हैदराबाद दोहरे धमाके में मारे जाने वाले एजाज अहमद सबसे कम उम्र के थे जो संजय गांधी मेमोरियल पॉलिटेकनिक में ऑटोमोबिल इंजिनयरिंग की पढ़ाई करते थे.

उन्हें कॉलेज से लौटते समय तीन बसें बदलनी होती थी और दिलसुख नगर उनका आखिरी पड़ाव होता था.

इकबाल: बुझ गया उम्मीदों का चिराग

एजाज के परिवार के लोगों ने यह कभी सोचा भी नहीं था कि दिलसुख नगर बस स्टेंड पर ही उनके जीवन का अंत होगा. दिलसुख नगर के लिए बस नम्बर 107 पकड़ने के लिए जाज अपने चार दोस्तों के साथ चले थे. लेकिन उनमें से उनके दो दोस्त एटीएम से पैसे निकालने चले गये और वह खुशकिस्मत साबित हुए.

एजाज के पिता इकबाल एक मोटर साइकिल मेकानिक हैं. वह बड़ी मुश्किल से बेटे की पढ़ाई का खर्च उठा रहे थे.

इकबाल कहते हैं, ‘जब मैंने बम विस्फोट की खबर सुनी तो बेटे(एजाज) को फोन लगाया पर फोन ऑफ था. उसके बाद मैं अपनी पत्नी नूरजहां के साथ घटना स्थल की तरफ गये’.

इकबाल कहते हैं, “चारों तरफ अफरतफरी थी लेकिन तबतक लोग घायलों को अस्पताल ले जा चुके थे. मुझे एजाज के बारे में कुछ पता नहीं चल रहा था. कुछ लोगों ने मुझे उसमानिया हॉस्पिटल में जाने की सलाह दी, जहां घायलों को ले जाया गया था.तब हम भागे दौड़े अस्पताल पहुंचे लेकिन जहां घायलों का इलाज चल रहा था वहां भी हमें कोई जानकारी नहीं मिली. नाउम्मीद हो कर हम लोग उस तरफ दौड़े जहां मृतकों के शरीर रखे गये थे. मेरे बेटे की लाश वहां पड़ी मिली”.

इतना कहते ही इकबाल बेतहाशा रोने लगते हैं.

इकबाल कहते हैं आतंकवादियों ने मेरी जिंदगी का सहारा छीन लिया. ऐसा किसी और के साथ न हो. दुनिया में कोई भी इंसान ऐसा दिन नहीं देखे, यही मेरी अल्लाह से दुआ है.

टू सर्किल से साभार

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