कांग्रेस की ‘जन आकांक्षा रैली’ 3 फरवरी को पटना के गांधी मार्च में आयोजित है। इसका नेतृत्व पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी करेंगे। इस मंच को कई विपक्षी दलों के नेता भी साझा करेंगे। कोलकाता में ममता बनर्जी के बाद पटना में कांग्रेस के बिहार प्रभारी शक्ति सिंह गोहिल विपक्षी एकता का शंखनाद करना चाहते हैं। निश्चित रूप से कांग्रेस का मंच विपक्षी दलों का मंच के रूप में तब्दील होता जा रहा है तो कांग्रेस अध्यक्ष निर्देश भी रहा होगा।

 वीरेंद्र यादव 


जन आकांक्षा रैली को सफल बनाने में शक्ति सिंह गोहिल के साथ प्रदेश मदन मोहन झा, अभियान समिति के अध्यक्ष अखिलेश सिंह, पार्टी के सांसद, विधायक और विधान पार्षद समेत संगठन से जुड़े पदाधिकारी और कार्यकर्ता जुटे हुए हैं। लेकिन कांग्रेस की रैली को लेकर कांग्रेस नेताओं से ज्यादा मोकामा के निर्दलीय विधायक अनंत सिंह की तैयारी चर्चा में है। शक्ति सिंह गोहिल, मदन मोहन झा और अखिलेश सिंह से अधिक अनंत सिंह को तरजीह मिल रही है। रैली को लेकर राहुल गांधी से ज्यादा अनंत सिंह की चर्चा हो रही है। ‘बाहुबली’ अनंत सिंह पहली बार जदयू के टिकट पर निर्वाचित हुए थे। 2015 में जदयू ने टिकट नहीं दिया तो निर्दलीय चुनाव लड़े और जीत गये।
कांग्रेस की रैली को लेकर अनंत सिंह अचानक चर्चा में आ गये। पिछले महीने यह बात चर्चा में रही कि अनंत सिंह कांग्रेस में शामिल हो सकते हैं। इसके बाद उन्होंने घोषणा की कि वे मुंगेर से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ेंगे। चर्चा यह भी रही कि अभियान समिति के अध‍यक्ष और सांसद अखिलेश सिंह ने उन्हें टिकट का भरोसा भी दिलाया है। अनंत सिंह के कांग्रेस में शामिल होने की भी खूब चर्चा रही। लेकिन बिहार प्रभारी शक्ति सिंह गोहिल और प्रदेश अध्यक्ष मदन मोहन झा ने चर्चा पर सफाई देते हुए कहा कि अनंत सिंह अभी पार्टी में शामिल नहीं हो रहे हैं और 3 फरवरी की रैली में मंच पर भी नहीं होंगे। अनंत सिंह के मुंगेर से चुनाव लड़ने की चर्चा पर राजद व अन्य सहयोगी दलों में भी आपत्ति जतायी थी।
इस बीच अनंत सिंह रैली के लिए भीड़ जुटाने का दावा कर रहे हैं। इस संबंध में शक्ति सिंह गोहिल ने कहा कि हम सभी के सहयोग का स्वागत करते हैं। यदि कांग्रेस अनंत के सहयोग का स्वागत कर रही है तो अनंत की ‘आकांक्षाओं’ की भी अनदेखी नहीं कर सकती है। और अनंत आकांक्षा क्या है, यह शक्ति सिंह गोहिल भी जानते हैं और अनंत सिंह भी। लेकिन खतरा भी कम नहीं है। जन आकांक्षा पर ‘अनंत आकांक्षा’ पर भारी पड़ी तो खामियाजा कांग्रेस को ही भुगतना पड़ेगा।

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