेन्द्र नाथ गुप्त, डा शंकर प्रसाद, डा शिववंश पाण्डेय, प्रो वासुकी नाथ झा तथा डा विनोद कुमार मंगलम ने भी अपने उद्गार व्यक्त किये।

इस अवसर पर आयोजित कवि-गोष्ठी का आरंभ डा रमाकांत पाण्डेय की वाणी-वंदना से हुआ। वरिष्ठ शायर आरपी घायल ने अपना इज़हारेख्याल इस तरह किया कि, “ कभी पहलू में जिसके मैं रहा था अजनबी जैसा/ उसी की धड़कनों को आज कुछ कहता हुआ पाया/ बँधा था जो कभी घायल हदों में आज से पहले/ उसी को आज पानी की तरह बहता हुआ पाया”। कवि राज कुमार प्रेमी ने अपना गीत पढते हुए कहा कि, “बचपन बीता खेल में, बीती जवानी खाय/ बुढापा कैसे बीतेगा, रह-रह मन घबराय”। कवि योगेन्द्र प्रसाद मिश्र ने महाकवि को इन शब्दों स्मरण किया कि, “तुलसी दल में सबगुण, तुलसी गुण बहुरंग/ एक चढे देवों के सिर, एक जन-गण हिय अंग”। कवयित्री डा लक्ष्मी सिंह ने कहा कि,”गर तुम्हें देखकर कोई हँसे/ अपने स्वंय के भीतर झांको”।

सम्मेलन के उपाध्यक्ष पं शिवदत्त मिश्र, डा कल्याणी कुसुम सिंह, बच्चा ठाकुर, सच्चिदानंद सिन्हा, शंकर शरण मधुकर, आचार्य आनंद किशोर शास्त्री, कवयित्री शालिनी पाण्डेय, डा मनोज कुमार पाण्डेय, अनिल कुमार सिन्हा, डा अर्चना त्रिपाठी, प्रभात धवन, पं गणेश झा तथा डा प्रेमनाथ पाण्डेय ने भी रचनाओं का पाठ किया। मंच का संचालन योगेन्द्र प्रसाद मिश्र ने तथा धन्यवाद ज्ञापन प्रबंध मंत्री कृष्ण रंजन सिंह ने किया।

इस अवसर पर अंबरीष कांत, आनंद किशोर मिश्र, रामनंदन पासवान, हरेन्द्र चतुर्वेदी, विश्वमोहन चौधरी संत, बांके बिहारी साव तथा आनद मोहन झा समेत बड़ी संख्या में साहित्य-सेवी व प्रबुद्ध जन उपस्थित थे। आरंभ में, सम्मेलन भवन के ऊपरी तल पर स्थापित तुलसीदास की आसनस्थ-मूर्ति पर अध्यक्ष समेत सभी साहित्यकारों ने माल्यार्पण किया।

 

 

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